क्या जज लोया जैसी रहस्यमयी बना दी जाएगी पुलिस अधिकारी राजेश साहनी की संदिग्ध मौत
क्यों किया गया फोरेंसिक रिपोर्ट को नष्ट, एक पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा सार्वजनिक तौर पर आईजी असीम अरुण को दोषी बताने के बावजूद सरकार क्यों ले रही कोई एक्शन
इस मामले में क्यों नहीं कोई एफआईआर हुई दर्ज, 30 मई को ही सीबीआई जांच के आदेश दिए जाने के बावजूद सीबीआई नहीं कर रही जांच, क्या सीबीआई पर भी इस जांच में दबाव है या फिर सरकार इस मसले के शांत होने का इंतजार कर रही है
पूरे मामले की पड़ताल कर रहे हैं सत्येंद्र कुमार यादव
जनज्वार, लखनऊ। उत्तर प्रदेश के जाबांज पुलिस अफसर राजेश साहनी की आत्महत्या की गुत्थी उलझती जा रही है। उलझती गुत्थी का पहला संदेह सरकार के जांच कराने के तरीके और पुलिस के रवैये दोनों पर जा रहा है।
राजेश साहनी को जानने वाले, रिश्तेदार और मीडिया पूछ रही कि राजेश साहनी की संदिग्ध मौत मामले की जांच क्यों नहीं की जा रही? संदिग्ध मौत को खुदकुशी करार दिए जाने की जल्दबाजी किस पुलिस अधिकारी और सरकार के महकमे को है? क्या दाल में कुछ काला है, कहीं राजेश साहनी दूसरे जज लोया तो नहीं बन गए हैं।
वरिष्ठ पत्रकार और फिल्म डायरेक्टर विनोद कापड़ी ने ट्वीट कर कुछ सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने लिखा है कि- "UP ATS के अफ़सर की तरफ़ से मीडिया में ख़बरें plant करवाई जा रही हैं कि राजेश साहनी ने पारिवारिक कारणों से आत्महत्या की और सूबुत के तौर पर दिखाए जा रहे हैं चार मैसेज और चार कॉल। सवाल है कि क्यों नहीं अब तक FIR हुई? CBI जाँच कब शुरू होगी? असीम को क्यों नहीं हटाया गया?
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के आईजी असीम अरुण पर एटीएस के एक इंस्पेक्टर ने तानाशाही और प्रेशर का आरोप लगाते हुए नौकरी छोड़ दी थी। इंस्पेक्टर ने नौकरी राजेश साहनी की मौत के ठीक बाद छोड़ी। इतना बड़ा आरोप लगाकर एक अधिकारी नौकरी छोड़ता है, लेकिन आईजी असीम अरुण का बाल भी बांका नहीं हुआ।
रही बात जज लोया जैसी संदिग्ध मौत वाली बात तो वह इसलिए कही जा रही क्योंकि जज लोया की तरह ही राजेश साहनी की कथित आत्महत्या कुछ अस्वाभाविक परिस्थितियों में हुई है। साथ ही पुलिस अफसरों और सरकार का रवैया भी बहुत संदेहास्पद रहा है, जो अभी भी जारी है।
उदाहरण के तौर पर सरकारी अस्पताल की बजाय राजेश साहनी को प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर को दिखाया गया, 4 घंटे तक ईलाज क्यों नहीं मिला, गोली खुद की बंदूक से मारने की जगह दूसरी बंदूक पुलिस डिपार्टमेंट से पहले इश्यू क्यों कराई और बड़ी बात यह कि 10 दिन की छुट्टी पर होने के बावजूद गोली लगने के दिन काम पर आना।
राजेश साहनी 29 मई के दिन दोपहर 12 बजे दफ्तर पहुंचे और 12.45 से एक बजे के बीच आत्महत्या कर ली। साहनी 1992 बैच के प्रांतीय पुलिस सेवा के अधिकारी थे और मूल रूप से बिहार के पटना के रहने वाले थे। वर्तमान में वे पिथौरागढ़ से पकड़े गए आईएसआई एजेंट रमेश सिंह के मामले की तफ्तीश कर रहे थे। कुछ जानकारोंं का कहना है कि आईएसआई एजेंट रमेश सिंह के पकड़े जाने के बाद से ही उन पर दबाव बढ़ा था। हिंदू अतिवादियों को पकड़े जाने के बाद अधिकारियों पर दबाव बढ़ने की घटनाएं और वारदातें पहले भी होती रही हैं।
