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सरकार बहादुर और बड़े व्यापारिक घरानों की सांठगांठ से मिल्क फोर्टीफिकेशन के नाम पर दूध को भी दूहने का खेल बाजार को किस तरह अपनी जद में लेने वाला है
इसे विस्तार से बता रहे हैं कश्यप किशोर मिश्र
"रोटी, तेल, नमक, प्याज, दाल, दही, घी" एक सामान्य भारतीय किसान की थाली इतने से पूरी हो जाती थी। पर सरकार बहादुर तो सरकार बहादुर ठहरी। रोटी का आटा ब्रान्डेड हुआ, सरसों तेल के खिलाफ सधे कदमों से चले व्यापारिक चालों ने कब रिफाइंड तेल को सरसों तेल का स्थानापन्न बना दिया पता न चला।
नमक के साथ आयोडीन का खेला हुआ और रुपये दो रुपये किलो का नमक पच्चीस पचास और सौ रुपये किलो तक बिक रहा है, जिसमें वैक्यूम पैक्ड तक के शब्द जाल शामिल हैं। प्याज का हाल यह कि किसान के खेत में बिकने को तरसती प्याज सड़कों पर फेंक दी जाती है और पहली बारिश के साथ उसकी गिनती कब महंगी सब्जी में बदल जाती है पता नहीं चलता।
पर इस खेल का खिलाड़ी किसान नहीं, आढ़तिया होता है और किसान सिर्फ़ अपनी बदहाली पर रोता है। दाल तो पता नहीं कब से अमीरों की थाल की शोभा बन चुकी है। आखिर में बचे दही और घी जिसका जरिया दूध है।
हालांकि काूरपोरेट स्पान्सर्ड हमारी सरकार बहादुर, चाहे वो बजाज और बिड़ला की पोषित कांग्रेसी सरकारें रहीं हों या अडाणी अम्बानी पोषित भाजपा सरकारें सबने दूध को पैक्ड और ब्रान्डेड करने की बड़ी कोशिश की पर बात बनी नहीं।
कॉरपोरेट घरानों की दूध के बाजार पर गहरी नजर रही पर ग्वालों से पोषित दूध वितरण प्रणाली में कॉरपोरेट जगत चाह कर भी अपनी अनुमान के मुताबिक मुनाफा नहीं बना पाया। हालांकि इस मूल्क में दूध तक को दूह लेने के निराले खेल चलते रहे हैं।
मसलन एक आम पैक्ड दूध का इस्तेमाल करने वाला भारतीय यह जानता ही नहीं कि जिस टोन्ड मिल्क का वो इस्तेमाल करता है वो शुद्ध रूप से एक भारतीय जुगाड़ है। यह विशुद्ध भारतीय जुगाड़ू दूध है, जिसमें भैंस का स्कीम्ड दूध, पाऊडर दूध, पानी और और भी बहुत कुछ मिला दूध बना दिया जाता है।
एक आम भारतीय जिसे पाश्चुरीकृत और टोन्ड दूध का फर्क नहीं पता, उसे नहीं पता कि होमोनाइज्ड और स्कीम्ड के मानी क्या है वो बस एक फर्क जानता है फुल क्रीम दूध महंगा होता है क्योंकि उसमें क्रीम निकाला नहीं जाता और बाकी दूध सस्ते होते हैं, क्योंकि उनसे क्रीम निकाल ली जाती है। हालांकि सत्य यह भी नहीं है। उसे टोन्ड और प्राकृतिक दूध के फर्क से भी शायद ही मतलब हो, पर बात इससे बन नहीं रही थी।
बाजार के खिलाड़ियों की दूध से कमाई की कोशिशों पर ग्वालों का दूध पानी फेर देता था, लिहाजा सरकार बहादुर ने अबकी बार एक आजमाया और सफल तरीका आजमाने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं, जिसका नाम है "मिल्क फोर्टीफिकेशन"।
आदमी के भीतर के डर को बाजार में तब्दील करने का खेल पुराना है। नमक और आयोडीन नमक का फर्क और उससे की जा रही मुनाफाखोरी इसका सीधा उदाहरण है ठीक उसी तरह दूध में भी और पोषक तत्व जोड़ कर इसके बाजारीकरण का खेल "मिल्क फोर्टीफिकेशन" है।
इसे यूं समझें, एक रुपये किलो से कम कीमत पर मौजूद सामान्य नमक बेचना अपराध है, लिहाज़ा उससे बीस पच्चीस गुना महंगी कीमत पर उपभोक्ता आयोडीन युक्त नमक खरीदता है। ठीक वैसे ही सरकार बहादुर की चाल है कि दूध में कुछ पोषक तत्वों को मिलाकर बिना फोर्टिफाइड किए दूध न बेचा जाए।
दूध के इस फोर्टीफिकेशन की प्रक्रिया दूध को नमक की तरह पूरी तरह एक ब्रान्डेड उत्पाद में बदल देगी और गौ पालकों द्वारा दूध का बेचा जाना, चूँकि वह फोर्टिफाइड नहीं होगा, एक गैरकानूनी कृत्य होगा।
सरकार बहादुर बड़े व्यापारिक घरानों के सांठगांठ से बड़े सधे कदमों से भय का बाजार बनाने लगी है जो जल्दी ही आपके सामने होगा, पर एक जागरुक तबके में सरकार की मंशा भांप विरोध भी शुरू हो चुका है। एप्पल कॉरपोरेशन के पूर्व वैज्ञानिक और वैदिक ट्री फांउडेशन के अध्यक्ष अभिनव गोस्वामी सवाल खड़े करते हैं कि दूध अपने आप में एक सम्पूर्ण आहार है, फिर इसे और फोर्टिफाइड करने की अनिवार्यता किसानों से उनके उत्पाद को छीनकर बाजार के हवाले कर देना है।
अनिवार्य फोर्टिफिकेशन के विरोधी मुखर हैं और वो सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करने लगे हैं, पर बड़ा सवाल एक किसान और इस मुल्क के आम गृहस्थ का है कि क्या सरकारें सिर्फ और सिर्फ आम आदमी के निवाले को महंगा और महंगा करते जाने के लिए ही हैं या बाजार से इतर एक किसान के हक को भी सोचती हैं।