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राजनीति

विधानसभा चुनावों की घोषणा हरियाणा में हुई, लेकिन टिकटों की दलाली का तांता दिल्ली में लगा

Prema Negi
28 Sep 2019 2:43 PM GMT
विधानसभा चुनावों की घोषणा हरियाणा में हुई, लेकिन टिकटों की दलाली का तांता दिल्ली में लगा
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हरियाणा में भाजपा के करीब आधा दर्जन नेता अपने परिवार वालों के टिकट लेने के लिए हर तरीके अपना रहे हैं। अगर भाजपा रिश्तेदारों को टिकट नहीं देने के फैसले पर कायम रहती है तो उसे बड़े नेताओं का विरोध भी झेलना पड़ सकता है...

रोहतक से मनदीप पुनिया की रिपोर्ट

जनज्वार, रोहतक। कल 27 सितंबर को ही भाजपा की एक नेत्री अनीता खांडा ने सोनीपत से भाजपा के सांसद रमेश कौशिक पर टिकट के लिए 3 करोड़ रुपये मांगने का आरोप लगाया है। खैर, चुनाव में बड़ी और स्थापित पार्टियों से टिकट पाने के लिए कई तरह की जुगाड़बाजी चलती है। कोई दिल्ली के दरवाजे खटखटाता है तो कोई नागपुर पहुंचता है। वैसे इस मौसम में हरियाणा के संभावित भावी विधायक अहमदाबाद और हिमाचल दर्शन पर भी निकल रहे हैं। जो हरियाणा की क्षेत्रीय ताकतों में विश्वास करते हैं, वे कभी चंडीगढ़ की बस पकड़ रहे हैं, तो कभी सिरसा-हिसार की तरफ दौड़ लगा रहे हैं।

स भागादौड़ी के मौसम को हरियाणवी शास्त्रों में ‘दलाल काल’ काल कहा गया है, जिसमें संभावित विधायक पार्टी के बड़े नेताओं के दरबारियों की सेवा में बिछ जाते हैं और दाल न गलने पर दरबार छोड़कर कहीं दूसरी जगह बिछने की जुगत भिड़ाते हैं।

रिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी इस ‘दलाल काल’ के बारे में कहते हैं, “दिल्ली में दलालों का बहुत बड़ा नेटवर्क बैठा है, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन रोचक ये है कि लोग धार्मिक नेताओं को, संतों को, संन्यासियों को भी तलाशते हैं कि शायद इनके माध्यम से ही टिकट मिल जाए। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने तो खुद बयान देकर यह स्वीकार किया है कि इस तरह की चीजें हैं। कोई अनिल जैन के नाम की दुकान खोले बैठा है, तो कोई अमित शाह के नाम की।”

पाश की कविता में सबसे खतरनाक सपनों का मर जाना है, तो हरियाणा की राजनीति में बड़े नेताओं के लिए सबसे खतरनाक होता है, ‘अपने परिवार वालों के लिए टिकट का जुगाड़ न कर पाना।’ अभी हरियाणा में भाजपा के करीब आधा दर्जन नेता अपने परिवार वालों के लिए टिकट लेने के लिए हर तरीके अपना रहे हैं। अगर भाजपा रिश्तेदारों को टिकट नहीं देने के फैसले पर कायम रहती है तो उसे बड़े नेताओं का विरोध भी झेलना पड़ सकता है।

हीरवाल के बड़े भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने अपनी बेटी आरती राव को टिकट दिलाने के लिए खुलेआम मंत्री पद से इस्तीफा देने की धमकी दे डाली है। इतना ही नहीं, उन्होंने बयान दिया है कि चंडीगढ़ में बैठे दो कौड़ी के नेता टिकटों के फैसले लेते हैं।

