Begin typing your search above and press return to search.
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020

विकास भवन और सचिवालय से सिर्फ किमी. भर की दूरी पर रहने वाली ये जनता है विकास से कोसों दूर

Prema Negi
24 Jan 2020 2:30 AM GMT
विकास भवन और सचिवालय से सिर्फ किमी. भर की दूरी पर रहने वाली ये जनता है विकास से कोसों दूर
x

अमीरों को यह देखकर खूब मजा भी आता है कि कैसे एक तरफ वे हैं जो महल-अटारियों में रहते हैं और कहां ये गरीब जिनके पास रहने के लिए हौज पाइप है, यह नजारा यमुना नदी के किनारे आसानी से देख सकते हैं, सीलमपुर से लेकर जाने कहां तक...

नवल किशोर कुमार की रिपोर्ट

दिल्ली में चुनाव होने हैं। जीतने वाली पार्टी अथवा गठबंधन का नेता दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री होगा। फिलहाल यहां अरविन्द केजरीवाल सत्ता में हैं। उनके पास हैट्रिक लगाने का मौका तो है, मगर उनकी राह रोकने के लिए भाजपा ने पूरी तैयारी की हुई है। कांग्रेस भी इस बार कुछ अच्छा होने की आस में जीती नजर आ रही है, लेकिन दिल्ली के वे लोग जो दिल्ली में वोटर हैं, वे कैसी सरकार चाहते हैं? वर्तमान सरकार के कामकाज से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में उनकी राय क्या है, यही जानने के लिए जायजा लिया दिल्ली के वोटरों का।

ससे पहले कभी दिल्ली की चुनावी राजनीति पर कभी कुछ लिखा नहीं, इसलिए इच्छा हुई कि क्यों न शुरुआत सबसे अंतिम पायदान पर रहने वाले लोगों से की जाए। वजह यह कि कोई भी सरकार कितनी प्रभावी है या फिर उसकी नीतियां कितनी अच्छी हैं, इसका प्रमाण तो सबसे अंतिम पायदान वाला व्यक्ति ही बता सकता है, लेकिन दिल्ली में ऐसे लोगों को खोजना मुश्किल काम है। मुश्किल इसलिए कि दिल्ली में अंतिम पायदान वाला व्यक्ति कौन है, इसकी पहचान ही मुश्किल है।

केजरीवाल सरकार के विकास के दावों के पोस्टर, मगर हकीकत कुछ और

दिल्ली में प्रवास के अपने आरंभिक दिनों में एक रेहड़ी वाले को अंतिम पायदान वाला व्यक्ति मान लिया था, लेकिन अगले ही पल मेरे एक साथी ने मुझे करेक्ट किया। यह रेहड़ी वाला आदमी आपके यहां के दस बीघा जोत वाले किसान से अधिक समृद्ध है। उसके बच्चे अच्छी शिक्षा हासिल करते हैं।

खैर, आदमी जब ठान ले तो क्या नहीं मिलता है। मुझे भी समाज के अंतिम पायदान के लोग मिल गए। वह भी यमुना नदी के तीरे। लक्ष्मीनगर मेट्रो से उतरकर करीब एक किलोमीटर चलना पड़ा। सड़क किनारे सड़क का नाम भी दिख गया। नाम है, विकास मार्ग। इसी राह पर चलते हुए यमुना नदी पार करते ही दायीं तरफ दिल्ली सरकार का सचिवालय है।

सी इमारत में दिल्ली के मुख्यमंत्री भी बैठते हैं। थोड़ा सा और आगे बढ़ें तो विकास भवन भी मिल जाएगा। सड़क का नाम विकास मार्ग के पीछे सरकारों की यही मंशा रही होगी, लेकिन यकीन मानिए जिन लोगों की बात मैं कह रहा हूं, वे इस विकास भवन और सीएम सचिवालय के महज एक-डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर रहने के बावजूद विकास से कोसों दूर हैं। वे इसी देश के नागरिक हैं। ऐसा वे मानते हैं, क्योंकि उनके पास वोट देने को वोटर कार्ड है और आधार कार्ड भी। लेकिन नहीं है तो स्थायी पता। उनकी झुग्गी को एक नंबर दे दिया गया है। जैसे झुग्गी समूह क की झुग्गी संख्या 1, 2, 3....

स बस्ती में जाने के लिए विकास मार्ग पर चलते हुए यमुना नदी के तीर यानी यमुना बैंक आना होगा। आपको आने-जाने में आसानी हो, इसके लिए सरकार ने सीढ़ी की व्यवस्था कर रखी है। सीढ़ी को दिल्ली वाले 'जीना' भी कहते हैं, तो आपको इसी जीने से नीचे उतरना है।

तो मैं भी पहुंचा इस बस्ती में। एक महिला से पूछा कि यह कौन सी बस्ती है? मैं यह सोच रहा था कि इस पूरे इलाके का नाम क्या हो सकता है, यह भी कोई रहने लायक जगह है। यमुना नदी का रिवर बेस है। हिंदी में कहें तो यमुना नदी का पेट। महिला ने जवाब दिया - यमुना खादर। अब यह खादर शब्द मेरे लिए एक नया शब्द है।

