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संस्कृति

'गायन की तुलना में वाद्य-संगीत रहा है अधिक प्रयोगशील और नवाचारी'

Prema Negi
14 Nov 2018 1:35 PM GMT
गायन की तुलना में वाद्य-संगीत रहा है अधिक प्रयोगशील और नवाचारी
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रंगमंच में हम वीभत्स को तो दिखा सकते हैं, लेकिन गायन में वीभत्स रूप को रेखांकित करना मुश्किल है....

जनज्वार, दिल्ली। रज़ा फाउंडेशन और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के संयुक्त तत्वावधान में ‘आर्ट मैटर्स’ श्रृंखला के नए संस्करण में 13 नवम्बर 2018 को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के कमलादेवी ब्लॉक के सभागार में भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं रंगमंच की चर्चित हस्ताक्षर शन्नो खुराना और जे.एन,यू. के कला एवं सौन्दर्यशास्त्र के प्रो. नमन पी. आहूजा के साथ परिचर्चा का आयोजन हुआ।

कार्यक्रम की शुरुआत रज़ा फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी और हिंदी के चर्चित कवि अशोक वाजपेयी के स्वागत वक्तव्य के साथ हुआ। उन्होंने अतिथियों और उपस्थित विद्वत समाज का स्वागत करते हुए शन्नो खुराना को भारतीय कला के महान व्यक्तित्व के रूप में चिन्हित किया।

शन्नो खुराना का जन्म जोधपुर में हुआ, तथा उन्होंने रामपुर सहसवान घराना से संबद्ध होकर अपने संगीत व्यक्तित्व का विकास किया। बाद में वे लाहौर आकाशवाणी से जुडी और संस्कृत के विद्वान् ठाकुर जयदेव सिंह, रामपुर सहसवान घराना के उस्ताद मुस्ताक हुसैन खान और आकाशवाणी और आगरा-ग्वालियर घराना के पंडित एस.एन. रतनजनकर से संगीत की शिक्षा प्राप्त की।

आर्ट्स मैटर्स की इस श्रृंखला का विषय ‘रस : एक प्राकृतिक प्रकृति’ था, जिस पर शन्नो खुराना से नमन पी. आहूजा ने संवाद किया। इसके अंतर्गत नमन ने शास्त्रीयता के सौन्दर्यबोध के साथ संगीत के प्रयोग पर, रंगमंच और फिल्मों में संगीत के प्रयोग एवं उसके सौन्दर्य-पक्ष पर बातचीत करते हुए ओपेरा और गीति-नाट्य पर बातचीत की, जिसका केंद्र शन्नो खुराना का जीवन व्यक्तित्व रहा।

इस बातचीत में केन्द्रक की भूमिका में शन्नो खुराना से सम्बंधित पुरानी तस्वीरें थी। शन्नो खुराना की चर्चा न केवल एक भारतीय शास्त्रीय संगीत के गायक के रूप में है, बल्कि वे घरानेदार परिवार से नहीं संबद्ध होते हुए संगीत को बढ़ाने वाले गायकों की दूसरी पीढ़ी के संगीतकारों में भी होती है। उन्होंने रंगमंच के विधा में भारतीय शास्त्रीय संगीत को विधवत प्रवेश दिया।8-9 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने संगीत सीखना आरम्भ कर दिया था। अपनी बातचीत में उन्होंने अपने तत्कालीन समय में कला सीखने के मुश्किलों पर भी बातचीत किया।

रौशन आरा से प्रभावित होकर शन्नो खुराना ने संगीत सीखने का निश्चय किया। शुरूआती दौर में शन्नो खुराना के गुरु विनायक राव पटवर्धन ने संगीत के लिए एक मजबूत धरातल तैयार करवाया। नमन के प्रश्न थियेटर में उनका योगदान पर जबाब देते हुए शन्नो खुराना ने कहा कि थियेटर में संगीत के रूप में मैं अपने योगदान को देखती हूँ।

