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राजनीति

आज सुबह 10.30 बजे सुप्रीम कोर्ट का आयेगा फैसला कि मंदिर बनेगा या ​मस्जिद

Prema Negi
8 Nov 2019 6:24 PM GMT
आज सुबह 10.30 बजे सुप्रीम कोर्ट का आयेगा फैसला कि मंदिर बनेगा या ​मस्जिद
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छह अगस्त से लगातार 40 दिन तक हुई सुनवाई के बाद कल सुबह 10.30 बजे सुप्रीम कोर्ट की पीठ सुना देगी फैसला कि अयोध्या में मंदिर बने या मस्जिद, इस संवेदनशील मुद्दे पर फैसले से पहले देशभर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम...

जेपी सिंह की टिप्पणी

योध्या भूमि विवाद पर उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ शनिवार 9 नवंबर को अपना फैसला सुबह 10.30 बजे सुनाएगी। पांच जजों की संविधान पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। अभी इस फैसले को अंतिम नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसके बाद भी पुनर्विचार याचिका और क्यूरेटिव याचिका का विकल्प पक्षकारों के लिए उपलब्ध रहेगा।

स फैसले पर देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नजर रखी जा रही है। हालांकि राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर फैसले से पहले पूरे देश में सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त कर दिये गए हैं। इतना ही उत्तर प्रदेश के सभी स्कूल कॉलेज 3 दिनों के लिए बंद कर दिये गये हैं।

योध्या पर आने वाले फैसले को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर अपील की है कि 'माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा अयोध्या प्रकरण के सम्बन्ध में दिए जाने वाले सम्भावित फैसले के दृष्टिगत प्रदेशवासियों से अपील है कि आने वाले फैसले को जीत-हार के साथ जोड़कर न देखा जाए। यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि प्रदेश में शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण वातावरण को हर हाल में बनाए रखें।'



च्चतम न्यायालय के इतिहास में दूसरी सबसे लंबी सुनवाई हुई। लगातार 40 दिन संवैधानिक बेंच बैठी और मैराथन सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित कर लिया गया था। 40 दिन हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों ने जोरदार और दमदार दलीलें पेश कीं। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में सबसे लंबी सुनवाई केशवानंद भारती से सबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट में चली थी। तब 68 दिन सुनवाई चली थी। संवैधानिक मूल ढांचा आदि की व्याख्या तब संवैधानिक पीठ ने की थी। अबकी बार दूसरी सबसे लंबी सुनवाई हुई है।

स मामले के 3 मुख्य याचिकाकर्ताओं में से दो निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान विवादित जमीन पर अपना मालिकाना हक जता रहे हैं। जहां निर्मोही अखाड़े की दलील है कि लंबे समय से भगवान राम की सेवा करने की वजह से उसे जमीन मिलनी चाहिए, वहीं रामलला विराजमान का कहना है कि इस जमीन का मालिकाना सिर्फ देवता की ही हो सकती है। हालांकि संविधान पीठ के समक्ष जमीन के मालिकाने का पुख्ता सबूत कोई भी पक्ष पेश नही कर पाया।

साल 1528 में मुगल बादशाह बाबर ने विवादित जगह पर मस्जिद का निर्माण कराया। इसे लेकर हिंदुओं को दावा है कि यह जगह भगवान राम की जन्मभूमि है और यहां पहले एक मंदिर था। साल 1853 में इस जगह के आसपास पहली बार दंगे हुए। 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई।

साल 1885 में महंत रघुबीर दास राम चबूतरा पर एक मंदिर का निर्माण करना चाहते थे, लेकिन ब्रिटिश इंडिया की फैजाबाद जिला अदालत ने रघुबीर दास को मंदिर निर्माण की इजाजत नहीं दी। कहा जाता है कि राम चबूतरा 1855 में बनाया गया था। राम चबूतरा को भगवान राम के जन्म स्थान के रूप में पूजा जाता था।

स मामले में 22-23 दिसंबर 1949 की रात बहुत महत्वपूर्ण है, जब पुजारी अबिराम दास और स्थानीय साधुओं के समूह ने बाबरी मस्जिद के अंदर राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों को रख दिया। उन्होंने मस्जिद के इस केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्तियों की पूजा की। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उस समय यूनाइटेड प्रोविंस के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को इसके बारे में लिखा, लेकिन मस्जिद के अंदर से मूर्तियां नहीं हटाई गई।

29 दिसंबर 1949 को फैजाबाद जिला अदालत ने इस जगह को विवादित स्थान घोषित कर दिया और इसे बंद कर दिया गया। आने वाले सालों में दो महत्वपूर्ण पक्षों ने जमीन पर अपना-अपना दावा पेश किया।

