Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

बड़ा खुलासा : मोदी सरकार में जीडीपी विकास दर सिर्फ 1 प्रतिशत

Prema Negi
30 Jun 2018 10:20 AM GMT
बड़ा खुलासा : मोदी सरकार में जीडीपी विकास दर सिर्फ 1 प्रतिशत
x

file photo

अर्थशास्त्री अरुण कुमार का दावा, वास्तविक जीडीपी ग्रोथ रेट एक फीसदी ही है, सरकारी आंकड़े सिर्फ कॉरपोरेट सेक्टर की बताते हैं झूठ, फैलाते हैं आम जनता में भ्रम

पढ़िए अर्थशास्त्री अरुण कुमार का महत्वपूर्ण विश्लेषण

भारत की वास्तविक ग्रोथ रेट 1% के आसपास है। सरकारी आंकड़े मूलत: कॉरपोरेट सेक्टर की ग्रोथ बताते हैं। आरबीआई, आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक सब इन आंकड़ों के हिसाब से चलते हैं। लेकिन इकोनॉमी में सिर्फ कॉरपोरेट सेक्टर नहीं है। इसमें संगठित-असंगठित दोनों हैं।

असंगठित क्षेत्र को डेढ़ साल में दो धक्के लगे- नोटबंदी और जीएसटी। इनकी वजह से असंगठित क्षेत्र की ग्रोथ 10% निगेटिव हो गई है। असंगठित क्षेत्र के आंकड़े चार-पांच साल बाद सामने आते हैं। तब पता चलेगा कि इकोनॉमी को कितना नुकसान हुआ।

असंगठित क्षेत्र हमारी इकोनॉमी में 45% है। इसमें कृषि 14% और बाकी गैर-कृषि असंगठित क्षेत्र 31% है। इसलिए अगर 45% इकोनॉमी की ग्रोथ में 10% गिरावट आई है तो वह (-)4.5% होती है। बाकी 55% वाले कॉरपोरेट सेक्टर में 7% ग्रोथ है तो भी कुल मिलाकर ग्रोथ 3.5% होती है।

पूरी इकोनॉमी में 7% ग्रोथ होती तो एक फीलगुड फैक्टर होता। जैसा हमने 2004-09 में देखा। बड़े बिजनेसमैन भी खुश नहीं हैं, भले ही वे खुलकर यह बात नहीं कहते।

समस्या कम ग्रोथ के कारण ही आ रही हैं। रोजगार कम बढ़ रहे हैं। दिल्ली जैसे शहर में भी लोग 7-8 हजार की नौकरी ढूंढ़ते रहते हैं। रेलवे में 90 हजार नौकरियों के लिए 2.3 करोड़ लोगों ने अप्लाई किया। मतलब यह कि अंडरएंप्लॉयमेंट बढ़ रहा है। किसान परेशान हैं क्योंकि उनकी लागत बढ़ गई लेकिन उपज के दाम कम हो गए हैं। 93% नौकरियां असंगठित क्षेत्र में ही हैं। वहां बेरोजगारी या कम-रोजगारी बढ़ने से अर्थव्यवस्था में डिमांड कम हो रही है।

परेशानी की एक वजह जीएसटी भी है। इसे इतना जटिल बना दिया कि स्पष्टीकरण के लिए सालभर में करीब 350 नोटिफिकेशन आए। यानी रोजाना एक। कंपोजीशन की सीमा में कई बार संशोधन हुआ। इससे छोटे बिजनेस को काफी परेशानी हुई। सरकार का फोकस संगठित क्षेत्र पर है। जीएसटी भी संगठित क्षेत्र के लिए है। इससे बड़ी कंपनियों की एफिसिएंसी बढ़ेगी। छोटे निर्माताओं की एफिसिएंसी पर फर्क नहीं पड़ेगा। असंगठित क्षेत्र को जीएसटी से जो धक्का लग रहा है, वह जारी रहेगा। जीएसटी में सर्विसेज महंगी हुई हैं। हमारी इकोनॉमी में सर्विसेज का हिस्सा 60% है। यानी इकोनॉमी के 60% हिस्से के दाम बढ़ गए हैं।

पावर, रोड जैसे इन्फ्रा सेक्टर में निवेश काफी हो गया जबकि उतने का मार्केट नहीं था। टेलीकॉम कंपनियों ने काफी लोन ले रखे हैं। अब चार्जेज घटने से वे परेशान हैं। एनपीए बढ़ने से बैंक घाटे में आ गए। वे ज्यादा कर्ज देने की स्थिति में नहीं हैं। बिना कर्ज के इकोनॉमी में निजी निवेश नहीं बढ़ेगा। सरकारी निवेश बढ़ा है, लेकिन यह निजी निवेश की भरपाई नहीं कर सकता।

यह ज्यादा इसलिए भी नहीं हो सकता क्योंकि सरकार ज्यादा खर्च करेगी तो घाटा बढ़ जाएगा। 2007-08 में निवेश 38% था, अब घटकर 32% रह गया है। कम निवेश का मतलब है ग्रोथ और रोजगार कम होना। बाहरी परेशानियां भी हैं। ट्रंप की ट्रेड वार निर्यात के लिए बड़ी परेशानी है। जीएसटी में रिफंड फंसने से निर्यातक पहले ही वर्किंग कैपिटल की समस्या से जूझ रहे हैं। क्रूड महंगा होने से महंगाई बढ़ी है।

जेएनयू के रिटायर्ड प्रोफेसर और अर्थशास्त्री अरुण कुमार का यह लेख दैनिक भाास्कर में पहले से प्रकाशित

Next Story