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जनज्वार विशेष

पश्चिम बंगाल में जूट की खेती घाटे में करने को मजबूर किसान, सरकार एक पैसे की नहीं करती सरकारी खरीद

Prema Negi
24 Aug 2019 4:47 PM GMT
पश्चिम बंगाल में जूट की खेती घाटे में करने को मजबूर किसान, सरकार एक पैसे की नहीं करती सरकारी खरीद
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जूट की खेती नादिया के किसानों के लिए कपास की फसल की तरह घाटे का सौदा बनती जा रही है, मगर सरकार के कान में जूं नहीं रेंग रही, सरकार शायद तब थोड़ा सतर्क होगी जबकि कपास किसानों की तरह यहां भी आने लगेंगी आत्महत्या की खबरें...

जनज्वार। पश्चिम बंगाल के जूट किसान घाटे में खेती करने को विवश हैं। उनकी आर्थिकी दिन—ब—दिन खराब होती जा रही है। उन्हें न तो राज्य सरकार की तरफ से किसी तरह का प्रोत्साहन या मदद दी जाती है और न ही केंद्र सरकार की तरफ से। किसान रोड ​किनारे से जूट का आयात-निर्यात करते हैं। यहां तक कि सरकार ने उनके लिए एक मंडी तक नहीं बनायी है, जहां से वे जूट को खरीद-बेच सकें।

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में जूट किसानों की यह दुर्दशा तब है, जबकि यह जूट की खेती का बहुत बड़ा हब है। जूट से बोरे, रस्सियां, चारपाइयों समेत और भी कई अन्य तरह के सामान बनाये जाते हैं। मगर ताज्जुब तो यह है कि सरकार की तरफ से जूट की कोई कीमत तक तय नहीं की जाती, किसान अपने हिसाब से कीमतें तय कर अपनी फसल बेचते हैं।

टाईदार किसानों को तो जूट की खेती बर्बाद होने पर और तबाही झेलनी पड़ती है। जूट किसान कहते हैं फसल पर सरकार की तरफ से कोई राहत पैकेज भी नहीं दिया जाता, मगर जो थोड़ा बहुत राहत मिलती भी है, वह खेत के मालिक को मिलती है न कि बटाई पर खेती करने वालों को।

इस तरह तैयार किया जाता है जूट (फोटो : राहुल एम)

श्चिम बंगाल का नादिया जिला जूट की खेती का बहुत बड़ा हब है। यहां पहुंची जनज्वार टीम ने जब किसानों से उनके हालात का जायजा लेना चाहा तो उन्होंने जो कहा वह शासन—प्रशासन की उनके प्रति बेरुखी को साफ—साफ दर्शाता है। यह भी कि चाहे सरकार किसी की भी हो सभी उनके प्रति उदासीन रहे हैं।

जूट की खेती नादिया के किसानों के लिए कपास की फसल की तरह घाटे का सौदा बनते जा रही है, मगर सरकार के कान में जूं नहीं रेंग रही। सरकार तब थोड़ा सतर्क होगी, जबकि कपास किसानों की तरह जूट किसानों की भी आत्महत्या की खबरें आयेंगी।

किसानों के मुताबिक एक बीघा में जूट की खेती में तकरीबन 15 हजार की लागत आ जाती है, जबकि जो फसल बिकती है वह बामुश्किल 10 हजार की भी नहीं होती। ऐसे हालातों में हम लोग कब तक सर्वाइव कर पायेंगे कहा नहीं जा सकता, मगर सरकार इस तरफ ध्यान देने को तैयार नहीं है।

जूट किसानों की व्यथा जानने के लिए देखिए नादिया जिले से अजय प्रकाश की ग्राउंड रिपोर्ट

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