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आंदोलन

गैरसैंण राजधानी का मुद्दा राजनीतिक भी है और जनभावना भी

Janjwar Team
10 April 2018 12:31 AM IST
गैरसैंण राजधानी का मुद्दा राजनीतिक भी है और जनभावना भी
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दलाल के लिए अंग्रेजी में लाइजनर शब्द है और मैं डंके की चोट पर कहता हूं कि अब तक जितने भी दलों ने यहां राज किया सबके सब नेता लाइजनर रहे। इन्होंने हमारे जल, जंगल, जमीन का सौदा ही किया है...

जनपक्षधर समाचार साइट जनज्वार डॉट कॉम द्वारा रविवार, 8 अप्रैल 2018 को हल्द्वानी के मेडिकल हॉल स्थित लैक्चरर थिएटर हॉल में 'गैरसैंण राजधानी की मांग जनभावना या राजनीतिक मुद्दा' विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई।

वरिष्ठ पत्रकार और गैरसैंण राजधानी संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष चारु तिवारी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। गैरसैंण राजधानी संघर्ष समिति के संरक्षक राजीव लोचन शाह, उक्रांद के पूर्व अध्यक्ष और विधायक पुष्पेश त्रिपाठी, परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता पीसी तिवारी, हेम आर्य और पूर्व छात्र नेता और युवा कांग्रेस नेता ललित जोशी ने संबोधित किया।

कार्यक्रम की शुरुआत जनज्वार को ब्लॉग के रूप में शुरू करने वाले पत्रकार अजय प्रकाश ने की और सफल संचालन जनज्वार के कुमाउं प्रभारी संजय रावत ने किया। अजय ने कहा कि जनज्वार का रिश्ता लगातार जनांदोलनों के साथ जुड़ा रहने का रहा है। जहां तक जनांदोलनों से जुड़े मसलों से जुड़ी पत्रकारिता का सवाल है तो हमारी कोशिश है कि हम अपनी उस पुरानी पत्रकारिता को जिंदा रखें जो यह कहती है कि यह सिर्फ लिखने की नहीं बल्कि सक्रियता के लिए भी है। मगर जो इस तरह का काम करते हैं उन्हें एक्टिविस्ट पत्रकार कह मैनस्ट्रीम मीडिया खारिज करने की कोशिश करता है। मगर हमारी कोशिश है कि हजारों हजार एक्टिविस्ट पत्रकार पैदा हों, क्योंकि हम मानते हैं कि लिखने के साथ—साथ सामाजिक—राजनीतिक सक्रियता भी पत्रकार का काम है।

राजधानी गैरसैंण बनाये जाने को लेकर जहां वक्ताओं ने सत्ता में रही पार्टियों की खूब खिंचाई की, वहीं कुछ लोगों ने गैरसैंण ही राजधानी क्यों अन्य जनमुद्दों को लेकर क्यों बात नहीं होती का सवाल उठाया। इस दौरान काफी गहमागहमी भी हो गई, जब पत्रकार रूपेश कुमार ने सवाल उठाया कि उत्तराखण्ड से जब तक दलाल पार्टियों कांग्रेस और भाजपा को बाहर नहीं कर दिया जाता तब तक इसकी हालत नहीं सुधरेगी, ये लोग पहाड़ की दलाली कर कमीशन खाने का ही काम करेंगे, जनांदोलन खड़ा कर इन्हें खदेड़ना होगा। तो दलाल शब्द पर घोर आपत्ति व्यक्त करते हुए छात्र नेता रहे युवा कांग्रेसी ललित जोशी ने सीधा निशाना साधा कि यह कहना गलत है कि पृथक उत्तराखंड बनने के बाद कुछ नहीं हुआ है। यह नकारात्मक सोच है। हां इसे ऐसे कह सकते हैं कि चार जिलों को छोड़ शेष 9 जिलों के लिए जो भी पार्टी सरकार में रही उसने कुछ नहीं किया।

