मॉडल ने पीएम मोदी को दी सलाह, आप गायों की जगह देश की महिलाओं पर दें ध्यान
मिस कोहिमा ब्यूटी पीजेंट 2019 में शामिल मॉडल पीएम मोदी पर क्या बोल गयीं जो सोशल मीडिया पर हो रहा वायरल....
जनज्वार। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, स्वच्छ भारत अभियान समेत कई अन्य योजनाओं को प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल की महान उपलब्धियों के तौर पर भाजपा और सरकार दोनों गिनाते हैं। हालांकि गाय को भी भाजपा शासनकाल की महान उपलब्धि माना जाना चाहिए, क्योंकि पिछले 6-7 सालों खासकर मोदीकाल के बाद गाय के नाम पर खूब राजनीति हुई है और हो रही है। अभी होने जा रहे हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी गाय चर्चा का केंद्रबिंदु है।
मगर यही गाय की राजनीति फैशन की दुनिया की चर्चित प्रतियोगिता मिस कोहिमा ब्यूटी पीजेंट 2019 में हिस्सेदारी कर रहीं मॉडल Vikuonuo Sachu को इतनी अखरी कि उसने मोदी जी को सलाह दे डाली कि वो बजाय गाय के भारत की महिलाओं पर ध्यान दें।
गौरतलब है कि इसी महीने 5 अक्टूबर को मिस कोहिमा ब्यूटी पीजेंट 2019 का फाइनल राउंड आयोजित किया गया था। इस ब्यूटी कॉन्टेस्ट में दूसरी रनरअप रहीं मॉडल Vikuonuo Sachu से जजों ने पूछा कि 'अगर तुम्हें मोदी मिलें और बात करने के लिए इन्वाइट करें तो क्या कहोगी?', मॉडल ने इसका जो जवाब दिया, वह सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
ब्यूटी कंटेस्टेंट में हिस्सेदारी करने वाली मॉडल Vikuonuo Sachu ने जवाब दिया कि 'अगर उन्हें पीएम मोदी बातचीत के लिए आमंत्रित करेंगे तो मैं उनसे कहूंगी कि वह देश में गायों के बजाय महिलाओं पर ज़्यादा ध्यान दें। उन पर फोकस करें।'
18 वर्षीय मॉडल #Vikuonuo_Sachu एक स्टूडेंट हैं, जिन्होंने ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सेदारी की थी। Vikuonuo Sachu का जवाब सुनकर प्रतियोगिता में मौजूद जजों समेत सभी लोग हंसने लगे, मगर यह हंसी एक सवाल जरूर खड़ा कर गयी कि हमारे देश के राष्ट्राध्यक्ष के लिए महिलाओं से ज्यादा जरूरी गाय है।
हालांकि ये मॉडल ब्यूटी कॉन्टेस्ट का खिताब तो नहीं जीत पायीं, मगर सोशल मीडिया पर उनके इस जवाब ने लोगों को जरूर जीत लिया है। ikuonuo Sachu के जवाब की हर ओर चर्चा हो रही है। इससे दुनियाभर में यह मैसेज भी गया है कि हमारे प्रधानमंत्री मोदी के लिए महिलाओं से भी ज्यादा जरूरी गाय है।
ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सेदारी करने वाली मॉडल की यह बात इसलिए भी वायरल हो रही है, क्योंकि भारत में वाकई महिलाओं की स्थिति बहुत बुरी है। देश में 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा और महिला सशक्तीकरण की चाहे जितनी बातें हों, मगर महिला अपराधों में कोई कमी नहीं आयी है। बल्कि यूं कहें कि लगातार महिला अपराधों में बढ़ोत्तरी हो रही है। फरवरी 2019 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक राजधानी दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद हालांकि महिला बलात्कार और दुर्व्यवहार की घटनाओं की रिपोर्टें ज्यादा दर्ज हो रही हैं, मगर यौन अपराधियों की गिरफ्तारी, सजा और पीड़िताओं को न्याय मिलने की दर बहुत कम है।
अक्षय भटनागर, अपर्णा माथुर, अब्दुल मुनसीब और देवेश रॉय की 29 अप्रैल, 2019 को इंडिया आर्टिकल में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के मुताबिक बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिए सजा की दर में 2007 के बाद से लगातार गिरावट आई है। 2016 में जहां यह 27% थी वहीं 2016 में 18.9% पर पहुंच गयी। इतना ही नहीं घरेलू हिंसा के सिर्फ 2 फीसदी मामले ही पुलिस तक पहुंचते हैं।
इस अध्ययन के मुताबिक हमारे देश में महिलाओं पर होने वाले किसी भी तरह के अपराधों की रिपोर्टिंग को दबाने के लिए सामाजिक और संस्थागत तत्व काफी मजबूत भूमिका अदा करते हैं। बलत्कृत होने वाली महिलाओं, युवतियों, बच्चियों के साथ समाज अछूत की तरह पेश आता है। उनके साथ समाज ऐसे पेश आता है जैसे उन्हें कोई भयानक रोग लग गया हो, इसके उलट बलात्कारी सीना चौड़ा करके घूमता है।
हर दिन 3 महीने की दुधमुंही बच्ची से लेकर 70 साल की बुजुर्ग महिला के साथ होने वाले घिनौने बलात्कार की खबरों से अखबार पटे रहते हैं, मगर उस तादाद में न्यायतंत्र मजबूत नहीं हुआ है, बल्कि पीछे ही गया है। महिलाओं के लिए अन्य राज्यों से अपेक्षाकृत सेफ मानी जाने वाली दिल्ली भी रेप कैपिटल में तब्दील हो चुकी है। यहां हर रोज 10 बलात्कार के मामले पुलिसिया रिकॉर्ड में दर्ज किये जाते हैं, जबकि इससे कई गुना ज्यादा मामले बदनामी, समाज के डर से छुपा दिये जाते हैं।
दिल्ली पुलिस द्वारा ही उपलब्ध कराये गये आंकड़ों के मुताबिक राष्ट्रीय राजधानी में इस साल 15 जुलाई तक हर रोज बलात्कार के औसतन 6 और छेड़छाड़ के 8 मामले दर्ज किए गये। इस साल 15 जुलाई तक बलात्कार के कुल 1,176 मामले दर्ज पुलिस ने दर्ज किये। यह भयावह हालात तब हैं जबकि शासन-प्रशासन महिलाओं की सुरक्षा के तमाम दावे करता है। 7 साल पहले दिल्ली में हुए निर्भया कांड को अभी तक लोग भूले नहीं है, जिसमें 23 साल की एक पैरा मेडिकल छात्रा के साथ चलती बस में सामूहिक दुष्कर्म किया गया था, जिसके 13 दिन बाद उसकी मौत हो गई थी।
निर्भया कांड के बाद देश में उबाल पैदा हुआ था। आम जनता के आक्रोश को देखते हुए राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व ने इसे गंभीरता से लेने का दिखावा कर सख्त कानून बनाने का दावा किया था। हालांकि निर्भया मामले में एक नाबालिग को छोड़ बाकी बलात्कारियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। मगर सच यह है कि तमाम दावों और वादों के बीच रेप की घटनाओं और ऐसी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। हर रोज कितनी गुमनाम निर्भयायें बलात्कार का दंश झेलने को अभिशप्त हैं।