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शिक्षा

मैंने कम्युनिस्ट पार्टी क्यों ज्वाइन की

Prema Negi
23 Nov 2018 10:45 AM IST
मैंने कम्युनिस्ट पार्टी क्यों ज्वाइन की
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जब संघियों की सरकार कम्युनिज़्म के खत्म होने की मुनादी करा रही है, उस बीच इस नौजवान छात्र ने वामपंथी पार्टी आखिर क्यों ज्वाइन की...

हाल में कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन करने वाले अभिषेक साझा कर रहे हैं अपना अनुभव

जब मैने अपने सहपाठियों और शिक्षकों को बताया कि मैं कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन करने जा रहा हूं तो उन्होंने मुझे आश्चर्य की नजर से देखा। उन्होंने मुझे सलाह दी कि तुम अच्छा कर रहे हो। अकादमिक में ही बने रहो। ऐसा उन्होंने मेरे अकादमिक रिकॉर्ड को देखकर कहा।

मैंने BHU से राजनीति विज्ञान में BA (H) किया। फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी से LLB किया और LLM में दाखिला लिया। LLM अधूरा छोड़कर दर्शन में आया और DU से MA प्रथम श्रेणी में पास किया। मेरा NET क्लियर हो गया था। मैं M.Phil और Ph.D के लिए इंटरव्यू दे रहा था। (अभी मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग से M.Phil कर रहा हूं।)

मेरी एक पुस्तक The last man प्रकाशित हो चुकी है। इसके बाद मेरे पास और तीन पुस्तकें है, जिन्हें मैं जल्द ही प्रकाशित करूँगा। उनमें से दो पुस्तकें दर्शन पर है और एक कविता संग्रह है। मैंने LLM के दौरान एक शोध पत्र भी प्रकाशित किया था। मेरे सहपाठियों और शिक्षकों को पूर्ण विश्वास था कि मैं अकादमिक में जरूर कुछ बेहतर करुंगा। मैं उनके विश्वास को कायम रखूंगा। मैने राजनीति में भागीदारी शुरू की है, किंतु अकादमिक को नहीं छोड़ा है। मैं आज की तारीख में शोधार्थी हूं और आगामी सत्र से अध्यापन भी करुंगा।

राजनीति क्यों?

मेरे राजनीति में जाने के फैसले से कुछ लोगों को आश्चर्य हुआ, किंतु मेरे लिए यह एक सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया थी। मेरे हृदय में गरीब, दबे कुचले, शोषित और वंचित तबके के लिए मानवीय संवेदनायें है। मैं किसी छोटे बच्चे को रेड लाइट पर भीख मांगते नहीं देख सकता। मैंने लोगों को अमानवीय दशाओं में सड़कों के किनारे फुटपाथों पर पड़े निराश आंखों से मौत का इंतजार करते देखा है। ये मैं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की बातें कर रहा हूं।

मैं रोज बस से यूनिवर्सिटी जाता हूँ और ऐसे कई हृदय विदारक दृश्य प्रतिदिन देखता हूं। ये दृश्य मुझे सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि आखिर कहां कमी रह गयी है, हमारी सभ्यता और संस्कृति के विकास में? जब मैं इन लोगों के लिए कुछ नहीं कर पाता तो खुद को बहुत कमजोर और असहाय पाता हूं। मुझे खुद में और उनमे कोई फर्क नहीं मालूम होता। सोचता हूं कि एक दिन मैं भी तो उनकी जगह पर खड़ा हो सकता हूं।

मैंने अपनी पहली पुस्तक ऐसे ही अंतिम जन को केंद्र में रखकर लिखी है। मैं चैरिटी बेस्ड एप्रोच का कड़ा विरोधी हूं। मैं राइट बेस्ड एप्रोच का समर्थन करता हूं। ऐसे लोगों की मदद करने का एकमात्र तरीका है समाज के शोषण आधारित ढांचे को उखाड़कर फेंकना और समतामूलक समाज की स्थापना करना।

हमेशा से परिवर्तन का श्रोत आवाम रही है और प्रक्रिया है राजनीतिक क्रांति। इस पुस्तक में मैंने परिवर्तन के सभी तथाकथित साधनों को समझने की कोशिश की, किन्तु मुझे एकमात्र कारगर उपाय राजनीति दिखी। बाकी सभी साधन सहयोगी की भूमिका अदा कर सकते हैं। मेरी नज़र में सामाजिक रूपांतरण का एकमात्र उपयुक्त और कारगर साधन राजनीति है। मुझे राजनीति के अतिरिक्त कोई और रास्ता नहीं दिखता। यही मेरी पुस्तक 'द लास्ट मैन' का निष्कर्ष है। यह पुस्तक मैंने आज के लगभग दो साल पहले दिसंबर 2016 में पूरी की थी।

राजनीति में जाने के बारे सोच तो रहा था किन्तु इस वक्त अचानक राजनीति में आना और कम्युनिस्ट पार्टी को ज्वाइन करना, इन सबके पीछे भी ठोस कारण है।

यही वक़्त क्यों?

