Begin typing your search above and press return to search.
पर्यावरण

लॉकडाउन की वजह से वायु प्रदूषण में हो रही कमी बदल सकती है मौसम का मिजाज

Manish Kumar
15 May 2020 3:21 PM IST
लॉकडाउन की वजह से वायु प्रदूषण में हो रही कमी बदल सकती है मौसम का मिजाज
x

एशिया, यूरोप और अमेरिका के बड़े हिस्से में वायु प्रदूषण में 60 प्रतिशत तक कमी दर्ज की गई है. आखिर इस कमी से पृथ्वी के मौसम पर क्या फर्क पर सकता है...

महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार। कोविड 19 के दौर में दुनियाभर में लॉकडाउन के कारण वायु प्रदूषण में तेजी से कमी आ गई है. इस महामारी का शायद यही एकलौता अच्छा पहलू भी है, लोग साफ़ हवा में सांस ले रहे हैं. जो शहर दशकों से धुंध की चादर में लिपटे रहे थे, वहां भी अब दूर-दूर तक लोग आसानी से देख पा रहे हैं. आसमान नीला होता है, और रात में तारों से भरा होता है – अनेक शहरों के बच्चे पहली बार देख पा रहे हैं.

पंजाब से और बिहार के शहरों से हिमालय की चोटियां देखी जा रही हैं. पर, इन सबके बीच नए अध्ययनों के अनुसार हवा में गैसों और पार्टिकुलेट मैटर की सांद्रता कम होने के कारण, अब सूर्य की किरणें पहले से अधिक मात्रा में धरती पर पहुँच रही हैं और इससे मौसम और जलवायु का मिजाज बदल सकता है. अधिक किरणों के पहुँचने से धरती अधिक गर्म होगी और मानसून भी प्रभावित होगा.

यह भी पढ़ें- लॉकडाउन ने की हवा और पानी साफ! क्या देश अब समझ पाएगा स्वस्छ पर्यावरण की कीमत

एशिया, यूरोप और अमेरिका के बड़े हिस्से में वायु प्रदूषण में 60 प्रतिशत तक कमी दर्ज की गई है. हवा में पार्टिकुलेट मैटर और गैसों की सांद्रता में प्रभावी कमी आ गई है. ये गैसे और पार्टिकुलेट मैटर सूर्य की किरणों को परावर्तित कर वापस अंतरिक्ष में भेजते हैं या फिर इसे दूसरे दिशा में भेज देते हैं, जिससे किरणें धरती पर कम पहुंचतीं हैं, पर अब जब इनकी सांद्रता हवा में कम हो गई है तब पहले से अधिक किरणें धरती पर पहुंचने लगीं हैं और पृथ्वी को अधिक चमकीला बना रही हैं.

प्रदूषण की स्थिति में यह चमक कम हो जाती है. यूरोप और अमेरिका में वर्ष 1980 से ही प्रदूषण कम करने के प्रभावी कदम उठाये जा रहे हैं, इसलिए उन क्षेत्रों में धरती की चमक उस समय से ही बढ़नी शुरू हो गई थी. चीन में यह प्रक्रिया 2005 के बाद से देखी गई थी, और भारत में यह अब तक नहीं देखा गया था.

यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग में जलवायु वैज्ञानिक लौरा विलकॉक्स के अनुसार प्रदूषण के कारण हवा में एरोसोल्स (सूक्ष्म कण और द्रव) की मात्रा बढ़ जाती है, और ये किरणों को अवशोषित भी कर सकते हैं और इनका बिखराव भी करते हैं. एरोसोल्स के असर से बादलों द्वारा सूर्य की किरणों को परावर्तित करने की क्षमता भी प्रभावित होती है, और बादल अधिक स्थाई होते हैं.

इस दौर में जब हवा में एरोसोल्स की सांद्रता कम हो गई है, तब धरती पर सूर्य की किरणें अधिक पहुँच रही हैं और इसे पहले से अधिक गर्म कर रही हैं. इसका असर, आने वाले समय में भारत जैसे क्षेत्रों में अधिक महसूस किया जाएगा जो हमेशा ही प्रदूषण की चपेट में रहते थे और आसमान धुंए के गुबार से घिरा रहता था.

वैज्ञानिकों ने कोविड 19 के जलवायु पर प्रभाव के आकलन के लिए बड़े क्षेत्र में दीर्घकालीन अध्ययन का फैसला लिया है, और इसके नतीजें बताएंगे कि इस महामारी ने वायु प्रदूषण में कमी लाकर पृथ्वी को कितना गर्म किया है और मौसम और जलवायु पर किस तरह का असर डाला है.

यह भी पढ़ें- आप मानें या ना माने, पर्यावरण संकट की ही देन है कोरोना वायरस

कम्पुटर सिम्युलेशन द्वारा प्राथमिक अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने बताया है कि यदि लम्बे समय तक प्रदूषण का स्तर ऐसे ही कम बना रहा तब जलवायु परिवर्तन की गति तेज हो जायेगी और वर्ष 2050 तक पृथ्वी का औसत तापमान 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा, इसमें से एक-तिहाई बढ़ोत्तरी की जिम्मेदार सूर्य की बढ़ी किरणें होंगीं. प्राथमिक अध्ययन के अनुसार एशिया के देशों में वायु प्रदूषण में कमी के कारण मानसून की तीव्रता बढ़ेगी क्योंकि पृथ्वी के तापमान के बढ़ने से धरती और महासागरों के तापमान का अंतर भी बढेगा. यदि, वायु प्रदूषण में कमी ऐसे ही चलती रही तब लम्बे समय में जलवायु परिवर्तन और बढेगा.

यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि यदि वायु प्रदूषण में कमी लाकर भी जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि होनी है, तब फिर कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन कम करने पर इतना जोर क्यों दिया जाता है? वैज्ञानिकों के अनुसार ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन से जो तापमान बृद्धि हो रही है वह अधिक तीव्र है, और फिर उससे पृथ्वी का जल-चक्र भी प्रभावित हो रहा है. इससे लोगों का स्वास्थ्य अधिक प्रभावित हो रहा है, जबकि कम वायु प्रदूषण के कारण तापमान बृद्धि इतनी घातक नहीं होगी.

फिलहाल वैज्ञानिकों ने अपना पूरा ध्यान भारतीय उपमहाद्वीप पर केन्द्रित किया है, जहां जून के अंत में मानसून की शुरुआत हो जाती है, और इससे पहले धरती का तापमान सामान्य अवस्था में भी बढ़ता है और हवा में प्रदूषण का भी. मानसून को प्रभावित करने में उत्तरी भारत का वायु प्रदूषण अधिक प्रभाव डालेगा, क्योंकि इस क्षेत्र में धरती का तापमान अधिक बढ़ता है. इस वर्ष पहली बार मानसून के पहले हवा में प्रदूषण का स्तर कम है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि बिना प्रदूषण का मानसून कैसा होगा, पर तब तक हमें वैज्ञानिकों के निष्कर्ष का इन्तजार करना पड़ेगा.

Next Story

विविध