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समाज

'अब अबला-अबला बोलना बंद कर दो, नहीं तो हम महिलाएं तबला बजा देंगे'

Janjwar Team
8 March 2020 1:11 PM GMT
अब अबला-अबला बोलना बंद कर दो, नहीं तो हम महिलाएं तबला बजा देंगे
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जनवादी महिला समिति से जुड़ी महिलाओं ने कहा आज कि महिलाओं को अपने अधिकारों को समझने की आवश्यकता है। हमें पुरुष वर्चस्ववादी सत्ता से अपने अधिकारों को सुरक्षित करने हैं...

अल्मोड़ा से विमला की रिपोर्ट

जनज्वार। पूरे विश्व में आज 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। दुनियाभर की महिलायें इस दिवस को महिला अधिकार दिवस के तौर पर मनाती हैं। दुनिया में सबसे पहले 1909 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस आयोजित किया गया था जिसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को वोट का अधिकार दिलाना था। उस समय अधिकतर देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था।

त्तराखण्ड के अल्मोड़ा की महिलाओं ने भी इस अवसर पर एक कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें दर्जनों महिलाओं ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम के दौरान जनवादी महिला समिति से जुड़ी महिलाओं ने कहा आज कि महिलाओं को अपने अधिकारों को समझने की आवश्यकता है। हमें पुरुष वर्चस्ववादी सत्ता से अपने अधिकारों को सुरक्षित करने हैं।

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कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाली एसडब्यूओ की प्रमुख रीता आर्या ने कहा भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत दयनीय है। संविधान में महिलाओं को इतने सारे अधिकार मिले हैं। क्या उन अधिकारों से महिलाओं की सुरक्षा हो रही है? अगर किसी महिला के साथ कोई घटना हो जाती है तो हमारा पुलिस प्रशासन वहां तब पहुंचता है जब अनहोनी हो जाती है। पुलिस प्रशासन को शर्म आनी चाहिए।

रीता कहती हैं, 'जबतक औरतें आगे नहीं आयेंगी, अपने अधिकारों को नहीं जानेंगी, सड़कों पर नहीं उतरेंगी तबतक कोई सुनवाई नहीं होगी। जो हम महिलाओं को अबला बोलते हैं अब अबला-अबला बोलना बन्द कर दो, नहीं तो हम महिलाएं उनका तबला बजा देगे। अब महिलाएं अबला नहीं हैं वह घर से निकल रही हैं। हर क्षेत्र में पुरुषों से बेहतर कर रही हैं, उन तमाम गुलाम मानसिकता वाले लोगों को समझने की जरूरत है। अब हम महिलाएं दासी नहीं है। न ही हम अब गुलाम बनना चाह रहे हैं। हम अपने अधिकारों को समझ चुके हैं।

अवसर पर जनवादी महिला समिति की अध्यक्ष सुनीता पाण्डे ने कहा जिस तरह से आज हमारे देश में महिला विरोधी हिंसा, यौन अपराध इतनी तेजी से बढ़ रहे हैं वह हमारे लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। एक तरफ हमारी केन्द्र सरकार व राज्य सरकार शराब को सस्ती कर रही है लेकिन महिलाओं के संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। जो प्रावधान कानून में बनाए गए हैं सरकार उनको भी सुनिश्चित नहीं कर रही है।

सुनीता पाण्डे आगे कहती हैं, 'कार्यस्थल पर महिलाओं से यौन हिंसा, पोक्सो, घरेलू हिंसा से सुरक्षा के लिए कई कानून बने हैं। लेकिन इनका सख्ती से पालन ना होने के कारण पीड़िता को न्याय नहीं मिल रहा। सरकार को पुलिस प्रशासन को संवेदनशील बनाने और जस्टिस बर्मा कमेटी को तत्काल लागू करने की जरूरत है।

सीएए को लेकर वह कहती हैं, 'जिस तरह से बहुमत की सरकार धर्म के नाम पर सीएए लागू कर रही है, अखिल भारतीय जनवादी समिति इसका कड़ा विरोध करती है। हम धर्म के आधार पर किसी नागरिक को बांटना नहीं चाहते। महिलाओं को पुरुष से कमतर माना जा रहा है, ऐसी मनुवादी सरकार को खारिज करने और नया विकल्प खोजने की जरूरत है ताकि संसद और विधानसभाओं में भी हमारा प्रतिनिधित्व हो सके। सरकार द्वारा जो भी कानून बनें, वे संवेदनशीलता के साथ बनें।'

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सामाजिक कार्यकर्ता आशा भारती ने कहती हैं, 'जो लम्बे समय से महिलाओं के बीच काम कर रहे हैं वो कहते हैं आज भी महिलाओं को दोएम दर्जे का समझा जाता है। महिलाओं की स्थिति हर जगह एक जैसी है हमारे देश में लिंगभेद को लेकर बहुत सारी विकृतियां हैं। आज महिलाओं के साथ सबसे ज्यादा हिंसा घर में ही हो रही है। भावनात्मक, शारीरिक, मानसिक हर तरह से महिलाओं को प्रताड़ित किया जा रहा है। पति अपनी पत्नी को निजी संपत्ति समझता है। वो समझता है कि मैं इसे मारू काटूं,कहीं भी फेंकू मेरी संपत्ति है।

भारती आगे कहती हैं, 'हमें यह समझने की जरुरत है कि हम घर में ही सुरक्षित नहीं है। हमें सबसे पहले खुद को घर में सुरक्षित करने की आवश्यकता है। अगर हम पहाड़ में महिलाओं की स्थिति की बात करें तो यहां भी महिलाओं की स्थिति दयनीय ही है। यहां पर सारा काम महिलाएं करतीं हैं- घर का, खेती, किसानी। महिला पूरा काम किसान की तरह करती हैं लेकिन उसे किसान का दर्जा नहीं दिया जाता। वह केवल हल नहीं जोतती फिर भी किसान पुरुष को ही कहा जाता है। आज महिलाओं को अपने संवैधानिक अधिकारों को समझने की जरुरत है। अपने अधिकारों को लेने की जरुरत है।'

हीरा देवी कहती हैं, 'सभी महिलाओं को एकजुट होकर अपनी लड़ाई को लड़ने की जरूरत है। पहाड़ में नशा, लड़कियों के खिलाफ हिंसा, उत्पीड़न हो रहा है उसके खिलाफ हमें एकजुट होकर लडना चाहिए। तमाम महिलाएं ऐसी हैं जिनका शोषण पति द्वारा किया जा रहा है। महिला दिवस तभी सार्थक होगा जब महिलाएं सही मायने में अपने अधिकारों को जानेंगी और उसके लिए संघर्षरत होंगी।

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