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राजस्थान

ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए त्रासदी बना कोरोना में लॉकडाउन, रोजी-रोटी के लिए करना पड़ रहा संघर्ष

Manish Kumar
9 May 2020 6:36 AM GMT
ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए त्रासदी बना कोरोना में लॉकडाउन, रोजी-रोटी के लिए करना पड़ रहा संघर्ष
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देश के तमाम हिस्सों में फैले दिहाड़ी मजदूर और कामगार लोगों के अलावा भारत के सबसे कमजोर और हाशिए पर रहने वाला ट्रांसजेंडर समुदाय कोरोना कालखंड में बुरी तरह प्रभावित हुआ है...

अवधेश पारीक की रिपोर्ट

जयपुर, जनज्वारः दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से पूरा देश तालाबंदी के तीसरे दौर से गुजर रहा है, जहां लोग घरों में कैद होकर सरकारी नियमों की पालना कर रहे हैं तो कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनके लिए कोरोना एक त्रासदी से कम साबित होता नहीं दिखाई दे रहा है।

देश के तमाम हिस्सों में फैले दिहाड़ी मजदूर और कामगार लोगों के अलावा भारत के सबसे कमजोर और हाशिए पर रहने वाला ट्रांसजेंडर समुदाय कोरोना कालखंड में बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

ट्रांस जेंडर समुदाए की आबादी का बड़ा हिस्सा वह भीख मांगकर, किसी के घर में शादी, बच्चा होने पर नाचकर या एक सेक्स वर्कर बन आजिविका चलाते हैं उनके सामने अब हर बीतते दिन के साथ रोज़ी-रोटी का संकट मंडरा रहा है।

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जयपुर की रहने वाली 53 वर्षीय रजनी बाई बताती हैं कि, कोरोना बीमारी के बाद हमने सोचा लॉकडाउन कुछ दिनों में खुल जाएगा लेकिन यह बढ़ता ही जा रहा है ऐसे में अब जो बचा हुआ राशन है उसी से दाल-रोटी खाकर गुजारा कर रहे हैं।

आगे वह जोड़ती है कि हम ना तो इतना टीवी देखते हैं और ना ही अखबार पढ़ते हैं, हमें नहीं पता सरकार ने हमारे लिए कौनसी घोषणा की है, हम तो इतना जानते हैं कि हमें अभी तक सरकार और किसी भी एनजीओ से कोई सहायता नहीं मिली है।

रोजी-रोटी को लेकर वह आगे कहती हैं कि हमारे समुदाय के लोग पहले शादियों में या किसी शुभ मुहुर्त में जाकर बधाई देकर रोज थोड़ा बहुत कमा लेते थे लेकिन अब लॉकडाउन के बाद से कुछ अपने गांव वापस जाने को मजबूर हो गए तो बाकी घरों में ही कैद हैं।

जयपुर में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए काम करने वाली संस्था “नई भोर” की कार्यकारी सदस्य मालिनी दास कहती हैं कि, राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन और कोरोना वायरस प्रकोप के कारण ट्रांसजेंडर्स समुदाय को कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा है।

इसके पीछे कारणों का हवाला देते हुए वह कहती है कि हमारे समुदाय में अधिकांश लोग रोज कमाने वाले हैं और घर-घर जाकर या बाहर निकलकर ही काम करते हैं।

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वह आगे जोड़ती है कि राजस्थान के कई जिलों में रहने वाले ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के हालात बुरे हैं। हमारी संस्था में राजस्थान के कई जिलों से अब तक 600 से अधिक लोग सहायता के लिए आवेदन आ चुके हैं। हम उनसे लगातार उनसे संपर्क कर हमारी क्षमता के मुताबिक सहायता पहुंचा रहे हैं।

मालिनी ने बताया कि इनमें जयपुर, कोटा, सवाईमाधोपुर, अजमेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर, अलवर, जोधपुर जैसे जिले शामिल है। आर्थिक सहायता को लेकर वह कहती हैं कि केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय रक्षा वित्त संस्थान (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डिफेंस) द्वारा 1500 रुपये की सहायता समुदाय के सदस्यों को बैंक खातों और आधार कार्ड के जरिए देने की घोषणा हुई थी।

लेकिन एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक कई लोग बैंक खातों और आधार कार्ड के बिना हैं तो वह किसी भी तरह की सहायता से वंचित है। इसके अलावा काफी लोग राशन कार्ड एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए मिलने वाले राशन तक नहीं पहुंच पा रहे क्योंकि आधार कार्ड के अलावा राशन कार्ड जैसे जरूरी दस्तावेज नहीं हैं। वहीं रिपोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से मिलने वाली सहायता देश में कुल ट्रांसजेंडर आबादी के केवल 1 प्रतिशत से भी कम हिस्से तक पहुंचने का दावा किया गया है।