पने 'मेरा नाम जोकर' फिल्म तो देखी ही होगा। संभव है कि आपने कुछ और फिल्में देखी हों, जिसमें गरीब हौज पाइप में रहते हैं। ऐसी कई सारी तस्वीरें भारत में गरीबी का प्रतिनिधित्व करती हैं। अमीरों को यह देखकर खूब मजा भी आता है कि कैसे एक तरफ वे हैं जो महल-अटारियों में रहते हैं और कहां ये गरीब जिनके पास रहने के लिए हौज पाइप है। आप यह नजारा यमुना नदी के किनारे देख सकते हैं। सीलमपुर से लेकर जाने कहां तक।

विकास के तमाम वादों—दावों के बीच यह है दिल्ली की गरीब जनता की हकीकत

सी दौरान एक अधेड़ मिले शिवचरण जी। जाति पूछने की जरूरत नहीं पड़ी। उन्होंने पहले ही बता दिया कि वे दलित हैं और उसी समाज से आते हैं जिस समाज की मायावती हैं। उनसे पूछा तो बताने लगे कि साहब यह कोई छोटी सी बस्ती थोड़े न है। यहां लाखों लोग रहते हैं।

प सब रहते कैसे हैं? क्या-क्या सुविधाएं हैं? पूछने पर कहते हैं, गरीब आदमी को कैसी सुविधा देती है यह सरकार साहब। आज ही यहां सरकार के यहां से कुछ लोग आए थे। वे झुग्गी खाली करने को कह गए हैं, लेकिन हम लोग जानते हैं कि चुनाव तक तो ये लोग हम लोगों को यहां से उजाड़ेंगे नहीं। यह पूछने पर कि विकास मार्ग पर कई सारे होर्डिंग लगे हैं। इनमें से एक भाजपा की तरफ से है - जहां झुग्गी, वहीं मकान। आप क्या मानते हैं।

ब चुनाव का मामला है साहब। कौन सी झुग्गी और कैसा मकान। ये लोग कुछ नहीं करेंगे। पीएम के नाम पर चुनाव लड़ रही है भाजपा। उन्हें बताना चाहिए कि देश के किस राज्य में उसने जहां झुग्गी, वहां मकान बनवाया है। आप ही बताइए कहीं किया है?

नता सवाल पूछती है और जब पूछती है तो फिर किसी की नहीं सुनती। आप भी सोचें कि यह एक बुनियादी सवाल है या नहीं?

मोदी सरकार के विकास के दावों से पटी पड़ी है दिल्ली

पकी बस्ती में किस-किस दल के नेता-कार्यकर्ता चुनाव प्रचार के लिए आ रहे हैं इन दिनों? मेरे इस सवाल पर अधेड़ महिला कमलेश हंस पड़ीं। उन्होंने कहा कि यह कोई अमीरों की बस्ती थोड़े न है कि नेता आएंगे। जिस दिन वोट देना होता है, उस दिन खाना और मिठाई लेकर आते हैं। कई बार तो पैसे भी बांट जाते हैं। हमसे बस इतने का ही लेना-देना है उनका।

शिवचरण से बातचीत के दौरान कई बातें सामने आयीं। एक तो यह कि वे नब्बे के दशक से ही यहां रहते आए हैं। उनकी खाट पर बैठी एक महिला कृष्णा ने बताया कि वह पिछले 12 वर्षों से यहां रह रही हैं। मूलत: वह हरियाणा के पलवल की रहने वाली हैं। पूछा कि आप लोगों का जीवन कैसे चलता है? दोनों ने लगभग एक स्वर में कहा कि हम खेती करते हैं और खेती से समय बच जाता है तो हम दिहाड़ी मजदूरी भी करते हैं।

खेती के लिए जमीन है आपके पास? इस सवाल के जवाब में शिवचरण ने कहा कि यहां यमुना नदी के किनारे की जमीन पर भूमाफियाओं का कब्जा है। कुछेक ने हरवे-हथियार के बल पर कब्जा कर रखा है तो कुछ ने सत्ता में बैठे लोगों के साथ मिलकर। सालभर के लिए जमीन उनसे लेते हैं। अब तो 50 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक लेते हैं। पूछा कि क्या वे इसकी कोई रसीद भी देते हैं? शिवचरण ने कहा कि नहीं। वे केवल अपनी डायरी में लिख लेते हैं। वही मालिक हैं और वही हमारे सरकार भी। उनकी मर्जी के बगैर हमारी बस्ती में एक पत्ता भी नहीं डोलता।

शिवचरण और कृष्णा बातें कर रहे थे कि इस बीच कई लोग जुट गए। सबने पहले तो यह समझा कि मैं किसी पार्टी का आदमी हूं और वोट मांगने आया हूं, लेकिन शिवचरण जी ने सबको बताया कि मैं एक पत्रकार हूं। किसी पार्टी के आदमी नहीं। फिर एक-एक कर सबने अपनी बात कही। सबकी एक ही मांग थी - सरकार बेशक हमलोगों को पानी न दे, बिजली ने दे लेकिन हमें रहने के लिए एक स्थायी आवास दे दे। हमारे बच्चे भी पढ़ना चाहते हैं और वे पढ़ भी रहे हैं, लेकिन अब हमें यहां से उजाड़ा गया तो हम कहां जाएंगे।

हरहाल, यमुना नदी के तीरे-तीरे रहने वालों की दास्तान यही है। बेइंतहा दुख व तकलीफ के बावजूद वे निराश नहीं हैं। पूछने पर कहते हैं कि यदि सरकार ने उजाड़ ही दिया तो क्या होगा, जिसने पैदा किया है, वह कोई न कोई ठौर देगा ही।

Next Story

विविध