3 मार्च को बड़े पैमाने पर देशभर के मजदूरों का दिल्ली में अपने अधिकारों के लिए जुटान
मोदी सरकार आने के बाद मजदूर मेहनतकशों पर हमले और तेज हुए हैं। पूंजीपतियों के हित में श्रम कानून में परिवर्तन किया जा रहा है। नई उदारवादी आर्थिक नीतियों के चलते हर क्षेत्र में स्थाई नौकरी की जगह पर ठेका प्रथा अपरेंटिस, ट्रेनी का दबदबा बढ़ा है।
जनज्वार। 3 मार्च को होने वाले मजदूर अधिकार संघर्ष रैली में भाग लेने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से मज़दूर दस्ते दिल्ली के विभिन्न रेलवे स्टेशन पहुंचने लगे हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटका, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, केरल, दिल्ली-एनसीआर आदि राज्यों से विभिन्न मजदूर संगठनों के नेतृत्व में मजदूरों का कारवां ट्रेनों से बसों से दिल्ली की ओर कूच कर गया है।
आसपास के इलाकों से देर रात व अलसुबह तक जत्थे कूच करेंगे। अभी बंगाल, आंध्र, कर्नाटका, तेलंगाना, उड़ीसा, बिहार आदि राज्यों से मजदूरों के जत्थे दिल्ली पहुंच चुके हैं।
गौरतलब है कि मोदी राज में मजदूरों पर बढ़ते हमलों व मजदूरों के दमन के खिलाफ, ₹25000 मजदूरी, सबको रोजगार वरना ₹15000 बेरोजगारी भत्ता, समान काम का समान वेतन, फिक्सड टर्म-नीम ट्रेनी की जगह स्थाई रोजगार, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के अधिकारों, महिला मजदूरों के अधिकारों की रक्षा, अन्यायपूर्ण सजा झेलते मज़दूरों की रिहाई आदि 17 सूत्री मांगों को लेकर 3 मार्च 2019 को दिल्ली के रामलीला मैदान से संसद भवन तक विशाल रैली निकलने वाली है।
आयोजक मंडल मासा के मुताबिक मोदी सरकार आने के बाद मजदूर मेहनतकशों पर हमले और तेज हुए हैं। पूंजीपतियों के हित में श्रम कानून में परिवर्तन किया जा रहा है। नई उदारवादी आर्थिक नीतियों के चलते हर क्षेत्र में स्थाई नौकरी की जगह पर ठेका प्रथा अपरेंटिस, ट्रेनी का दबदबा बढ़ा है। मजदूरों को ट्रेड यूनियन का और सामूहिक मांग पत्र पर सम्मानजनक समझौता करने के अधिकार का हनन हो रहा है। मजदूरों पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है। पूंजीपतियों द्वारा श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है।
गैरकानूनी तालाबन्दी, क्लोज़र, ले-ऑफ, छंटनी व मनरेगा में वार्षिक बजट कम कर मजदूरों को बेरोजगार किया जा रहा है। मजदूरों के हर अधिकार को कुचलने के लिए सरकारें दमन तेज कर रही हैं। इससे भटकाने के लिए साम्प्रदायिक व जातिवादी हमले बढ़े हैं। अंध राष्ट्रवाद का जुनूनी माहौल भयावह रूप ले रहा है। इनके खिलाफ एक जुझारू आंदोलन खड़ा करना आज मज़दूर वर्ग का प्रमुख कार्यभार बन गया है।
केंद्र तथा विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा लागू किए जा रहे नव उदारवादी नई आर्थिक नीतियों के साथ समझौताहीन जुझारू संघर्ष व देश में मजदूर आंदोलन का एक वैकल्पिक ताकत खड़ा करने की जरूरत के लिए मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) का गठन हुआ था, जिसमें देश के अलग-अलग राज्यों से 15 से ज्यादा घटक संगठन शामिल हैं।
मज़दूर अधिकार संघर्ष रैली मासा द्वारा आयोजित हुई है, जिसकी घोषणा 27 अक्टूबर, 2019 के विजयवाड़ा में आयोजित प्रोग्राम के दौरान हुई थी।
मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (MASA) के साथ इस मजदूरों के अधिकारों के लिए आयोजित रैली में ऑल इंडिया वर्कर्स काउंसिल(AIWC), ग्रामीण मजदूर यूनियन, बिहार, इंडियन सेंटर ऑफ ट्रेड यूनियन्स (ICTU), इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स ( IFTU), आईएफटीयू (सर्वहारा), इंकलाबी केंद्र, पंजाब, इंकलाबी मजदूर केंद्र (IMK), जन संघर्ष मंच, हरियाणा, मजदूर सहयोग केंद्र, गुड़गांव, मजदूर सहयोग केंद्र, उत्तराखंड, श्रमिक शक्ति, कर्नाटका, सोशलिस्ट वर्कर्स सेंटर, तमिलनाडु, स्ट्रगलिंग वर्कर्स कोआर्डिनेशन कमेटी, वेस्ट बंगाल (SWCC) और ट्रेड यूनियन सेंटर ऑफ इंडिया (TUCI) हिस्सेदारी कर रहे हैं।