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गोरखपुर में किसान लगाए बैठे थे योजनाओं की उम्मीद, लेकिन मोदी जी आए और चल दिए
मोदी सरकार के किसान हितैषी होने पर सबसे बड़ा सवालिया निशान यह है कि सरकार के खिलाफ 2018 में ही पांच बड़े किसान आंदोलन हो चुके हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव में भी इसका खामियाजा भी देखने को मिला है....
गोरखपुर से अतुल शुक्ला की रिपोर्ट
जनज्वार। 24 फरवरी को भारतीय जनता पार्टी के किसान मोर्चे के दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन के समापन पर प्रधानमंत्री सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के गृह नगर में उपस्थित रहे। इसी अवसर पर प्रधानमंत्री ने किसान सम्मान निधि योजना का औपचारिक शुभारम्भ करते हुए 101.0688 किसानों के बैंक खाते में योजना की पहली किश्त, दो हजार रुपये डिजिटली ट्रांसफर किये।
इनमें से पूर्वांचल के गोरखपुर मण्डल के गोरखपुर जिले से 39832, महाराजगंज से 52846, देवरिया से 65625, कुशीनगर से 42000 और बस्ती मण्डल के बस्ती जिले से 52437, संतकबीरनगर से 28416 व सिद्धार्थनगर से 63500 किसान चयनित किये गए, जिनके बैंक खाते में राशि का ट्रांसफर किया गया।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर अपने सम्बोधन में कहा कि उनकी सरकार में बिचौलियों-दलालों की कोई जगह नहीं है, साथ ही उन्होंने फिर से दोहराया कि अब वह समय नहीं है जब केन्द्र से जारी 1 रुपया किसान के पास पहुंचते-पहुंचते 15 पैसे में तब्दील हो जाता था। उन्होंने नये इंडिया की बात करते हुए किसान को अन्नदाता ही नहीं, बल्कि उर्जादाता भी बनाने की बात की।
इसी क्रम में उन्होंने पूर्ववर्ती सरकार की कर्जमाफी योजना पर कटाक्ष करते हुए कहा कि, कांग्रेस का पाप है जिससे किसान आज तक तबाह रहा है, लेकिन मोदी ऐसा पाप नही करता।
इससे पूर्व अधिवेशन में उपस्थित कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने पूर्ववर्ती सरकारों को कटघरे में खड़ा करते हुए 55 वर्ष बनाम 55 महीने की उपलब्धियों को गिनाया। उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारें अपने निजी हित के लिए देश की सुरक्षा से भी खिलवाड़ करने से नही चूकती थीं। उन्होंने उल्लेख किया कि किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत देश के 12 करोड़ किसानों को लाभान्वित किया जाएगा, जिसमें अकेले उत्तर प्रदेश से 2.14 करोड़ किसान शामिल होंगे।
इससे पहले जरा पूर्वी उत्तर प्रदेश, जहां से सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आते हैं और बीते दो दशक से सर्वोच्च सदन में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, वहां के किसानों की स्थिति जान लेते हैं। यहां चावल, गेहूं मुख्य फसल है, तो गन्ना बतौर कैश क्राफ्ट उगाया जाता है। आलम यह है कि यूपी के गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर लगभग तीस हजार करोड़ रुपये बकाया है, लेकिन प्रदेश सरकार गन्ना किसानों के बकाये तीस हजार करोड़ के सापेक्ष मात्र पांच सौ करोड़ रुपये की व्यवस्था ही करा पायी है।
पूर्व में मुख्यमंत्री ने इस विषय पर हल्के फुल्के अंदाज में टिप्पणी की थी कि प्रदेश के किसान कम गन्ना उगायें, क्योंकि लोगों में शुगर की बीमारी बढ़ रही है। चावल की फसल को इस वर्ष सूखे की मार झेलनी पड़ी है। नहरों के हालात बहुत अच्छे नही हैं, अधिकांश नहरें सिल्ट सफाई के अभाव में अपनी अवस्था पर रो रही हैं।
वहीं केंद्र सरकार के किसान हितैषी होने पर सबसे बड़ा सवालिया निशान यह है कि सरकार के खिलाफ 2018 में ही पांच बड़े किसान आंदोलन हो चुके हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव में भी इसका खामियाजा भी देखने को मिला है।
ऐसे में किसान अधिवेशन के माध्यम से पार्टी का बड़ा जुटान और किसान सम्मान निधि योजना की यह कवायद आगामी लोकसभा चुनावों में क्या असर दिखायेगी, यह देखना काफी दिलचस्प होने वाला है।