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विमर्श

किस देश में है कितना योग्य (अ) प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति, कोरोना ने बतायी हकीकत

Prema Negi
21 April 2020 5:31 AM GMT
किस देश में है कितना योग्य (अ) प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति, कोरोना ने बतायी हकीकत
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कोरोना महामारी के संकट की घड़ी में योग्य और अयोग्य शासकों की पहचान हो रही है, मगर असल सवाल यह है कि इस संकट के टलने के बाद क्या जनता इनकी हकीकत को याद रख पायेगी, या फिर से दोहरायेगी ऐसी गलतियां...

महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार। हरेक देश का शासक योग्य और सक्षम हो, ऐसा हमेशा नहीं होता। आखिरकार अमेरिका में ट्रम्प, ब्राज़ील में जैर बोल्सोनारो, भारत में नरेन्द्र मोदी और इंग्लैंड में बोरिस जॉनसन सत्ता पर काबिज हैं ही। पर हाल के कोरोना संकट ने यह तो साबित कर ही दिया है कि किस देश का शासक योग्य है और किसका नहीं।

जैसे-जैसे कोरोना महामारी बढ़ती जा रही है इन शासकों की अक्षमता या सक्षमता जाहिर होती जा रही है।

शुरू में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प कोरोना वायरस का मजाक उड़ाते रहे, इसे चीनी वायरस बताते रहे, इसे यूरोपियन यूनियन और डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा फैलाया जाने वाला अफवाह बताते रहे और यहाँ तक की मीडिया की कपोल कल्पना भी बताते रहे। इन सबके बीच वे लगातार आत्मप्रशंसा करते रहे, मिसाइलें और दूसरे रक्षा उपकरण बेचते रहे।

कोरोनावायरस ने उनके अहंकार, आत्ममोह के साथ अज्ञानता को फिर से उजागर कर दिया है। इस पूरे दौर में ट्रम्प, अपने पूरे प्रशासन और वरिष्ठ सलाहकारों के लिए शर्मिन्दगी से अधिक कुछ नहीं हैं। जिसने भी उनके विरुद्ध कुछ कहा उसे तुरंत नौकरी से बाहर कर दिया गया। ट्रम्प से पहले दुनिया किसी भी संकट में नेतृत्व के लिए अमेरिका की तरफ देखती थी, पर अब तो हालात यहाँ तक पहुँच गए हैं कि अधिकतर छोटे और गरीब देश भी कहने लगे हैं कि अमेरिका पहले अपनी हालत तो सुधार ले।

निकारागुआ के राष्ट्रपति डेनियल ओर्टेगा का कोरोना संक्रमण से निपटने में रिकॉर्ड अच्छा नहीं है। इस संकट की घड़ी में भी वे एक महीने से अधिक जनता से दूर रहे। उसके बाद जब वापस आये तो अपने टीवी प्रसारण में लॉकडाउन या सोशल डीस्टेसिंग को दरकिनार करते हुए लोगों को समूहों में रहने का पाठ पढ़ा गए।

नके अनुसार निकारागुआ में केवल तीन मामले कोविड 19 के थे, तीनों विदेशी थे, और उनमें से एक की मौत हो गयी। ओर्टेगा ने अपने संबोधन में अमेरिका का हवाला देते हुए कहा कि कोविड 19 मिलिट्री, नायकत्व और दुनिया भर में बर्बरता फैलाने के कारण ईश्वर के अभिशाप है। ये सारी शक्तियां दुनिया में धाक ज़माना चाहती हैं, इसलिए ईश्वर के सन्देश का माध्यम कोविड 19 है। अमेरिका में निकारागुआ के बहुत सारे अप्रवासी हैं, उनके बारे में ओर्टेगा ने कहा की उनकी सहायता अमेरिका क्या करेगा, वह तो अपने की लोगों को नहीं बचा पा रहा है।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन तो पहले से ही ट्रम्प की श्रेणी में थे, पर अब तो दोनों नेताओं की अज्ञानता, अक्षमता और बडबोलेपन में अंतर बताना भी मुश्किल है। बोरिस के लिए देश कहीं नहीं है, उनका अपना सपनों का संसार है जिसमें तथ्यों की कोई भी जगह नहीं है। यही कारण है कि वे भी कोविड 19 के नियंत्रण के लिए इसके पूरी तरीके से फैलने का इंतज़ार करते रहे।

