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ये है केजरीवाल की जीत का मूल मंत्र, जिसे विरोधी कभी पकड़ नहीं पाए
हर कोई मान रहा है कि यह जीत आम आदमी पार्टी के विधायकों से ज्यादा अरविंद केजरीवाल की है, उनकी राजनीतिक कार्यशैली की जीत है...
जनज्वार। आमतौर पर हर चुनावी जीत के बाद चुनावी विश्लेषक किसी न किसी खास एंगल की तलाश में रहते हैं। वह जाति, धर्म, पैसा, हवा, रूख आदि का विश्लेषण कर लंबे—चौड़े तौर पर आमलोगों को समझाते हैं कि ये है वजह फलां पार्टी जो जीत का और ये है वजह फलां पार्टी के हार या सूपड़ा साफ होने का।
जाहिर है दिल्ली चुनाव के बाद भी ऐसी बातें खूब होंगी, क्योंकि दिल्ली चुनाव में जीत का संदेश देशभर में जाएगा। यह जीत देश को बताएगी कि अभी भी भारतीय वोटर धार्मिक उन्माद के नाम अपनी सरकार बनाने को तैयार नहीं है। यह जीत यह भी बताएगी कि शाहीन बाग में सीएए और एनआरसी के खिलाफ जो आंदोलन चल रहा है उसे आतंकवादी नहीं, बल्कि देशभक्त ही चला रहे हैं, जिन्हें मोदी सरकार के तौर-तरीकों और कानूनी प्रकियाओं के नाम पर तानाशाही लादने से शिकायत है।
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इस जीत का एक और संदेश यह भी जाएगा कि छात्र और उनकी मांगों को तवज्जो न देना किसी भी सरकार के लिए महंगा पड़ सकता है, जैसा अभी दिल्ली चुनाव परिणामों के बाद भाजपा के मामले में साफ दिख रहा है।
ऐसे में सवाल यह है कि जिस चुनावी जीत में इतने संदेश छुपे हों, उसकी जीत का रहस्य क्या है? क्या केजरीवाल दिल्ली में विज्ञापनों, प्रचारों के दम पर जीते हैं? क्या केजरीवाल की पार्टी धनबल और बाहूबल के नाम पर जीती है या इस ऐतिहासिक जीत का कोई और मायने है, कोई और बात है आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल में जो और दूसरे नेताओं से उन्हें अलग करती है।
कहावत है, कई बार सामान्य बात भी असामान्य असर डालती है और वही कहावत दिल्ली के तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे केजरीवाल पर लागू होती है। वह खुद भी बहुत सहज और सामान्य नेता के रूप में दिखते और पेश आते हैं। अरविंद केजरीवाल 14 फरवरी को तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे, वह भी 54 फीसदी वोट प्रतिशत और 63 विधायकों के साथ। 70 में 63 विधायक आम आदमी पार्टी के। विपक्ष में भाजपा के सिर्फ 7 विधायक होंगे, जो पिछले 2015 विधानसभा से 4 ज्यादा होंगे।
हर कोई मान रहा है कि यह जीत आम आदमी पार्टी के विधायकों से ज्यादा अरविंद केजरीवाल की है, उनकी राजनीतिक कार्यशैली की जीत है। और उनकी यह राजनीतिक कार्यशैली छुपी है, अरविंद के इन पंक्तियों में जो उन्होंने अपने ट्वीट पर सबसे ऊपर लिख रखा है।
वह पंक्ति है, 'सब इंसान बराबर हैं, चाहे वो किसी धर्म या जाति के हों। हमें ऐसा भारत बनाना है जहाँ सभी धर्म और जाति के लोगों में भाईचारा और मोहब्बत हो, न कि नफ़रत और बैर हो।' यह पंक्ति अरविंद केजरीवाल का वैरीफायड ट्वीटर अकाउंट खोलते ही दिखता है।
खासकर उस दौर में जब नफरतें राजनीति की बुनियाद बन रही हों, हर नेता हिंदू—मुसलमान के नाम पर देश के लोगों को बांटकर अपना उल्लू सीधा करने में लगा हो। तब जनता सिर्फ अमन चाहती है, शांति के सरोकारों को अपना सरोकार दिखाती है। उसी सरोकार का नतीजा है कि अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनेंगे।
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अरविंद कुछ और भी लिख सकते थे अपने ट्वीट की पहली पंक्ति पर इसे ही क्यों तवज्जो दिया, क्योंकि वह जानते हैं जनता इन दिनों क्या चाहती है? पिछले 6 साल किस मुश्किल से मुक्ति चाहती है? आप फिर एक बार इन पंक्तियों को देखिए, महत्व का अहसास होगा।
'सब इंसान बराबर हैं, चाहे वो किसी धर्म या जाति के हों। हमें ऐसा भारत बनाना है जहाँ सभी धर्म और जाति के लोगों में भाईचारा और मोहब्बत हो, न कि नफ़रत और बैर हो।' इन्हीं पंक्तियों ने दिल्ली की जनता से 'लगे रहो केजरीवाल बोलवाया है', कहलवाया है, 'केजरीवाल फिर से।'