क्षेत्रीय उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पीसी तिवारी ने कहा कि जनभावनाओं का राजनीति में बदल जाना बहुत बड़ा आर्ट है। हमारी मांगों से इतर अगर प्रमुख राजनीतिक सत्ताधारी पार्टियां गैरसैंण राजधानी बनायेंगी भी तब जब चुनाव का समय आएगा, वो भी अपनी नीतियों के अनुरूप, न कि जनभावनाओं का गैरसैंण बनेगा। सत्ता में रहे कांग्रेस या सत्ताधारी विकास की बात करते हैं मगर राज्य विकास के नाम पर इतने सालों में गाँव खाली हुए हैं, शिक्षा, रोजगार और कानून का खुलेआम मखौल उड़ा है। सत्ता शीर्ष पर बैठे लोग आम जन को गुमराह करते हैं, इनमें अगर नाम लिया जाए तो हरीश रावत राजनीति का नटवरलाल हैं।

आज फिल्म अभिनेता सलमान खान की तरह है उत्तराखंड की हालत, जिसके बारे में पता नहीं है कि वह नायक है या खलनायक। उत्तराखण्ड राज्य बने के बाद के खलनायकों की पहचान कर जब तक उनका बॉयकॉट नहीं करेंगे, तब तक कुछ और बात करना बेमानी है। आज उत्तराखण्ड की अस्थायी राजधानी देहरादून है जो अंग्रेजों का बसाया शहर है। गैरसैंण जो कि जनभावनाओं की राजधानी है वह एक कोरे कागज की तरह है जिस पर सही चित्र खींचा जा सकता है, जबकि देहरादून में कुछ भी नहीं किया जा सकता।

राजीव लोचन शाह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि आज के मीडिया ने जनमुद्दों का सबसे ज्यादा कबाड़ा किया है। मीडिया धार्मिक आयोजनों को तो भरपूर तवज्जो देता है मगर जनमुद्दों की बातों को थोड़ी सी जगह में समेटा जाता है वो भी तोड़—मरोड़कर। जहां तक राजधानी गैरसैंण का सवाल है तो उत्तराखंड क्रांति दल ने अलग राज्य के साथ ही राजधानी भी मांगी थी चंद्रनगर के रूप में। कौशिक समिति ने सर्वेक्षण कर राजधानी का चयन गैरसैंण किया था। जब पृथक उत्तराखण्ड बना, उसके साथ—साथ दो और राज्य बने, मगर उत्तराखण्ड को छोड़ दोनों राज्यों झारखंड और छत्तीसगढ़ को उनकी जनभावनाओं के अनुरूप राजधानियां दी गईं, वहां ये कोई सवाल ही नहीं था।

इस बार गैरसैंण राजधानी के लिए जो आंदोलन खड़ा हुआ है, वह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें नई पीढ़ी हिस्सेदारी कर रही है। ये उन तमाम भावनाओं के प्रतिरोध के बतौर भी उभार है जिससे हमें पिछली सरकारों ने वंचित रखा है। राज्य बनने के वक्त जो दूध पीते बच्चे थे आज राजधानी की मांग के लिए सक्रिय हो उठे हैं। राज्य बनने के साथ ही गैरसैंण राजधानी घोषित कर दी जाती तो शायद हम बहुत कुछ हासिल कर लेते। शिक्षा, रोजगार के क्षेत्रों में बड़े काम हुए होते और यहां से पलायन भी रूका होता। मगर यहां एक बात और कहना चाहूंगा कि गैरसैंण को सिर्फ जनभावनाओं की राजधानी बनाकर दूर तक नहीं जाया जा सकता।

हेम आर्य ने कहा कि 17 सालों में उत्तराखण्ड को विकास के जिस स्तर को छू लेना चाहिए था वहां न पहुंचकर हम भटक गए हैं। अगर उत्तराखण्ड केंद्रशासित राज्य बनता तो ज्यादा विकास कर पाता। जहां तक गैरसैंण राजधानी का मुद्दा है यह सिर्फ राजनीतिक है। जनभावनाएं क्षेत्रीय दल यूकेडी के साथ थीं, मगर उसके सत्ता में आने के बाद से लोगों का उससे भी मोहभंग हुआ है।