शीला भाटिया ने हीर रांझा में जगह दी, वहाँ संगीत की आवश्यक समझ नगण्य थी, तब हमने हीर रांझा में पंजाब के लोकगीतों के साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रयोग किया, उसमें राग हिंडोल, शिवरंजनी, बागेश्री इत्यादि का प्रयोग किया। इस तरह से संगीत के साथ म्यूजिक थियेटर की शुरुआत हुई, जिसे भारतीय ढंग का ओपेरा कहा गया, लेकिन यह भारतीय शैली के गीति-नाट्य से विलग है। ओपेरा गीति-नाट्य नहीं है।

ओपेरा में हाँ या ना कहने की भी एक अदा है। गीति-नाट्य में ऐद्रिच्छिक गति है, जबकि ओपेरा में स्वाभाविक गति है ।उन्होंने अपने बातचीत में 50 के दशक में भारत में घुमने के अनुभव को भी साझा किया। अपने रंगमंच के बारे में बताया कि कैसे हीर-रांझा से शुरुआत कर के उन्होंने सोनी महिवाल, जहाँआरा, चित्रलेखा और सुन्दरी को भारतीय ढंग के ओपेरा के रूप में प्रस्तुत किया।

सोनी महिवाल से लोगों को काफी उम्मीदें थीं। उसके प्रदर्शन में विघ्न भी आये पर उनके समूह ने इसे संभव बनाया। हीर रांझा काफी लोकप्रिय हो चुका था, बटवारे के बाद इस तरह की चीजें लोगों को काफी नौस्टैल्जिक करती थी। शन्नो जी ने स्वीकार किया कि गायन की तुलना में वाद्य-संगीत अधिक प्रयोगशील और नवाचारी रहा है।

रागों के रस के बारे में सवाल पूछने पर उन्होंने बताया कि यह रागों की प्रवृति और परिवेश के साथ-साथ संगीतकारों के समझ पर निर्भर करता है। हरेक राग की अपनी एक प्रवृति है और हरेक राग के अपने रस हैं। रंगमंच में हम वीभत्स को तो दिखा सकते हैं लेकिन गायन में वीभत्स रूप को रेखांकित करना मुश्किल है।

हीर रांझा, सोनी महिवाल, जहाँआरा, चित्रलेखा और सुन्दरी में लोक संगीत और भारतीय शास्त्रीय संगीत का संयोग ही उसे विशिष्ट बनाता है। शन्नो खुराना ने कहा कि विविध राग अपने में संवाद स्थापित कर शब्दों के माध्यम से दूसरे रागों में आवाजाही करते हैं। ओपेरा में बागेश्री का करूण अथवा श्रृंगार रस अलग-अलग है। उन्होंने कहा कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के नियमों के अनुशासन में रहकर ही उसमें हमने रस के स्तर पर बदलाव करने की कोशिश ओपेरा के माध्यम से की है।

अपनी बातचीत में उन्होंने टप्पा को ओपेरा का भाग बनाया। उन्होंने कहा कि जो मैं संगीत के माध्यम से कर सकती हूँ वो मैंने थियेटर के माध्यम से नहीं किया। मेरे थियेटर पर मेरा संगीत हावी रहा है। अपनी पुस्तकों (ख्याल गायिकी के विविध आयाम और राजस्थान का लोक संगीत) पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि क्लासिकल म्यूजिक लोक से आता है। इसके उदाहरण के रूप में रूपक ताल और सात मात्रा के ताल को केंद्र में रखा।

शन्नो खुराना ने अपनी बातचीत में बागेश्री में एक बंदिश ‘तुम्हरे कारण सबकुछ छाड़ो’ तथा द्रुत में ‘पीहरवा गरवा लागो तिहारी’ बंदिश सुनायी तथा इसके साथ उन्होंने जहाँआरा के गीतों को सुनाते हुए विविध रागों के प्रयोग और उसके बदलाव को रेखांकित किया।

आयोजन का धन्यवाद ज्ञापन रज़ा फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी अशोक वाजपेयी ने किया तथा रज़ा फाउंडेशन के आगामी कार्यक्रम का विवरण दिया।

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