भाजपा शासित राज्यों ने मजदूर अधिकार किये खत्म, लेकिन केरल ने कहा बरकरार रहेंगे
केरल के श्रम मंत्री ने कहा कि निवेश को बढ़ावा देने का कोई भी कदम श्रमिकों के अधिकारों को नकारने की कीमत पर नहीं होना चाहिए। सरकार ने अब ऐसे फैसले लिए हैं जिनसे व्यवसायों को लाइसेंस प्राप्त करना और कार्य करना आसान हो जाएगा...
जनज्वार ब्यूरो। कोरोना वायरस की महामारी के बीच जहां भाजपा शासित राज्यों की सरकारों ने तमाम श्रम कानूनों को रद्द किया हैं, वहीं केरल सरकार इसकेे विपरीत कदम उठा रही है। केरल के श्रम मंत्री टी.पी. रामकृष्णन ने साफ किया कि उनकी सकार श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करते हुए निवेश को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक कदम उठा रही है।
द हिंदू से बात करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य ने हाल के हफ्तों में नियोक्ताओं द्वारा सामना किए गए मुद्दों को संबोधित करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
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बता दें कि कोविड-19 महामारी को देखते हुए निवेश को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश (यूपी), मध्य प्रदेश (एमपी) और गुजरात सहित कुछ राज्यों ने पिछले सप्ताह आने वाले कुछ वर्षों के लिए प्रमुख श्रम कानूनों को निलंबित करने का फैसला किया था।
इंटक (INTUC) राज्य इकाई के अध्यक्ष आर. चंद्रशेखरन ने द हिंदू को बताया कि एक समय में 12-घंटे काम के घंटे निर्धारित करना जब देश इतिहास के सबसे बड़े नौकरी घाटे का सामना कर रहा था, तो निंदनीय था।
चंद्रशेखरन ने कहा, 'महामारी से पहले भी भारत में 45 वर्षों में सबसे अधिक बेरोजगारी दर थी। इसके अलावा हमारे पास लाखों लोग हैं जो विदेशों में अपनी नौकरी खो चुके हैं और वापस आ रहे हैं, साथ ही साथ कई प्रवासी कर्मचारी हैं जो अब बेरोजगार हैं। उन्हें अधिक रोजगार प्रदान करने के बजाय अब शेष कर्मचारियों को और अधिक काम के साथ बोझिल करने का प्रयास किया जा रहा है।'
उन्होंने आगे कहा, यूपी, एमपी और गुजरात सरकारें संसद द्वारा अधिनियमित श्रम कानूनों में मौलिक परिवर्तन करके संविधान का उल्लंघन कर रही हैं। इंटक इसके खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन करेगा।
सीपीआई (एम) राज्यसभा सांसद एलाराम करीम श्रम पर संसदीय स्थायी समिति के सदस्य हैं। वे कहते हैं, 'यूपी, एमपी और गुजरात की सरकारों के फैसले श्रम कानूनों को कम करने के लिए पिछले छह वर्षों में मोदी सरकार के प्रयासों की एक निरंतरता है।