स संकट में इतना तो स्पष्ट है की वे इससे निपटने में पूरी तरह से नाकामयाब रहे हैं और इस दौर में भी केवल समाचारों में बने रहना चाहते हैं। कहा जाता है कि बोरिस जॉनसन अपना राजनीतिक गुरु विंस्टन चर्चिल को मानते हैं, पर तथ्य तो यह है कि उनकी राह पर चलते हुए बोरिस बस हंसी के एक पात्र बन गए हैं, जिन्हें संयोग से सत्ता मिल गयी है।

फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रों ने इस संकट की घड़ी में जनता को भरोसा दिलाया, जरूरत पर सख्ती भी दिखाई, जनता से लगातार संवाद किया और सारी परिस्थितियों पर अपना नियंत्रण बनाए रखा। फ्रांस की जनता को यह महसूस कराया की उन्होंने अदृश्य शत्रु के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी है। उन्होंने सख्ती से लॉकडाउन के पालन के लिए पुलिस को विशेष अधिकार दिए और अवहेलना करने वाले से भारी-भरकम जुर्माना वसूलने का प्रावधान भी रखा। इन सबके साथ ही राष्ट्रपति ने जनता और व्यापार जगत को यह विशवास दिलाया कि उनके सारे आर्थिक नुकसान की भरपाई सरकार करेगी और इसके लिए देश की सारी वित्त व्यवस्था का नियंत्रण मेक्रों ने अपने हाथ में रखा है।

र्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल के भाषणों और महामारी प्रबंधन से ऐसा लगता है मानो वे ऐसी ही परिस्थितियों के लिए बनीं हैं। उन्होंने एक वैज्ञानिक से चांसलर तक का सफ़र तय किया है, जाहिर है वे किसी भी खतरे की जनता के समक्ष वैज्ञानिक विवेचना भी करती हैं।

कोरेंटाइन से वापस आने के बाद अधिकतर वक्तव्यों में कोरोनावायरस का विज्ञान जनता के सामने सरल शब्दों में प्रस्तुत करती हैं, इसके खतरे और रोकथाम की वैज्ञानिक विवेचना भी करती हैं। फिर इसी का हवाला देकर जनता से रोकथाम के लिए जरूरी कदमों के पालन का आह्वान करती हैं। उनके भाषणों का अंत किसी आत्मप्रशंसा से सराबोर वाक्यों से नहीं होता, बल्कि वे कहती हैं, अपना ख्याल रखिये, अपनों का ख्याल रखिये। कोरोना संक्रमण के इस दौर में भी उनके तथ्य आधारित निर्णय क्षमता के कारण उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है।

टली दुनिया में कोरोना संक्रमण के संदभ में सर्वाधिक प्रभावित देशों में एक है, फिर भी प्रधानमंत्री गिसेप्पे कोंटे अपने कठोर निर्णयों के कारण लगातार लोकप्रिय हो रहे हैं। उन्होंने अन्य यूरोपीय देशों की अपेक्षा पहले ही सख्त लॉकडाउन का निर्णय लिया था। इसके बाद से से लगातार टेलीविज़न संदेशों के माध्यम से जनता से एकजुटता की अपील करते रहे हैं।

हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बोंन और पोलैंड के शासक ने इस विपदा का उपयोग अपनी ताकत को बढ़ाने में किया है। इन दोनों देशों ने सबसे पहले दूसरे देशों की सीमा से लगाने वाले अपने बॉर्डर को सील कर दिया था, जिससे हजारों नागरिक आज तक दूसरे देशों में फंसे हैं। विक्टर ओर्बोंन ने अपने लिए असीमित समय तक प्रधानमंत्री बने रहने का रास्ता साफ़ कर लिया है, और ऐसे लोकतंत्र को “असिहष्णु लोकतंत्र” का नाम दिया है।

नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रत्ते ने इस संकट के दौर में जनता के नेता की छवि बना ली है। उन्होंने जनता की मांग को देखते हुए बहुत सख्त लॉकडाउन लगाए बिना ही स्थितियों को नियंत्रित किया है, और खुद जाकर बाजार में मुनाफाखोरी और चोरबाजारी का आकलन करते रहे हैं।

स संकट की घड़ी में योग्य और अयोग्य शासकों की पहचान आसान है, पर संकट के बाद क्या जनता इस आकलन को याद रख पायेगी?

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