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जांच का आदेश देकर कौन न्यायाधीश चाहेगा जज लोया की गति को प्राप्त होना
जज लोया की हत्या के बाद जो जज एमबी गोसावी आए, जिनको जज लोया वाली जिम्मेदारी सौंपी गयी, उन्होंने बगैर एक दिन का समय गवांये तत्काल भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को सोहराबुद्दीन मामले से बरी कर दिया। और उनका आजतक बाल बांका भी नहीं हुआ...
राग दरबारी
अगर आप जज लोया मौत मामले की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिका रद्द होने से परेशान हैं, उद्देलित महसूस कर रहे हैं। आपको मिचली आ रही है और लग रहा है, नहीं जी अब नहीं रह सकते इस जालिम दुनिया में जहां अदालतें भी साहेब की चाकर हो गयीं तो आपके लिए नीचे लिखी बातें काम आ सकती हैं। इससे आपमें फिलिंग कूल का भाव प्रबल होगा और इस खबर के सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान दे पाएंगे।
पहली बात, जान सबको प्यारी होती है, चाहे हम हों या आप। वह भी हाड़—मांस के बने हैं। तो जजों को भी अपनी जान प्यारी थी। जिनका प्यार अपनी जान से थोड़ा कम हुआ वे चल बसे। और एक नहीं पूरे दस। कुल दस लोग इस मामले में 2005 से 2014 के बीच 9 सालों के अंतराल में समय—समय पर मारे गए। तो सवाल है कि क्या तीन जजों की सुप्रीम कोर्ट वाली बेंच ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें नंबर के मृतकों की सूची में आने के लिए जांच का आदेश देती।
जज लोया की मौत मामले की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज
उपरोक्त बात भरोसे के साथ इसलिए कही जा सकती है कि जज लोया की हत्या के बाद जो जज एमबी गोसावी आए, जिनको जज लोया वाली जिम्मेदारी सौंपी गयी, उन्होंने बगैर एक दिन का समय गवांये तत्काल भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को सोहराबुद्दीन मामले से बरी कर दिया। और उनका आजतक बाल बांका भी नहीं हुआ। वे अपने बाल—बच्चों के साथ हंसी खुशी का जीवन जी रहे हैं। अमित शाह के बरी होने के बाद से इस मामले में अबतक एक भी हत्या नहीं हुई।
सोहराबुद्दीन अनवर हुसैन शेख़ की 26 नवंबर 2005 की फ़र्ज़ी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई थी। हत्या के एक चश्मदीद गवाह रहे तुलसीराम प्रजापति की भी दिसंबर 2006 में एक 'मुठभेड़' में मार दिए गए। उसके बाद सोहराबुद्दीन की पत्नी क़ौसर बी की भी हत्या हो गयी। इन सभी हत्याओं के आरोप गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर लगे, जिसके बाद अमित शाह की गिरफ्तारी हुई।
खैर! इसी बात का गौर नहीं कर पाए जस्टिस लोया तो 10वें नंबर के मृतक में शामिल कर दिए गए। जज लोया मुंबई हाईकोर्ट में जज थे और उनकी 4 जजों की उपस्थिति में संदिग्ध मौत हो गयी। लोया की मौत के मौके पर मौजूद रहे जजों का कहना था कि उनकी मौत हॉर्ट अटैक से हुई पर बाद के आए पड़तालों से पता चलता है कि जज लोया की मौत, असल में हत्या थी।
इसी जांच का आदेश सुप्रीम कोर्ट के जजों को आदेश देना था कि सच में मौत थी या हत्या। पर उन्होंने याचिका ही खारिज कर दी। अदालत ने चारों जजों गवाही को सराहा और कहा कि उन पर संदेह करना जजों पर संदेह करना है, इसलिए हम दुबारा जांच के आदेश नहीं दे सकते।
पर अदालत में होने वाली इन औपचारिक तकरीरों से अलग भी जज सोचते हैं। वे अपनी जान के बारे में सोचते हैं, जज लोया की जा चुकी जान के बारे में सोचते हैं और आखिर में वे सोचते हैं जज एमबी गोसावी के बारे में जो भाजपा अध्यक्ष को हत्या के आरोपों से बरी कर चैन की जिंदगी जी रहे हैं।
ऐसे में सोचिए, कोई भी समझदार और शांतिप्रिय व्यक्ति हत्या का सिलसिला दुबारा क्यों शुरू करवाना चाहेगा, जो एमबी गोसावी के फैसले के बाद से बंद है।
और होता भी क्या है जांच—पड़ताल से? क्या हो गया गुजरात नरसंहार की जांच पड़ताल से? देश कहता रहा मोदी हत्यारे हैं, 2 हजार मुस्लिमों का कत्लेआम कराया है और मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए। सब आरोपों से सुप्रीम कोर्ट ने बरी भी कर दिया। इससे तो अच्छा है कि जांच—पड़ताल हो ही न। क्योंकि मेरी चिंता यह है कि कहीं यह जांच पड़ताल अगला प्रधानमंत्री अमित शाह को न बना दे।
दूसरी बात कहीं इस फेरे में बेचारे तीनों जज पर बन आती तो। आखिर उनकी जान कौन बचाता? सवाल यह भी है कि जब 4 जजों की उपस्थिति में जज लोया 1 दिसंबर 2014 में नागपुर में संदिग्ध हालत में मर सकते हैं, वह भी एक साथ आॅटो में जाते हुए तो ये जज तो बेचारे दिल्ली जैसे अकेलेपन वाले शहर में रहते हैं जहां पड़ोसी नमस्ते—बंदगी करने को भी समय जाया करना कहता है।
फिर जज लोया मामले में ही क्या उखड़ गया, सब टांय—टांय फिस्स हो गया। पूरा देश लगा रहा और जजों ने एक मिनट में याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता को धमकाया, डराया और अदालत से भगाया अलग से।
वैसे जजों के इस रवैए को भी निगेटिव लेने की जरूरत नहीं है। मैं तो मानता हूं जजों ने मामले को डिसमिस कर याचिकाकर्ताओं की भी जान बचाई। वे मुझे मानवीय जान पड़ते हैं। कहा भी जाता है कि जब सिस्टम फेल हो जाए तो इंसानियत ही इंसान की आखिरी माई—बाप बची रह जाती है।