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99 फीसदी महिला वैज्ञानिक उपेक्षा और पक्षपातपूर्ण रवैये की शिकार!
संस्थानों की विभिन्न वैज्ञानिक कमेटियों में शायद ही कभी किसी महिला वैज्ञानिक को रखा जाता है और अधिवेशनों/कांफ्रेंस/सेमीनार में भी वक्ताओं के चयन के समय भी इनकी की जाती है उपेक्षा, नतीजतन असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर 42 प्रतिशत महिलायें हैं कार्यरत तो सिर्फ 23 प्रतिशत महिलायें हैं प्रोफ़ेसर...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज की वैज्ञानिक डॉ. जेसिका वेड ने हाल में ही प्रकाशित एक लेख में लिखा है कि “महिलाओं को विज्ञान की शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना व्यर्थ है क्योंकि वही तंत्र आगे चलकर उन्हें मौके नहीं देता, इनसे पीछा छुड़ाना चाहता है और उपेक्षित रखता है।”
सेल स्टेम सेल नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के लिए अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के 38 देशों में स्थित 541 विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में लाइफ साइंसेज में विद्यार्थियों और वरिष्ठ प्रोफेसरों में महिलाओं की संख्या का आकलन किया गया। लाइफ साइंसेज में विद्यार्थियों की कुल संख्या में से 50 प्रतिशत से अधिक महिलाओं की संख्या थी, जबकि वरिष्ठ प्रोफ़ेसर में पद पर महिलाओं की संख्या 25 प्रतिशत से भी कम थी।
इस अध्ययन का निष्कर्ष है कि विज्ञान के क्षेत्र में किसी भी जिम्मेदार पद पर महिलाओं को रखने में लगभग सभी विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में बहुत लैंगिक भेदभाव और पक्षपात किया जाता है। संस्थानों की विभिन्न वैज्ञानिक कमेटियों में शायद ही कभी किसी महिला वैज्ञानिक को रखा जाता है और अधिवेशनों/कांफ्रेंस/सेमीनार में भी वक्ताओं के चयन के समय भी इनकी उपेक्षा की जाती है। इसका नतीजा है कि असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर 42 प्रतिशत महिलायें काम कर रही हैं, और केवल 23 प्रतिशत महिलायें प्रोफ़ेसर हैं।
इंग्लैंड की प्रतिष्ठित संस्था रॉयल सोसाइटी ऑफ़ केमिस्ट्री के अंदरूनी सर्वेक्षण से स्पष्ट होता है कि स्नातक के छात्रों में 44 प्रतिशत महिलायें हैं, पर प्रोफ़ेसर के पद पर केवल 9 प्रतिशत महिलायें हैं। लन्दन के साइंस एंड कम्युनिटीज नामक संस्था की निदेशक जो रेनोल्ड्स ने अपने स्वतंत्र अध्ययन में पाया कि विज्ञान के क्षेत्र में 99 प्रतिशत महिलायें उपेक्षा और पक्षपात पूर्ण रवैये का शिकार होती हैं। एक अन्य अध्ययन का निष्कर्ष था कि भौतिक शास्त्र में लिंग भेद समाप्त करने में सैकड़ों वर्ष लग जायेंगे।
उच्च और प्रभावी पदों पर विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की अनुपस्थिति का स्पष्ट असर नोबेल प्राइज में दिखता है। वर्ष 2019 के विज्ञान से सम्बंधित (भौतिकी, रसायन शास्त्र, चिकित्सा और अर्थशास्त्र विज्ञान) नोबेल पुरस्कारों को कुल 12 व्यक्तियों को दिया गया, जिसमें केवल महिला थी। इस वर्ष अर्थशास्त्र विज्ञान का नोबेल पुरस्कार भारतीय मूल के लेकिन अब अमेरिकी नागरिक अभिजीत बनर्जी, उनकी फ्रेंच-अमेरिकी पत्नी एस्थर डूफलो और अमेरिकी अर्थशास्त्री माइकल क्रेमर को सम्मिलित तौर पर दिए जाने की घोषणा की गयी है।
