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आंदोलन

मोदी जी गोरखाओं की जान क्या गाय से भी सस्ती है?

Janjwar Team
10 Aug 2017 2:45 AM IST
मोदी जी गोरखाओं की जान क्या गाय से भी सस्ती है?
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ममता सरकार को लगता है कि ऐसा करके वह आंदोलनकारियों का मनोबल को तोड़ देगी, मगर आम जनता ने कमर कस रखी है कि पृथक गोरखालैंड से कम पर वह समझौता नहीं करेगी...

दार्जिलिंग, जनज्वार। 'गौहत्या पर बढ़—चढ़कर बोलने वाले प्रधानमंत्री मोदी गोरखाओं के मरने पर क्यों नहीं बोल रहे हैं। क्या इंसान का मूल्य गाय से भी सस्ता है।' यह बात गोरखालैंड जन सहयोग समिति सिक्किम के अध्यक्ष भवानी प्रधान ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कही। प्रधान समिति के कई पदाधिकारियों और तकरीबन 50 लोगों की टीम के साथ पैदल यात्रा कर आमरण अनशनकारियों का मनोबल बढ़ाने के लिए कालिम्पोंग पहुंचे हुए थे।

पृथक गोरखालैंड की मांग के लिए जारी बेमियादी बंद के 56 दिन बीत जाने के बावजूद केंद्र की मोदी सरकार द्वारा मौन धारण करके रखने पर समिति ने चेताते हुए कहा कि अगर केंद्र इसी तरह पृथक गोरखालैंड के लिए जारी बेमियादी हड़ताल पर मौन रही तो अब सिक्किम और दार्जिलिंग की आम जनता भी आमरण अनशन करने को मजबूर हो जाएगी।

कालिम्पोंग में 7 अगस्त को आमरण अनशनकारियों के समर्थन में समिति ने एक जुलूस निकाला, जिसमें सैकड़ों लोगों ने शिरकत की। केंद्र के साथ—साथ आंदोलनकारियों ने ममता सरकार को भी आड़े हाथों लिया। कहा कि आम जनता को भूखों मारने के लिए बंगाल सरकार पहाड़ पहुंचने वाले खाद्यान्न को रास्ते में ही रोक रही है। ममता सरकार को लगता है कि ऐसा करके वह आंदोलनकारियों का मनोबल को तोड़ देगी, मगर आम जनता ने कमर कस रखी है कि पृथक गोरखालैंड से कम पर वह समझौता नहीं करेगी।

गौरतलब है कि पृथक गौरखालैंड के लिए पिछले 20 दिन से आमरण अनशन कर रहे लोगों की हालत दिन—ब—दिन खराब होती जा रही है। राजू विश्वकर्मा, अजीत रोका और सागर दियाली की हालत नाजुक होने के बाद उन्हें आॅक्सीजन और सलाइन चढ़ाई गई। डॉक्टर कह रहे हैं कि उनकी हालत बहुत खराब है, मगर बावजूद इसके अनशनकारी अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं और दवाइयां लेने से इंकार कर रहे हैं।

अनशनकारी कह रहे हैं कि जब तक सरकार पृथक गोरखालैंड के गठन की घोषणा नहीं कर देती वो अपना अनशन वापस नहीं लेंगे, फिर चाहे उनकी जान ही क्यों न चली जाए। मगर न तो ममता सरकार इस मामले में कोई ठोस कदम उठा रही है और न ही केंद्र की कान में ही जूं रेंग रही है।

इन हालातों में अगर अनशनकारियों के साथ कोई अप्रिय घटना हो जाती है, तो जाहिर तौर पर उसके लिए सरकार जिम्मेदार होगी।

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