स मामले पर राजनीतिक विशेषज्ञ सुनील फगेड़िया कहते हैं, “राव इंदरजीत हरियाणा की राजनीति का बड़ा नाम हैं। बड़ा इतना कि दक्षिण हरयाणा की 14 सीट्स के समीकरण इन्हीं के इर्द—गिर्द घूमते हैं, लेकिन 2014 में बीजेपी में चले गए और इनके बीजेपी में जाने से लगभग 70 प्रतिशत यादव वोट बीजेपी में शिफ्ट हो गया था। अब अहीरवाल का 40 प्रतिशत यादव वोट बीजेपी का कोर वोटर बन चुका है, तो बीजेपी भी राव की स्थिति को देखकर इनकी एक नहीं सुन रही। अब यदि राव बीजेपी छोड़ते भी हैं तो वो उतना बड़ा फैक्टर नहीं होंगे, जितना बड़ा पहले हुआ करते थे। इसलिए बीजेपी उनकी धमकियों पर कोई ध्यान नहीं दे रही और राव इंदरजीत को इस इलेक्शन में अप्रासंगिक सा बना दिया है।”

इंदरजीत के अलावा बीजेपी के दूसरे बड़े नेता अपने आधा दर्जन रिश्तेदारों के लिए टिकट मांग रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेन्द्र सिंह अपनी पत्नी प्रेमलता के लिए, केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर अपने बेटे देवेंद्र सिंह, सांसद धर्मबीर सिंह अपने बेटे या भाई, सांसद रमेश कौशिक अपने भाई देवेंद्र कौशिक और सांसद रतन लाल कटारिया अपनी पत्नी बंतो कटारिया के लिए विधानसभा की टिकट के लिए आंखें दिखा रहे हैं।

से में अगर भाजपा ने किसी भी एक नेता के परिवार को टिकट देकर दूसरे नेताओं के रिश्तेदारों की टिकट पर कैंची चलाई तो भाजपा को बहुत बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है और भाजपा के कई बड़े नेताओं के नाराज होने के कारण भाजपा का करीब 20 सीटों पर नुकसान होना तय है।

हीं हमेशा सुरक्षित सा दिख पड़ने वाला कांग्रेस का परिवारवाद भी अबकी बार हिचकोलें मार रहा है। भूपेंद्र हुड्डा के परिवार में उनके बेटे दीपेंद्र टिकट की दौड़ में हैं तो अकेले कुलदीप बिश्वोई के भाई, बेटे और पत्नी समेत परिवार से चार लोग टिकटों के लिए रेस लगा रहे हैं। दिपेंद्र की टिकट यात्रा में कोई मुश्किलें जान नहीं पड़तीं। लेकिन बिश्नोई परिवार से एक ही टिकट दिए जाने की बात चल रही है। कांग्रेस कैंप से खबर है कि 55 टिकटें लगभग तय हो गई हैं, बस 35 पर ही मोहर लगनी बाकी है।

गर देवीलाल के वंशजों यानी चौटाला परिवार की बात करें तो शायद इस बार उनके परिवार में यह ऑफर चल रहा है कि जो भी कोई 25 साल से ऊपर होगा, उसे ही चुनाव लड़वाया जाएगा। किसी को इनेलो में तो किसी को जेजेपी में एडजैस्ट करने की पूरी कोशिश होगी। कई भाई-बंध भाजपा और कांग्रेस से भी टिकट पा लेंगे। देवीलाल परिवार से अभय चौटाला, नैना चौटाला, दुष्यंत चौटाला, दिग्विजय चौटाला, कर्ण चौटाला, अर्जुन चौटाला, रणजीत सिंह, आदित्य देवीलाल और एकआध रिश्तेदार जो 25 साल से ऊपर होगा उसे भी कहीं न कहीं अडजेस्ट कर दिया जाएगा।

रियाणा के राजनीतिक परिवारों में टिकटों की मारा-मारी के बीच अगर कोई अच्छा कार्यकर्ता टिकट के लिए प्रयास करेगा, तो उसे इन परिवारों के पित्रों का पाप लगेगा।

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