राजनीति में आने के फैसले को काफी लम्बे अंतराल से टाल रहा था, किन्तु जब स्टीफन हाकिंग की भविष्यवाणी पढ़ी की मानव प्रजाति आने वाले 100 सालों में सम्माप्त हो सकती है तो मैं अचानक डर गया कि कहीं मैं देर न कर दूँ। पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है। कैप्टाउन हमारी पीढ़ी का भविष्य है। हवा पानी सब कुछ बहुत तेजी से खत्म हो रहा है। दिल्ली की सड़कों पर मास्क लगाकर निकलना पड़ता है।

पश्चिमी विकास मॉडल ने मानव प्रजाति को विल्प्ति की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। पूंजीवादी उत्पादन और उपभोग व्यवस्था को अगगर समय रहते नहीं बदला गया तो मानव प्रजाति विलुप्त हो जाएगी। सामाजिक-आर्थिक ढांचे की समस्याएं जस की तस है। पर्यावरण की समस्या ने हमारी चुनौती को और जटिल बना दिया है।

पूरी दुनिया में फासीवादी ताकतों का उभार हुआ है। भारत और सम्पूर्ण विश्व इस समस्या से जूझ रहा है। मुझे एक बहुत बड़े खतरे की आशंका दिखती है कि अगर फासीवाद चरम पर होगा और हमारी सभ्यता पर्यावरण संकट से गुजरेगी तो फासीवादी उन्माद अपना नग्नतम रूप दिखायेगा। मुझे एक बड़ी तबाही का डर है।

मैंने अपनी शोध योजनाएं इन्ही बिन्दुओं पर तैयार की थी, परन्तु जब जेएनयू और डीयू दोनों ने इसे रिजेक्ट कर दिया तो मैं सीधा सीपीआई ऑफिस गया और पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। मैं इन समस्याओं का समाधान मार्क्सवाद और समाजवाद में देखता हूं। ये सभी समस्याएं पूंजीवादी ढांचे की देन हैं। पूंजीवाद के पास इसका कोई हल नहीं है। एक ढाँचा जो समस्या पैदा कर रहा हो उसी के भीतर हल ढूंढ़ना समझदारी नहीं होगी।

दो और तात्कालिक घटनाओं ने मुझे बहुत आहत किया। पहला NRC के तहत चालीस लाख लोगों को राज्यविहीन कर देना और दूसरे प्रोफेसरों को सिविल सर्विसेज कोड के अंतर्गत लाकर उनकी अभिव्यक्ति की आजादी को छीन लेना। इन दोनों घटनाओं के विरोध स्वरूप मैंने कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन कर ली। जिस तरह से दक्षिणपंथ/कट्टरपंथ का उभार हो रहा है ऐसे में साम्य बनाने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन करना अपरिहार्य हो गया है। मुझे ऐसा लगता है कि जैसे ज़र्मनी का इतिहास दोहराया जा रहा है।

बुद्धिजीवियों को उनके घरों में कैद किया जा रहा है। चालीस लाख लोगों को यहूदियों की तरह उनके घर से बेघर कर दिया गया। इनके सभी अधिकार छीन लिये गये। उन्हें अपने ही घर में विदेशी घोषित कर दिया गया। यूनिवर्सिटी पर सेंसरशिप थोपी जा रही है और कहीं पर कोई प्रतिरोध का स्वर नहीं गूँज रहा। ऐसे में विरोध जताने के लिए और तानाशाही की सभी कोशिशों को विफल करने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन करना ज़रूरी है।

कम्युनिस्ट पार्टी ही क्यों?

केवल कम्युनिस्ट पार्टी के पास ही समाज के बुनियादी ढाँचे को बदलकर एक नये समाज की स्थापना का उद्देश्य है और इसके पास इस उद्देश्य को साकार करने में अनवरत लगे हुए समर्पित कार्यकर्ता हैं। दक्षिणपंथी पार्टियों के पास किसी भी बुनियादी प्रश्न का हल नहीं है। वे सतही मुद्दे उठाकर राजनीतिक बना के स्तर को गिराती हैं और यथास्थितिवाद का समर्थन करती हैं।

सीपीआई ही क्यों?

सीपीआई भारत की सबसे पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी है। सभी कम्युनिस्ट पार्टियां इसे अपना पैरेंट आर्गेनाइजेशन मानती है।उनके इतिहास की जड़े CPI तक पहुँचती है। इसका लम्बा अनुभव मेरे मार्गदर्शन में सहायक होगा।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि मैं 'लेफ्ट यूनिटी' में विश्वास करता हूँ। सभी कम्युनिस्ट पार्टियां एक दूसरे की पूरक हैं और सभी एक साझा उदेश्य के लिए कार्यरत है। (We have minor differences, but we are sister organizations working for common object.)

अपील

मैं अपने सभी साथियों, युवाओं और आमजन, जो समाज की बेहतरी के लिए काम करना चाहते हैं, से राजनीति में आने की अपील करता हूँ। वे राजनीति में आकर ही एक बेहतर समाज निर्मित कर सकते हैं।

सन्देश

अंत में मेरा सन्देश उन लोगों के लिये जिन लोगों को यह भ्रम है कि USSR के विघटन के साथ साम्यवाद का अंत हो चुका है, जिन्होंने अमेरिकी नेतृत्व में पूंजीवाद को विजेता घोषित कर दिया है, जिन लोगों ने इतिहास के अंत की घोषणा कर दी है, मैं उन लोगों को बताना चाहूँगा कि संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ है।

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध

जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध.... (Be Political)

(दिल्ली विश्वविद्यालय में एमफिल के छात्र अभिषेक ने हाल ही में सीपीआई पार्टी ज्वाइन की है।)

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