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मानवाधिकार की माला जपते देश क्यों साध लेते हैं फिलीस्तीन जैसे नरसंहार पर चुप्पी
अंतरराष्ट्रीय कुद्स दिवस का आरम्भ इरान के रुहोल्ला खोमेनी के आह्वान पर वर्ष 1979 में किया गया था। इसे पूरी दुनिया में मुस्लिम समुदाय मनाता है...
महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक
31 मई को नई दिल्ली के जंतर मंतर रोड पर अंतरराष्ट्रीय कुद्स दिवस मनाया गया। जेरुशलम को अरबी भाषा में अल-कुद्स कहा जाता है, और यह दिवस रमजान के महीने के अंतिम शुक्रवार को मनाया जाता है। इसे दुनियाभर के मुस्लिम मनाते हैं और फिलिस्तीन के साथ अपनी एकजुटता दिखाते हैं।
इस अवसर पर कार्यक्रम में मौजूद वक्ताओं ने फिलिस्तीन के साथ एकजुटता दिखाने के साथ-साथ इजराइल और अमेरिका की खूब भर्त्सना की। इजराइल को फिलिस्तीन नागरिकों के नरसंहार का जिम्मेदार ठहराया और इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस से इस मामले में दखल देने का आग्रह किया। कहा कि इंसानियत की भी बातें की जातीं हैं और इंसानियत को शर्मसार करती इजराइल की सेना की करतूतें भी बताई जाती हैं।
इजराइल की सेना दुनिया की सबसे बर्बर सेना है और इसने फिलिस्तीन के गोलान हाइट्स और गाजा पट्टी पर कब्ज़ा किया हुआ है। 30 मार्च से 19 नवम्बर 2018 के बीच गज़ा पट्टी पर आंदोलन कर रहे 189 फिलिस्तीन नागरिकों को इजराइल की सेना ने मार डाला, जिसमें से 31 बच्चे थे और 3 चिकित्सा कर्मी। लगभग 5800 आन्दोलनकारी घायल हो गए। यह सभी संख्या वायुयानों से हमले में मारे गए लोगों के अतिरिक्त है।
अंतरराष्ट्रीय कुद्स दिवस का आरम्भ इरान के रुहोल्ला खोमेनी के आह्वान पर वर्ष 1979 में किया गया था। इसे पूरी दुनिया में मुस्लिम समुदाय मनाता है। आश्चर्य तो यह है कि मानवाधिकार की माला जपने वाली सभी देशों की सरकारें इस नरसंहार पर चुप्पी साध लेती हैं।
हमारे देश की सरकार भी इजराइल के साथ नए व्यापारिक रिश्ते कायम कर रही है, रक्षा, कृषि और पर्यावरण के क्षेत्रों में समझौते किये जा रहे हैं। इजराइल को शह अमेरिका से मिलती है और हम अमेरिका के पिछलग्गू हैं यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है।