फैक्ट्री के बाहर का समाज मजदूरों से हमदर्दी रखे तो वह हक की हर लड़ाई जीत लेगा : मारुति यूनियन अध्यक्ष
हरियाणा के मानेसर इलाके में स्थित जापान के सुजुकी समूह की साझेदारी में चलने वाली मारुति कार फैक्ट्री कई मायनों में अव्वल है। यह कंपनी भारत में सबसे ज्यादा कार बनाती है। देश के कार बाज़ार की 50।4 फीसदी मांग को यह कंपनी पूरा करती है। साल 2016- 2017 में कंपनी ने 15,68,000 कारें बनाईं। इस साल कंपनी का मुनाफा 7300 करोड़ रुपये से ऊपर था। मारुति की फैक्ट्री दुनिया की अत्याआधुनिक तकनीक से चलने वाली फैक्ट्री है। इस फैक्ट्री में 51-52 सेकंड में एक कार बनायी जाती है। पर इस कंपनी का एक काला इतिहास भी है, जो इसके अपने कामगारों से जुड़ता है। आइए जानते हैं वह पूरा सिलसिला मारुति फैक्ट्री यूनियन के अध्यक्ष अजमेर सिंह यादव से
मारुति फैक्ट्री यूनियन के अध्यक्ष अजमेर सिंह यादव से प्रोफेसर रविंदर गोयल की बातचीत
आप की टीम इस बार दोबारा चुनाव जीत कर आई है, आप अपने पैनल की जीत का क्या कारण मानते हैं?
हमारी टीम के दोबारा जीतने का मुख्य कारण है कि हमने मजदूर साथियों की समस्याओं को मुस्तैदी से हल करने का प्रयास किया है। अपने गिरफ्तार साथियों की मदद के लिए सक्रिय प्रयास किये हैं, उनकी आर्थिक मदद के लिए और कानूनी मदद के लिए मजदूरों से सहयोग राशि इकठ्ठा की है। बेशक हमारे चुनाव में केवल परमानेंट वर्कर ही वोट देते हैं पर हमें सभी किस्म के मजदूर साथियों का सहयोग प्राप्त है और हम उनकी समस्याओं के लिए भी काम करते हैं।
सुना है कंपनी ठेका मजदूर की जगह टेंपररी मजदूर भर्ती करने लगी है, जिससे यूनियन को कमजोर किया जा सके?
बिलकुल। मैनेजमेंट ने हमारी ताकत कमजोर करने के लिए अब ठेका मजदूरों की जगह करीबन 5000 टेम्परेरी वर्कर्स को भर्ती किया है। टेम्परेरी मजदूर केवल 7 महीने के लिए भर्ती किये जाते हैं। एक मजदूर सिर्फ 2 बार 7—7 महीने के लिए रखा जा सकता है। उनको चूंकि परमानेंट नहीं किया जाना है इसलिए वो अब ठेका मजदूरों जितना भी यूनियन के कामों में सक्रिय नहीं होते। ठेका मजदूरों को परमानेंट होने की एक उम्मीद रहती थी।
मैनेजमेंट यूनियन को लेकर दुष्प्रचार भी तो करता होगा, जैसा कि हर मैनेजमेंट करता है?
हां, ये भी है। मैनेजमेंट ने हमारे बारे में झूठ फैला रखा है और प्रचार किया है कि ये यूनियन वाले काम से निकलवा देंगे, हड़ताल करवा देंगे आदि आदि। लेकिन मजदूरों ने उनके इस षड़यंत्र को समझा और हमारा समर्थन किया। मजदूरों का भरोसा और एकता ही है कि हमारी टीम फिर एक जीत कर आई है। मैं अपने पैनल के साथियों की तरफ से सभी मजदूर साथियों का धन्यवाद करता हूँ।
मजदूरों और प्रबंधन के बीच हिंसक झड़प की वजह : फैक्ट्री प्रशासन और मज़दूरों के बीच विवाद जून 2011 से ही चल रहा था। विवाद का विषय पहले था स्वतंत्र यूनियन बनाने का अधिकार और 1 मार्च 2012 को जब यूनियन रजिस्टर हो गयी तो उसके बाद 13 सूत्री मांगपत्र पर प्रशाषन से यूनियन की बात चीत चल रही थी। मारुति में जारी ठेका प्रथा का अंत और ठेका मज़दूरों को नियमित करना यूनियन की मुख्य मांगों में से एक थी।
गुड़गांव में कुछ समय से एक जुमला चलन में आया है, ‘ मारुति बना देंगे', इसका क्या मतलब है?