उत्तराखंड क्रांति दल के नेता पुष्पेश त्रिपाठी ने कहा राजधानी गैरसैंण एक भावनात्मक मसला था, जो राजनीतिक हो गया। उत्तराखण्ड को लेकर जो ड्राफ्ट तैयार किया गया था अगर राज्य उसके अनुसार बना होता तो आज चीजें पॉजिटिव होतीं। गैरसैंण अब तक राजधानी इसलिए घोषित नहीं की जा सकती क्योंकि राजनेताओं में इच्छाशक्ति का घोर अभाव है। सिर्फ वोट पाने के लिए और लूट—खसोट के लिए जनभावनाओं को कैश किया जाता है। आज ग्रीष्मकालीन—शीतकालीन के नाम पर राजनेताओं ने जनभावनाओं का मजाक बनकर रख दिया है, इसी दिन के लिए आंदोलनकारियों ने राज्य निर्माण में अपनी शहादत नहीं दी थी।

गैरसैंण राजधानी संघर्ष समिति के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी ने कहा कि राज्य में जितने भी मुख्यमंत्री अब तक आए हैं सबने राज्य को बेच खाया है। 17 सालों के राज्य में 10 मुख्यमंत्री आ चुके हैं, इससे ज्यादा हास्यास्पद कुछ नहीं हो सकता। इनमें से किसी ने भी जनता की भावना को नहीं समझा, अगर समझा होता तो उत्तराखण्ड आज राज्य आंदोलनकारियों के सपनों का उत्तराखण्ड होता। इस उत्तराखण्ड के लिए तमाम राज्य आंदोलनकारियों ने शहादत नहीं दी थी। अब तक सत्तासीन रहे दलों को दलाल कहने पर आपत्ति उठा रहे युवा कांग्रेसी नेता को जवाब देते हुए उन्होंने कहा, दलाल के लिए अंग्रेजी में लाइजनर शब्द है और मैं डंके की चोट पर कहता हूं कि अब तक जितने भी दलों ने यहां राज किया सबके सब नेता लाइजनर रहे। इन्होंने हमारे जल, जंगल, जमीन का सौदा ही किया है।

कार्यक्रम के अंत में जनज्वार की संपादक प्रेमा नेगी ने सभी धन्यवाद देते हुए जनमीडिया की चुनौतियों पर बात रखते हुए कहा कि इसे चलाने में किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। जनज्वार को आगे बढ़ाने में सहयोगी रहे साथियों का जिक्र करते हुए कहा कि तमाम पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोगों के संगठित प्रयास के बिना हमारी यहां तक की यात्रा मुश्किल थी। उत्तराखण्ड में संजय रावत, मुनीष कुमार, नरेंद्र देव सिंह, हरीश रावत, राजेश सरकार समेत तमाम और पत्रकारों का शुरुआत से ही जनज्वार में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जनता के मुद्दों पर आयोजित इस कार्यक्रम के आयोजन का श्रेय भी कुमाउं प्रभारी संजय रावत को जाता है। दिल्ली से गए साथियों जनार्दन कुमार और राजीव रंजन और उत्तर प्रदेश के देवरिया से चतुरानन ओझा की जनज्वार में भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि इन समेत तमाम साथी जिनका कहीं नाम नहीं आता वेबसाइट की बैक बोन हैं।

कार्यक्रम में उत्तराखण्ड के तमाम पत्रकार, बुद्धिजीवियों समेत लगभग दर्जनों लोग मौजूद थे, जिन्होंने अपने सवालों से वक्ताओं और आम जनता के बीच राजनीतिक गहमागहमी पैदा करने का काम किया।

जनज्वार मानता है कि आज पत्रकारिता ऐसे दौर से गुजर रही है जहां अखबार—टीवी का संपादक किसी न किसी पार्टी का प्रवक्ता बना हुआ है। आज जितनी भ्रष्ट राजनीति है उतनी ही पत्रकारिता भी हो चुकी है। पत्रकारिता का बहुतायत पार्टी तो पार्टी का बहुतायत पार्टी पत्रकारिता में कंवर्ट हो चुका है। निष्पक्ष और जनपक्षधर पत्रकारिता की तरफ बढ़ना बहुत मुश्किल हो गया है, लेकिन उम्मीद और बेहतरी की एक लकीर ऐसी है जो हिम्मत देती है कि हम आगे बढ़ेंगे।

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