वर्ष 1901 से नोबेल प्राइज का आरम्भ किया गया (economics sciences, यानी अर्थशास्त्र विज्ञान के नोबेल प्राइज का आरम्भ वर्ष 1969 से किया गया) और तब से विज्ञान के क्षेत्र में केवल 22 महिलाओं को यह पुरस्कार मिला है, जबकि कुल 688 वैज्ञानिकों को पुरस्कार दिए गए हैं। इसमें भी आधे यानी 11 पुरस्कार वर्ष 2000 के बाद दिए गए हैं, जबकि इसी अवधि के दौरान 185 पुरुष वैज्ञानिक यह पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।
महिला वैज्ञानिकों को वर्ष 1901 से अब तक भौतिक विज्ञान में 3, रसायन शास्त्र में 5, चिकित्सा विज्ञान में 12 और अर्थशास्त्र विज्ञान में 2 पुरस्कार मिले हैं। विज्ञान में जितने नोबेल पुरस्कार दिए गए उनमें से महज 3 प्रतिशत महिलाओं के हिस्से में आये। अर्थशास्त्र में यह महज 2 प्रतिशत है जबकि चिकित्सा विज्ञान में 6 प्रतिशत।
सबसे बुरी हालत भौतिक विज्ञान की जिसमें महज 3 महिलाओं को नोबल पुरस्कार मिले हैं – वर्ष 1903 में मेरी क्यूरी, फिर 60 वर्षों बाद वर्ष 1963 में एम गोएप्पर्ट मायेर को और इसके 55 वर्षों बाद वर्ष 2018 में डी स्ट्रीकलैंड को। यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि वर्ष 1901 से 2018 तक भौतिक शास्त्र का नोबेल पुरस्कार 112 बार और कुल 209 वैज्ञानिकों को दिया गया है।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोपेनहेगेन में भौतिक शास्त्र के क्षेत्र में वैज्ञानिक लिसेलोते जौफ्रेड ने विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कारों में लैंगिक असमानता पर विस्तृत अध्ययन किया है और इसका सांख्यिकीय विश्लेषण भी किया है। इस वर्ष नोबेल पुरस्कारों की घोषणा के पहले ही सांख्यिकीय विश्लेषण के आधार पर उन्होंने पूर्वानुमान लगाया था कि विज्ञान के क्षेत्र में 11 पुरुषों और एक महिला को पुरस्कार मिलेगा।
विस्तृत अध्ययन से पहले उन्हें पता था कि औसतन 55-60 वर्षीय वैज्ञानिक को पुरस्कार मिलता है और पुरस्कार ऐसी खोज के लिए दिया जाता है जो उसने 15 से 20 वर्ष पहले किया हो। शुरू में उन्हें यह भ्रम था कि इस उम्र तक अधिकतर महिला वैज्ञानिक अनुसन्धान छोड़ चुकी होती हैं और 20 वर्ष पहले महिला वैज्ञानिकों की संख्या भी कम थी, शायद इस वजह से उन्हें नोबेल पुरस्कार कम मिले।
फिर उन्होंने 1901 से 2018 के बीच अमेरिकी विश्वविद्यालयों में विज्ञान की वरिष्ठ फैकल्टी का आकलन किया, जिससे उन्हें स्पष्ट हुआ कि वरिष्ठ फैकल्टी में कम से कम 10 प्रतिशत महिलायें हमेशा रहीं हैं। पर, नोबेल प्राइज पाने वालों में 10 प्रतिशत महिलायें नहीं रहीं हैं, इसका सीधा सा मतलब है कि उनके साथ पक्षपात किया जाता है। उनके सांख्यिकीय विश्लेषण के अनुसार महिलाओं के साथ 96 प्रतिशत तक पक्षपात किया जाता है।
लिसेलोते जौफ्रेड के विश्लेषण के अनुसार केवल पुरुषों को रसायन शास्त्र, अर्थशास्त्र और भौतिक शास्त्र में किसी वर्ष नोबेल पुरस्कार मिले इसकी संभावना 80 प्रतिशत है, जबकि चिकित्सा विज्ञान में यह संभावना 60 प्रतिशत तक है। लिसेलोते जौफ्रेड के अनुसार नोबेल प्राइज द्वारा हम विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐसी दुनिया बना रहे हैं, जिसमें कुछ श्वेत पुरुषों का वर्चस्व है और इस कारण ढेर सारे रोचक और प्रभावी अनुसंधान की उपेक्षा करते जा रहे हैं।