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क्राइम ब्रांच ने कहा बनारस पुल हादसे में नामजद एफआईआर की नहीं कोई जरूरत
15 मई को हुए बनारस पुल हादसे में अबतक एक भी नामजद एफआईआर नहीं, सरकार और पुलिस की सोशल मीडिया पर हो रही खूब खिंचाई, लोग आरोप लगा रहे कि सरकार और पुलिस कर रही आरोपियों का बचाव
पर जनज्वार ने सच खोज निकाला, पढ़िए नामजद एफआईआर से क्या फर्क पड़ता है और क्या नहीं
जनज्वार, वाराणसी। प्रधानमंत्री मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में कैंट रेलवे स्टेशन के सामने बन रहा निर्माणाधीन फ्लाई ओवर का एक पिलर अचानक गिरने से 15 मई की शाम दर्जनों गाड़ियां उसके नीचे आ गईं, जिससे 18 लोगों (सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, क्योंकि प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक इससे कई ज्यादा मौतें हुई हैं) की मौत हो गयी।
मामला प्रधानमंत्री के लोकसभा क्षेत्र के होने के कारण राज्य सरकार ने तत्परता दिखाई और रात में ही प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य घटना स्थल पर पहुंचे थे।
पुलिस ने भी तत्काल एफआईआर दर्ज करने की कार्रवाई पूरी की और अपनी ओर से पुल बना रहे विभाग सेतु निगम के अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। लेकिन पुलिस ने इस मामले में कोई एफआईआर नामजद नहीं की।
इस गंभीर चूक के मामले में नामजद रिपोर्ट नहीं दर्ज करने से सोशल मीडिया में लगातार लोग संदेह व्यक्त कर रहे हैं और बहुतों को लग रहा है कि 18 लोगों की मौत के मामले में रिपोर्ट न दर्ज करना, अधिकारियों, ठेकेदार और जिम्मेदार कंपनी को बचाने की अंदरखाने में कोशिश है।
इस मामले में जनज्वार ने जब जिम्मेदार अधिकारियों से बात की तो उन्होंने दो टूक कह दिया कि कोई जरूरत नहीं है नामजद एफआईआर की।
पर सवाल है कि जब अपराध पुलिस मानती है फिर अपराध चाहे किसी व्यक्ति ने किया हो, चाहे वह किसी संस्था या कंपनी में हो? बिना नामजद रिपोर्ट दर्ज किए किसी व्यक्ति यानी दोषियों के खिलाफ अदालत कैसे सजा मुकर्रर करेगी।
पर 15 मई को हुए वाराणसी के सेतु निगम के पुल हादसे मामले की जांच की अगुवाई कर रहे क्राइम ब्रांच के एडिशनल एसपी ज्ञानेंद्र नाथ प्रसाद कहते हैं, 'सेतु निगम के अज्ञात अधिकारियों, कर्मचारियों और ठेकेदारों के खिलाफ मुकदमा इसलिए दर्ज कर दिया गया है कि तत्काल दारोगा को कैसे पता चलेगा कि कौन—कौन अधिकारी थे, कौन नहीं थे। इसके लिए विवेचना होती है और उसमें सभी संलिप्तों का नाम लिखा जाता है। और अब सभी का नाम लिख लिया गया है।'
जनज्वार ने जब उनसे यह जानना चाहा कि एफआईआर में नाम हो या न हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, यह दोषियों को बचाने की पुलिसिया कलाकारी तो नहीं होती?
एडिशनल एसपी क्राइम ब्रांच ज्ञानेंद्र नाथ प्रसाद कहते हैं, 'चूंकि एफआईआर सेतु निगम के खिलाफ पुलिस ने दर्ज की है, इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता है। यहां कोई एक व्यक्ति नहीं था। जांच में जैसे—जैसे संदिग्धों और संलिप्तों का नाम आता जाएगा, हम विवेचना उसे शामिल कर लेते हैं। और शामिल कर भी लिया है पर इसे मीडिया को बताने की कोई जरूरत नहीं है। असल चीज विवेचना है, विवेचना ही तय करेगी कि जांच किस दिशा में और कितनी गंभीर है।'
जिम्मेदार पुलिस अधिकारी की बात के बाद जनज्वार ने अपने सहयोगी विशेषज्ञ और उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एसआर दारापुरी से बात की और जानना चाहा कि अधिकारी के बात में कोई झोल तो नहीं, कहीं कोई चालाकी तो नहीं है?
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एसआर दारापुरी कहते हैं, 'इस मामले में दो बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। पहली की एफआईआर किसके द्वारा दर्ज कराई गयी है और किन धाराओं में। अगर एफआईआर पुलिस ने अपनी तरफ से अज्ञात की दर्ज की है तो एफआईआर में नाम दर्ज करना जरूरी नहीं है। सेतु निगम के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर पुलिस विवेचना में आरोपियों को शामिल कर सकती है। इससे जांच प्रभावित नहीं होती और न ही इस तरीके से पुलिस पर संदेह नहीं किया जा सकता।'
उम्मीद है जनज्वार की यह खोजबीन पाठकों को यह समझने और जानने में मदद करेगी कि नामजद एफआईआर न होने से बनारस पुल हादसे की जांच प्रभावित नहीं होगी।