पिछले कुछ समय से, खास कर 2017 के मारुति केस के फैसले के बाद, इस क्षेत्र में जहाँ भी मजदूर सिर उठाकर विरोध करते हैं, मैनेजमेंट और उनके दलालों का यह प्रिय वाक्य बन गया है। इसमें वो धमकी है कि यदि बाज नहीं आये तो मारुति के मजदूरों जैसा हाल कर देंगे। लेकिन यह भी सही है की मजदूरों की बढ़ती एकता के सामने यह वाक्य अब मजदूर साथियों के लिए मारुति मजदूरों के लम्बे संघर्ष का भी प्रतीक बन गया है और मजदूर साथियों को अपने हकों के लिए लड़ने की प्रेरणा देता है, हौसला देता है, जोश देता है।
कहा जा रहा है कि पिछले साल का मारुति आंदोलन के मामले में अदालत का फैसला मालिकों की जीत थी, इस फैसले का मानेसर—गुड़गांव बेल्ट में मजदूरों पर क्या असर पड़ा है?
यह सही है की पिछले साल का फैसला हमारे 31 साथियों को सजा और 13 मजदूर नेताओं को उम्रकैद मालिकों की जीत थी। और उस फैसले ने मानेसर के इलाके में मालिकों के हौसलों को बुलंद किया है। वर्तमान में मारुति मैनेजमेंट इस क्षेत्र में मजदूरों को नियंत्रित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उदाहरण के लिए पहले मारुति अपनी विक्रेता कंपनियों को समय पर कामगारों की हड़ताल के कारण माल ने दे पाने पर दंडित करती थी। लेकिन अब मारुति प्रबंधन स्ट्राइक को तोड़ने के लिए विक्रेता कंपनी की सहायता कर रही है।। PUDR की ताज़ा रिपोर्ट में यह भी हवाला है की कंपनी पुलिस को कार, भोजन, फर्नीचर आदि की आपूर्ति भी करती है। लेकिन पहले के संघर्षों के चलते मजदूरों ने भी नई ताकत हासिल की है। मारुति सुजुकी की अन्य कंपनियों के साथ मिलकर मारुति सुजुकी मजदूर संघ बना है। इस महासंघ में सुजुकी बाइक, बेल्सोनिका, एफएमआई, मारुति पावर ट्रेन, मारुति गुड़गांव, मारुति मानेसर कंपनियां शामिल हैं।
आपकी यूनियन ने जो 2017 के फैसले के खिलाफ अपील की थी उसकी क्या स्थिति है?
हमने उस फैसले के खिलाफ अपील की है क्योंकि वो फैसला कानून पर आधारित कम और मजदूरों को सबक सिखाने की नीयत का नतीजा ज्यादा है। अब नतीजा क्या निकलता है यह तो आगे ही पता चलेगा। हमारे वकीलों ने 3 साथियों की जमानत की एप्लीकेशन भी लगायी है और उसके फैसले के बाद और साथियों की ज़मानत की एप्लीकेशन भी लगायेंगे। उम्मीद है कि इस साल के अंत तक साथियों की जमानत हो सकती है।
वारदात के दिन : 18 जुलाई 2012 की सुबह जियालाल नामक मज़दूर और एक सुपरवाइजर के बीच विवाद हुआ था जिसमें प्रशासन ने जियालाल को निलंबित कर दिया। यह सब उस समय हुआ जबकि मज़दूर नेता कुछ पुराने मुद्दों के संबंध में प्रबंधन के साथ बैठक कर रहे थे। जब निलंबन की खबरें यूनियन तक पहुंची तो उन्होंने मांग की कि निलंबन रद्द किया जाये। मज़दूरों के अनुसार उस दिन परिसर में कंपनी ने कई बाउंसर (भाड़े पर बुलाये गए, मारपीट करने वाले पहलवान) भी तैनात किए थे और बातचीत के वक़्त प्रशासन ने पुलिस भी बुला ली थी। निलंबन को रद्द करने के सवाल पर प्रशासन के टाल मटोल के कारण तनाव बढ़ता गया। उसके बाद हुए हाथापाई में कुछ कंपनी प्रबंधन के लोगों और मज़दूरों को चोटें आयी। इस बीच कार्यालय में आग लग गयी और सांस घुटने के कारण एक एचआर प्रबंधक अविनाश देव की दुःखद मृत्यु हो गयी।
मारुति मैनेजमेंट ने भी केस किया है, उन्होंने क्यों किया है ?
