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वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा मौतें भारत में औसत उम्र हुई ढाई वर्ष कम, पर मोदी के मंत्री बोले एयर पॉल्यूशन से मौत तो दूर कोई बीमार तक नहीं होता
विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा मौते होती हैं भारत में तो पर्यावरण राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो संसद में देते हैं जानकारी वायु प्रदूषण से नहीं मरता है कोई और न ही होता है बीमार, भूतपूर्व पर्यावरण मंत्री और पेशे से चिकित्सक डॉ हर्षवर्धन भी संसद में करते हैं यही जानकारी साझा...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
यूनिवर्सिटी ऑफ़ इलेनॉइस के वैज्ञानिक डीन स्च्रौफ्नागेल के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि वायु प्रदूषण का स्तर कम होते ही मृत्यु दर और स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव कुछ दिनों में ही दिखने लगता है। यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि वायु प्रदूषण से सम्बंधित सारे अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु गुणवत्ता से सम्बंधित अनुमोदित मानकों के अनुरूप किये जाते हैं, जबकि भारत में जो मानक हैं वे इससे लगभग चार गुणा अधिक हैं।
डीन स्च्रौफ्नागेल के अनुसार अध्ययन से स्पष्ट होता है कि वायु प्रदूषण कम होते ही इसका असर तुरंत अस्थमा, हार्ट अटैक, कम वजन के बच्चों का पैदा होना, समय से पहले बच्चे का पैदा होना इत्यादि पर स्पष्ट होने लगता है। यही नहीं स्वास्थ्य समस्या को लेकर बच्चों का स्कूल से अनुपस्थित रहना या फिर बड़ों का कार्यालयों से अनुपस्थित रहने में भी बहुत फर्क पड़ता है। इस अध्ययन को एनल्स ऑफ़ द अमेरिकन थोरेसिक सोसाइटी नामक जर्नल के नवीनतम अंक में प्रकाशित किया गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण से विश्व की लगभग 90 प्रतिशत आबादी प्रभावित है और यह समस्या एक आपातस्थिति है जो धीरे-धीरे से लोगों को मार रही है। इसी वर्ष प्रकाशित स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर 2019 नामक रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण से सबसे अधिक मौतें भारत में होतीं हैं। यहाँ वायु प्रदूषण के प्रभाव से लोगों की औसत उम्र ढाई वर्ष कम हो चुकी है और वर्ष 2017 में यहाँ लगभग 12 लाख लोगों की मृत्यु इसके प्रभाव से हुई। इससे पहले भी विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत अनेक संस्थानों की रिपोर्ट भारत में वायु प्रदूषण द्वारा होने वाले अघोषित नरसंहार की ऐसी ही तस्वीर पेश कर चुकी हैं।
इसके विपरीत भारत सरकार लगातार इन रिपोर्टों को महज एक षड्यंत्र मानती है। हाल में ही 2 दिसम्बर को पर्यावरण राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो ने तो संसद को केवल यह जानकारी ही नहीं दी कि वायु प्रदूषण से कोई मरता नहीं है, बल्कि यह भी बता दिया कि इससे कोई बीमार भी नहीं होता। उनके अनुसार, देश में ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जिसके अनुसार वायु प्रदूषण मृत्यु या फिर बीमारियों के लिए सीधा जिम्मेदार ठहराया जा सके। आश्चर्य यह है कि भूतपूर्व पर्यावरण मंत्री और पेशे से चिकित्सक डॉ. हर्षवर्धन भी लगातार संसद को यही जानकारी देते रहे हैं।
डीन स्च्रौफ्नागेल के अनुसार वायु प्रदूषण के दौरान होने वाले हार्ट अटैक का सबसे बड़ा कारण कोरोनरी हार्ट से सम्बंधित समस्याएं हैं और इन समस्याओं की जड़ में सांस लेने वाली वायु में ऑक्सीजन की कमी है। वायु प्रदूषण के बढे स्तर के समय वायु में प्रदूषणकारी पदार्थों की अधिक मात्रा होने के कारण ऑक्सीजन की सांद्रता कम रहती है और इसका सीधा असर हार्ट अटैक पर पड़ता है, पर वायु प्रदूषण के कम होते ही यह समस्या तुरंत कम हो जाती है।
इस अध्ययन में बहुत सारे उदाहरण भी दिए गए हैं, जब वायु प्रदूषण के कम होते ही बेहतर स्वास्थ्य की स्थितियां उत्पन्न हो गयीं। आयरलैंड में बंद माहौल में धूम्रपान निषेध के प्रावधान के लागू होते ही स्ट्रोक में 32 प्रतिशत, हार्ट अटैक में 26 प्रतिशत और परोक्ष तौर पर धुएं से होने वाली मृत्यु में 13 प्रतिशत की कमी आ गयी। एटलांटा में आयोजित 1996 ओलिंपिक के दौरान अनेक हिस्सों में मोटरवाहनों को 17 दिनों के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था। उस दौरान अस्पतालों के आपातकालीन विभाग में सामान्य दिनों की तुलना में 11 प्रतिशत कम लोग गए और बच्चों की बीमारियों में 40 प्रतिशत तक की कमी आंकी गयी।
बीजिंग ओलिंपिक के दौरान आसपास के उद्योगों और परिवहन को लगभग 2 महीने के लिए बंद कर दिया गया था। उस दौरान वहां अस्थमा और हार्ट अटैक के मामले कम हो गए थे। नाइजीरिया में घरों में कम प्रदूषण करने वाले स्टोब को बांटने के बाद से स्वास्थ्य बच्चे पैदा हो रहे हैं और पहले सप्ताह में शिशुओं की मृत्यु दर में बहुत कमी आयी है।
दक्षिण-पश्चिम अमेरिका में एक बड़े से स्मेल्टर उद्योग में 8 महीने तक श्रमिकों की हड़ताल चली, इस कारण यह स्मेल्टर उद्योग बंद रहा। इन आठ महीनों के दौरान इस पूरे क्षेत्र में मृत्यु दर में 2।5 प्रतिशत की कमी आंकी गयी थी। अमेरिका में ही उटाह स्टील प्लांट 13 महीनों के लिए बंद किया गया था। उस दौरान आसपास के क्षेत्रों की आबादी में निमोनिया, प्लयूरिसी, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसे रोगों में 50 प्रतिशत की कमी आयी थी और समय से पहले पैदा होने वाले बच्चों की संख्या में भी प्रभावी कमी दर्ज की गयी। इस दौरान कम बच्चे बीमार पड़े और स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
इस अध्ययन का निष्कर्ष यह है कि वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए जो खर्च किया जाता है, उसकी तुलना में समाज को कई गुणा अधिक लाभ होता है, इसलिए वायु प्रदूषण नियंत्रण सरकारों या समाज पर कोई आर्थिक बोझ नहीं है। अमेरिका में क्लीन एयर एक्ट 25 वर्ष पहले लागू किया गया था और अबतक लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर वायु प्रदूषण नियंत्रण पर खर्च किया जा चुका है, पर इससे होने वाला आर्थिक लाभ इससे लगभग 32 गुणा अधिक है। ऐसे अध्ययनों और शोधपत्रों की कमी नहीं है, पर क्या हमारे देश की सरकार कभी वायु प्रदूषण को एक समस्या समझकर इसके हल खोजने का प्रयास करेगी?