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आंदोलन

दैनिक जागरण की प्रो-रेपिस्ट पत्रकारिता के विरोध में साहित्यकारों ने किया ‘बिहारसंवादी’ व ‘मुक्तांगन’ का बहिष्कार

Janjwar Team
22 April 2018 4:53 AM IST
दैनिक जागरण की प्रो-रेपिस्ट पत्रकारिता के विरोध में साहित्यकारों ने किया ‘बिहारसंवादी’ व ‘मुक्तांगन’ का बहिष्कार
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कहा दैनिक जागरण बन चुका है बलात्कारियों—हत्यारों का मुखपत्र, लगातार मिथ्या, आधारहीन तर्कहीन खबरों व उनके प्रोपेगेंडा को चलाकर जनचेतना व सामूहिक विवेक को कर रहा है नष्ट...

सुशील मानव

वरिष्ठ साहित्यकार अरुण कमल, आलोक धन्वा, अरुण शीतांष कर्मेंदु शिशिर, ध्रुव गुप्त, तारानंद वियोगी, प्रेम कुमार मणि, संजय कुमार कुंदन, कवि निवेदिता शकील, सुजाता चौधरी व युवा कवि राकेश रंजन ने दैनिक जागरण की प्रो-रेपिस्ट पत्रकारिता के विरोध में उसके इस कुकृत्य की कड़े शब्दों में भर्त्सना करते हुए आज से शुरू हुए “बिहार संवादी” कार्यक्रम का बहिष्कार किया है।

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गौरतलब है कि दैनिक जागरण ने प्रो-रेपिस्ट पत्रकारिता का बेहद ही अश्लील नमूना पेश करते हुए अपनी कल के यानी 20 अप्रैल 2018 को चंड़ीगढ़, पटना, दिल्ली, लखनऊ, जम्मू संस्करणों में छापे गए आधारहीन मिथ्या खबर को आज 21 अप्रैल 2018 को फिर से इलाहाबाद, कानपुर वाराणसी समेत कई संस्करणों में उसी बर्बरता और निर्लज्जता के साथ उसी निर्णयात्मक शैली में सेम हेडिंग के साथ दोहराया है।

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जम्मू के कठुआ जिले के रसाना गाँव में बकरेवाल समुदाय की आठ वर्षीय बच्ची आसिफा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के मामले में हिंदी अखबार दैनिक जागरण ने 20 और 21 अप्रैल 2018 को कई अंकों में “बच्ची से नहीं हुआ था दुष्कर्म” हेडलाइन वाली निष्कर्षात्मक खबर छापी है। जबकि दिल्ली की फोरेंसिक लैब एफएसएल ने अपनी रिपोर्ट में बच्ची संग मंदिर में बलात्कार की पुष्टि की है।

रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि मंदिर के अंदर जो खून के धब्बे मिले थे, वो पीड़िता के ही हैं। इसके अलावा मंदिर में जो बालों का गुच्छा मिला था जाँच में वो एक आरोपी शुभम संगारा के होने की पुष्टि लैब ने किया है। इसके अलावा पीड़िता के कपड़ों पर मिले खून के धब्बे उसके डीएनए प्रोफाइल से मैच करते हैं। साथ ही पीड़िता की वजाइना पर खून मिलने की पुष्टि लैब ने की है।

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इतने सारे वैज्ञानिक सबूतों, प्रमाणों, तथ्यों को झुठलाते हुए दैनिक जागरण ने उस मिथ्या बात को हाइलाइट करके फ्रंट पेज पर छापा, जो लगातार भाजपा और संघ के लोग दुष्प्रचारित करते चले आ रहे हैं। साफ जाहिर है दैनिक जागरण अखबार पत्रकारिता के बुनियादी बातों, उसूलों और मूल्यों को त्यागकर सत्ता के मुखपत्र की तरह कार्य करते हुए बलात्कार के पक्ष में मानस बनाने का कार्य कर रहा है, जो न सिर्फ अनैतिक अमानवीय व हिंसक है बल्कि आपराधिक भी।

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वहीं दूसरी ओर दिल्ली में दैनिक जागरण के प्रो-रेपिस्ट पत्रकारिता से नाराज़ होकर प्रतिरोध स्वरूप उसके द्वारा दिल्ली में हर माह आयोजित किये जाने वाले दो सत्रों के साहित्यिक कार्यक्रम मुक्तांगन का भी साहित्यकारों फिल्मकारों ने बहिष्कार कर दिया है। मुक्तांगन का बहिष्कार करने वालों में वरिष्ठ कवि सविता सिंह, विपिन चौधरी, कवि सुजाता, दिल्ली जलेस के सचिव प्रेम तिवारी और मिहिर पांड्या शामिल हैं।

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इसके अलावा सम्मानित कवि मदन कश्यप और संतोष चतुर्वेदी ने भी साहित्यकारों से जागरण संवादी व मुक्तांगन के बहिष्कार की अपील की है।

लेखक संगठनों में से जन संस्कृति मंच ने कल 20 अप्रैल को ही साहित्यकारों से जागरण संवादी के बहिष्कार की अपील की थी। आज इलाहाबाद जलेस के सचिव संतोष चतुर्वेदी ने जलेस इलाहाबाद अनदह, व पहली बार साहित्यिक पत्रिका की ओर से साहित्यकारों से अपील की है कि वो जागरण संवादी का हिस्सा न बनें।

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दिल्ली जलेस की ओर से सचिव दिल्ली जलेस के सचिव व साहित्यकार प्रेम तिवारी ने दैनिक जागरण के बलात्कारी पत्रकारिता की घोर भर्त्सना करते हुए कहा,-“मैंने मुक्तांगन के कार्यक्रम में जाना स्थगित कर दिया है । मेरे विरोध का पहला कारण यह है कि दैनिक जागरण ने पिछले दिनों कठुआ रेप केस को लेकर जैसी रिपोर्टिंग की है उससे पत्रिकारिता की न सिर्फ साख गिरी है, लोगों का भरोसा टूट है बल्कि इससे मानवीय संवेदना को गहरा धक्का भी लगा है। दूसरा, दैनिक जागरण की पत्रकारिता जनतांत्रिक और सेक्युलर मूल्यों और मर्यादाओं की हत्या करने वाली साबित हुई है।”

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चूँकि साहित्यकार ही जन और समाज को सबसे अधिक नजदीक से देखने सोचने और अनुभूति करनेवाला जीव होता है और उसकी सबसे पहली प्रतिबद्धता इन्हीं जन व समाज के प्रति होती है। अतः एक ऐसा अख़बार जो जनविरोधी फासिस्ट ताकतों के हाथों बिककर उनका मुखपत्र बन चुका है और जो लगातार मिथ्या, आधारहीन तर्कहीन खबरों व उनके प्रोपेगेंडा को चलाकर जनचेतना, व सामूहिक विवेक को नष्ट करके लोगों को हत्यारी—बलात्कारी भीड़ में तब्दील करने के उपक्रम में लगा हुआ है।

दैनिक जागरण द्वारा आयोजित किये जा रहे तथाकथित साहित्य उत्सव बिहार संवादी व मुक्तांगन में खुद को जनपक्षधर कहने वाला साहित्यकार शामिल ही क्यों हो? क्यों न सभी साहित्यकार विशेषकर जो दैनिक जागरण संवादी में बतौर वक्ता बुलाये गये हैं वो इस कार्यक्रम का बहिष्कार करें?

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