खैर! आईजी एटीएस असीम अरुण का कहना है कि उन्हें जानकारी नहीं थी कि राजेश साहनी दफ्तर आए हुए हैं। सोमवार को उनके ऑफिस आने के बारे में उनका कहना है कि हाल ही में आईएसआई एजेंट रमेश सिंह की गिरफ्तारी राजेश साहनी की टीम ने ही की थी। सोमवार को उसके 164 के बयान दर्ज होने थे, इसलिए उन्होंने खुद राजेश साहनी को वहां मौजूद रहने के लिए कहा था। उनका कहना है कि उन्हें याद नहीं रहा कि वह छुट्टी पर हैं।
यूपी सरकार ने 30 मई को सीबीआई जांच कराने की बात कही और 31 मई को सिफारिश केंद्र को भेज दी, लेकिन अभी तक सीबीआई ने इस मामले को अपने हाथ में नहीं लिया है। हालांकि लखनऊ सीबीआई के टीम ने अनौपचारिक रूप से मामले से जुड़े कागजात ले लिया है। बताया जा रहा है कि जल्द ही सीबीआई इस मामले को अपने हाथ में लेने का ऐलान करेगी। वहीं दूसरी ओर लखनऊ में कुछ और खेल खेला जा रहा है।
ये बहुत बड़ा और गंभीर सवाल है। राजेश साहनी की मौत की जाँच क्यों नहीं हो रही? ASP राजेश साहनी की पत्नी को नौकरी और बेटी की पढ़ाई-ये निःसंदेह अच्छे क़दम हैं लेकिन कुछ सवाल हैं, जिन पर तुरंत @myogiadityanath सरकार को देखना होगा। 1- अब तक FIR क्यों नहीं हुई? 2- CBI जाँच क्यों नहीं शुरू हुई ? 3- ATS IG असीम अरुण को क्यों नहीं हटाया गया?
#JusticeForRajeshSahni वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश मिश्रा ने भी आशंका जाहिर की है कि कहीं ना कहीं कुछ तो गड़बड़ है जिसे छिपाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने ने यहां तक लिखा कि फॉरेंसिक एविडेंस को नष्ट कर दिया गया है।
यूपी पुलिस ने अभी तक सिर्फ परिवार के लोगों से ही बातचीत की है इससे आगे जांच नहीं बढ़ी है। जब से सीबाआई जांच की सिफारिश हुई है यूपी पुलिस मानो चिंतामुक्त हो गई है, उन्हें अपने एक अफसर की मौत की शायद अब चिंता नहीं है।
सबसे हैरानी की बात ये है कि बिना जांच मामले को खुदकुशी बताने की कोशिश हो रही है। हो भी सकता है, लेकिन राजेश साहनी की मौत के बाद जिस तरह से अधिकारियों का रवैया रहा है वो शक के दायरे में है। क्योंकि उनकी मौत के बाद न तो उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया और ना ही फॉरेंसिक एविडेंस को सुरक्षित रखा गया।
ABP News में संपादक पंकज झा ने ट्वीट किया है, ATS के ASP राजेश साहनी के साथी पुलिस अफसर DGP ओपी सिंह से मिलने पहुँचे। इस मामले में FIR दर्ज कराने की मॉंग हुई।मीटींग में मौजूद एक सीनियर IPS ने राजेश की पत्नी के इलाज का पर्चा दिखाते हुए कहा “आप लोग FIR छोड़िए, उनके लिए दवा का इंतजाम करिए।”
राजेश साहनी की संदिग्ध मौत के बाद इंस्पेक्टर यतींद्र शर्मा ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने आरोप लगाते हुए डीजीपी को अपना इस्तीफ भेजा- "राजेश साहनी आईजी असीम अरुण की प्रताड़ना से परेशान थे और मैं भी असीम अरुण की वजह से ही अपना इस्तीफा दे रहा हूं।"
इस तरह की बाते सामने आने के बाद भी इस जांच में देरी क्यों हो रही है? इधर यूपी सरकार ने राजेश साहनी की बेटी की पढ़ाई का सारा खर्च उठाने का ऐलान किया है साथ ही पत्नी को पुलिस विभाग में ओएडी का पद ऑफर किया गया है।