र्ष 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने ये कहते हुए दावा पेश किया कि वो सदियों से इस जगह की देखरेख और भगवान राम की पूजा कर रहा है। 1961 में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी दावा ठोका। उन्होंने कहा कि ये जमीन उनकी है, क्योंकि मुगलों से उन्हें वक्फ प्रॉपर्टी के रूप में मिली थी। मुकदमा जारी रहा।

र्ष 1986 में फैजाबाद डिस्ट्रिक्ट जज के आदेश पर विवादित स्थान का ताला खोल दिया गया। दो दिन बाद मुस्लिम वकीलों के एक समूह ने ताला खोलने के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने "यथास्थिति" बनाए रखने का आदेश दिया, लेकिन ताला खुलने की घटना ने बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि विवाद को राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया।

र्ष 1989 में एक और पक्ष- रामलला विराजमान ने जमीन पर दावा पेश किया और कहा कि बाबरी मस्जिद की यह जगह भगवान राम का जन्मस्थान है। रामलला के पक्षकारों ने कहा था कि पूरी 2.77 एकड़ जमीन भगवान राम की जन्मभूमि है और "प्राचीन काल" से पूजा का स्थान रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी मामलों की एक साथ सुनवाई करने का निर्णय किया, लेकिन राजनीतिक रूप से, राम जन्मभूमि आंदोलन तेज होता चला गया।

देशभर में हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे भड़के गए, जिनमें 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए। साल 2002 में हिंदू कार्यकर्ताओं को ले जा रही ट्रेन में गोधरा में आग लगा दी गई, जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई। इसकी वजह से हुए दंगे में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए।

राम जन्मभूमि आन्दोलन के दौरान विश्व हिंदू परिषद ने राम जन्मभूमि न्यास का गठन किया, जिसने विवादित जगह के आसपास 42 एकड़ जमीन को खरीदा। 1993 में केंद्र सरकार ने राम जन्मभूमि न्यास द्वारा ली गई 42 एकड़ सहित, विवादित जगह के आसपास 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया।

र्ष 2010 में सालों की सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को फैसला सुनाया। फैसले में विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बांट दिया गया। जजमेंट के मुताबिक तीनों केंद्रीय गुंबद वाली जगह रामलला को दिया गया।

कोर्ट ने कहा कि रामलला को इस जगह का अधिकार है, क्योंकि आस्था है कि यह भगवान राम का जन्मस्थान है। निर्मोही अखाड़ा को राम चबूतरा, सीता रसोई और भंडारा की जगह दी गई। जमीन का एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया।कोर्ट ने आश्नवासन दिया कि 1993 में सरकार द्वारा अधिग्रहण की गई जमीन का एक हिस्सा उन्हें दिया जा सकता है। मामले में किसी पक्ष ने, जमीन के बंटवारे के लिए नहीं कहा था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से कोई संतुष्ट नहीं था। तीनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।

साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई। साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया। बीजेपी के शीर्ष नेताओं पर आपराधिक साजिश के आरोप फिर से बहाल किए। 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा। पैनल को 8 सप्ताह के अंदर कार्यवाही खत्म करने को कहा।

1 अगस्त 2019 को मध्यस्थता पैनल ने रिपोर्ट प्रस्तुत की। 2 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले का समाधान निकालने में विफल रहा। 6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई। 16 अक्टूबर, 2019 को अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।

योध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में ऐतिहासिक फैसले से पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने यूपी के डीजीपी और मुख्य सचिव से राज्य के हालात पर अपडेट लिया। जस्टिस गोगोई ने सूबे के डीजीपी ओपी सिंह और मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी को मुलाकात के लिए आज दिल्ली बुलाया था। इस दौरान उन्होंने पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश दिए।

स्टिस गोगोई ने अपने चेंबर में यूपी के दोनों टॉप अफसरों से सुरक्षा और कानून-व्यवस्था की जानकारी ली। चीफ जस्टिस के साथ दोनों अधिकारियों की यह मीटिंग करीब डेढ़ घंटे तक चली। अयोध्या केस पर बनी संवैधानिक पीठ में शामिल सभी पांचों जज इस बैठक में मौजूद थे।

स बीच अयोध्या मामले के संभावित फैसले के मद्देनजर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को सतर्क रहने की हिदायत दी है। सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सलाह दी गई है कि सभी संवेदनशील स्थानों पर पर्याप्त सुरक्षाकर्मी तैनात करें। उत्तर प्रदेश में अर्धसैनिक बलों की 40 कंपनियों को भी उतारा गया है। यूपी सरकार को आतंकी हमले के खतरे के प्रति भी आगाह किया गया है। वहीं सोशल साइट्स पर कोई अफवाह न फैले, इसलिए इन पर भी नजर रखने का आदेश है।

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