बकौल मालिनी, लेकिन राज्य की गहलोत सरकार से अभी तक किसी भी तरह के राहत पैकेज की घोषणा नहीं हुई है, हम लगातार सरकार के सामाजिक न्याय आधिकारिता मंत्रालय के तहत आने वाले ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड के संपर्क में है और कई अधिकारियों से भी बातचीत हुई है।

मुश्किल दौर में राजस्थान हाईकोर्ट का अच्छा फैसला

लॉकडाउन की मार झेल रहे ट्रांसजेंडर्स समुदाय के लोगों के लिए राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल में एक अहम आदेश जारी किया। हाईकोर्ट में जस्टिस इन्द्रजीत मोहन्ति व जस्टिस एसके शर्मा की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश जारी कर कहा कि ट्रांसजेंडर्स के पास किसी भी तरह का आईकार्ड नहीं होने के बावजूद उनको दी जाने वाली किसी भी मेडिकल सुविधा बिना भेदभाव के मुहैया कराना सुनिश्चित करने के साथ ही चार सप्ताह में जवाब दें।

इस मसले पर कोर्ट में वकील शालिनी श्योराण ने अपील दायर की थी जिस पर अपने फैसले पर राजस्थान हाईकोर्ट ने आगे कहा कि, देश में 2019 में ही ट्रांसजेंडर कानून लागू हो चुका है, लेकिन राज्य में ट्रांसजेंडर के पास अभी तक आईकार्ड्स नहीं है। राज्य सरकार ने इस बावत जरूरी कदम उठाने में चूक की है।

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राजस्थान हाईकोर्ट में अधिवक्ता शालिनी श्योराण से भी हमने बात की, उन्होंने बताया कि, हमने राजस्थान हाईकोर्ट में ट्रांसजेंडर्स समुदाय को कोरोना संकट के समय मेडिकल सहायता और रिजर्वेशन पर याचिका दाखिल की थी, कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए हैं, लेकिन फिलहाल राज्य सरकार की तरफ से राहत के लिए कोई विशेष पैकेज की घोषणा नहीं हुई है।

मालूम हो कि देशभर में चल रहे कोविड-19 संक्रमण के खतरे के बीच काफी ट्रांसजेंडर्स को आईकार्ड नहीं होने के कारण अन्य मेडिकल सुविधा और कई कल्याणकारी सुविधाओं का लाभ मिलने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि इस मामले पर अगली सुनवाई 14 मई को होगी।

कमजोर इम्यून सिस्टम के भरोसे कोरोना से जंग

अमेरिका के गैर-लाभकारी संगठन नेशनल सेंटर फॉर ट्रांसजेंडर इक्वेलिटी (NCTE) के मुताबिक, ट्रांसजेंडर्स समुदाय के कई लोगों में कमजोर इम्यून होने की वजह से उन्हें संक्रमण का भी अधिक खतरा है।

वहीं हर 5 में से 1 ट्रांसजेंडर वयस्कों को कम से कम एक या अधिक किसी पुरानी बीमारी जैसे मधुमेह, गठिया या अस्थमा की शिकायत भी रहती है। इसके अलावा आधे से अधिक समुदाय के लोग तम्बाकू का भी सेवन करते हैं, जो उन्हें बीमारी से लड़ने में कमजोर बनाने के साथ ही सांस लेने की प्रणाली को प्रभावित करता है। इस संगठन ने समुदाय के लोगों के लिए कोरोना संबंधित विस्तृत गाइडलाइन भी जारी की है।

कोरोना में ट्रांसजेंडर आबादी का संशय

2011 की जनगणना के मुताबिक देश में ट्रांसजेंडर की आबादी 4.88 लाख बताई गई है जिसमें डेटा रोजगार, शिक्षा और जाति के आधार पर लिया गया है। वहीं चुनाव आयोग ने 2014 के चुनावों में कहा कि केवल 40,000 ट्रांसजेंडर ही पंजीकृत हैं।

ऐसे में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के आधिकारिक डेटा पर सालों से आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा है। इसके अलावा हम राजस्थान की बात करें तो राज्यवार जनगणना 2011 के मुताबिक राजस्थान में ट्रांसजेंडर की जनसंख्या 16,517 है लेकिन एक अन्य अनुमान के हिसाब से राजस्थान में करीब 75,000 ट्रांसजेंडर लोग हैं।

पिछले साल इस समुदाय के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स) एक्ट, 2019 पारित किया गया था। हालांकि, ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के इस कानून से भी अपनी शिकायतें रही हैं। इससे पहले 2014 में, नालसा बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ट्रांसजेंडर लोगों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता देने और सभी मौलिक अधिकार हासिल होने का फैसला दिया था।

आंकड़ों के खेल में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से वंचित, सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार झेलता यह समुदाय इस संकट के समय इन लोगों की मुश्किलों को ना जाने कितने गुना कर देता है।

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