मैनेजमेंट ने जो 117 साथी पिछले फैसले में बरी किये गए थे उनको सजा दिलवाने के लिए केस किया है, क्योंकि हमारी मांग है की उन बेक़सूर साथियों को तो काम पर रखा जाये। मैनेजमेंट उन साथियों को काम पर रखना नहीं चाहती, इसीलिए उन्होंने यह केस किया है। पर हम साफ मानते हैं कि वो केस बेबुनियाद है और मैनेजमेंट उसमें हारेगी।
आपने पिछले साल गिरफ्तार साथियों के लिए आर्थिक मदद जुटाई थी उसके बारे में बताएं?
पिछले साल हमने 81 लाख 50 हजार रूपया अपनी फैक्ट्री, बेल सोनिका और सनबीम कंपनी के मजदूर साथियों के सहयोग से इकठ्ठा किया। उसमें से साढ़े पांच लाख प्रति परिवार के हिसाब से 13 उम्र कैद के सजा पाए साथियों के परिवार को दिया गया। 10 लाख रूपया हमने कानूनी खर्चों के लिए रखा है। सब मजदूरों ने उत्साह के साथ मदद की और मेरा विश्वास है की साथी भविष्य में भी मदद के लिए आगे आयेंगे।
इस साल की अपनी तीन मुख्य प्राथमिकताओं के बारे में बताइए, जिसको लेकर इस साल आपलोग आगे बढ़ेंगे?
इस साल मैनेजमेंट से हमारा समय—समय पर होने वाला सेटलमेंट आने वाला है। उसे मजदूरों के हित में अच्छा से अच्छा करवाना हमारी पहली प्राथमिकता है। हम चाहते हैं की मजदूरी में बढ़ोतरी हो, परमानेंट मजदूरों की संख्या बढाई जाये और जो अन्य मजदूर हैं उनकी काम की हालत में सुधार हो। हमारी दूसरी प्राथमिकता है कि जो हमारे 13 साथी उम्रकैद की सज़ा काट रहे हैं उनकी सज़ा गैरवाजिब और गैरकानूनी है। उसे न्यायिक और आंदोलनकारी तरीके से ख़त्म करवाने की हरसंभव मदद की कोशिश करेंगे। तीसरी मांग के तौर पर जिन साथियों को 2017 के फैसले में निर्दोष पाया गया था, उन्हें कंपनी में तुरंत प्रभाव से बहाल करे। साथ ही 2012 की घटना के बाद जो करीबन 2500 परमानेंट और ठेका मजदूरों को बिना इन्क्वारी के निकाला गया है, उनको भी न्याय मिले।
अब तक हुई मजदूरों को सजा : 18 मार्च, 2017 को दिए गए गुड़गांव डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज आरपी गोयल ने 148 आरोपियों में से 117 को बाइज़्ज़त बरी कर दिया। 13 आरोपियों को हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुनाई गयी, 4 आरोपियों को हिंसक प्रवेश (violent trespass) के जुर्म में 5 साल की जेल की सजा दी गयी तथा शेष 14 आरोपियों को गंभीर क्षति पहुँचाने का दोषी पाया गया। तेरह मज़दूर जिन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई गयी है, उनमें से बारह मारुति मानेसर की यूनियन के पदाधिकारी राम मेहर, संदीप ढिल्लों, रामविलास, सरबजीत सिंह, पवन कुमार, सोहन कुमार, प्रदीप कुमार, अजमेर सिंह, जिया लाल, अमरजीत कपूर, धनराज भाम्बी, योगेश कुमार और प्रदीप गुज्जर हैं। उम्रकैद का तेरहवां सजायाफ्ता मजदूर जिया लाल है, जिसका 18 जुलाई 2012 कि सुबह सुपरवाइजर के साथ विवाद हुआ था।
आप अपने आंदोलन में समाज के अन्य तबकों से क्या उम्मीद करते हैं, वो आपकी कैसे मदद कर सकते हैं?
पिछले सालों में हमें समाज के अन्य हिस्सों का समर्थन मिला है और मारुति के सभी मजदूर उनका शुक्रिया अदा करते हैं। फिलहाल व्यापक समाज से हम उम्मीद करते हैं कि जो मजदूर उनके लिए कार बनाते हैं, उनकी मांगों को हमदर्दी से समझें और जहाँ तक संभव हो सके उनकी मांगों का समर्थन करें। और दूसरे हमारे जो 13 साथी बिना किसी कानूनी औचित्य के उम्र कैद की सज़ा काट रहे हैं, उसे रद्द कराने में हमारी मदद करें। उनके परिवारों की आर्थिक मदद करने में हमारी सहायता करें। जो भी साथी मदद करना चाहें वो मारुति फैक्ट्री में मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं।