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करोड़ों श्रमिकों की ऐतिहासिक त्रासदी के लिए मोदी सरकार की अराजक नीतियां जिम्मेदार
देश के श्रमिक आंदोलन से जुड़े लोगों ने ऑनलाइन बैठक करके हड़ताल का समर्थन करते हुए श्रमिक आंदोलन को इस महामारी के दौर में आगे बढ़ाने की समस्याओं पर चर्चा की...
लखनऊ, जनज्वार। लखनऊ में 22 मई 2020 को देश के ट्रेड यूनियनों, श्रमिक संगठनों के आहवान पर एक दिवसीय राष्ट्रीय हड़ताल में देश के विभिन्न उद्योगों, सरकारी- निजी कार्यालयों के श्रमिकों ने अपने अपने तरीके से सरकार की श्रमिक विरोधी-जन विरोधी नीतियों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज किया। इस अवसर पर देश के श्रमिक आंदोलन से जुड़े लोगों ने ऑनलाइन बैठक करके हड़ताल का समर्थन करते हुए श्रमिक आंदोलन को इस महामारी के दौर में आगे बढ़ाने की समस्याओं पर चर्चा की।
बैठक में बैंक यूनियन, परिवहन यूनियन, बीमा यूनियन, रक्षा कारखाना यूनियन, कोयला क्षेत्र यूनियन, चर्म उद्योग यूनियन और स्वतंत्र श्रमिक कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। सभी ने कोरोना महामारी के खिलाफ पूरी एकजुटता से काम करते हुए प्रवासी श्रमिकों की ऐतिहासिक त्रासदी पर अपना आक्रोश व्यक्त किया और उन्हें हर तरह की मदद करने का आवाहन किया।
सभी का कहना था कि करोड़ों श्रमिकों की इस अमानवीय स्थिति के लिए केंद्रीय योजनाकारों की अराजक नीतियां जिम्मेदार हैं। लोगों का यह भी कहना था कि श्रमिकों को प्रवासी और स्थानीय हिस्सों में बांटना श्रमिक वर्ग की एकजुटता को तोड़ना है।
यूनियन से जुड़े लोगों ने कहा कि सांकेतिक हड़तालों से समस्या का समाधान नहीं होगा। श्रमिकों की समस्याएं देश की दूसरी समस्याओं से जुड़ी हैं, पूंजीवादी व्यवस्था की घोर असफलता से जुड़ी है। इस समय श्रमिक अधिकारों को बनाए रखने और उसके दायरे को पूरे श्रमिक जनता तक विस्तारित करने की लड़ाई एक राजनीतिक लड़ाई बन चुकी है। इसलिए हमें राजनीतिक सवालों पर भी खुलकर बात करनी होगी, ताकि श्रमिक जनता और उसके संगठनों को एकताबद्ध करके वास्तविक आंदोलन की ओर बढ़ा जाए।
बैठक में सरकार से मांग की गई कि सभी प्रवासी श्रमिकों की गरिमा का ध्यान रखते हुए उन्हें उनके घरों तक पहुंचाने की तत्काल व्यवस्था की जाए और जब तक काम शुरू नहीं हो जाता प्रति परिवार ₹10000 प्रति माह की सहायता की जाए।
स्थानीय श्रमिकों, ठेले- रेहड़ी वालों, स्वरोजगार में लगे लोगों, जिनकी आमदनी बंद हो गई है या वेतन रुक गया है उन्हें सरकार की ओर से प्रतिमाह ₹10000 का अनुदान दिया जाए। श्रमिक कानूनों को राज्यों द्वारा स्थगित करने के अध्यादेश को वापस लिया जाए।
महामारी ने बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पैदा की है, बेरोजगारों के लिए न्यूनतम मासिक आय की व्यवस्था की जाए। चिकित्सा सुविधा के सरकारी क्षेत्र का विस्तार किया जाए और हर नागरिक को निशुल्क चिकित्सा की व्यवस्था अनिवार्य की जाए।
शारीरिक दूरी के नियम के पालन के लिए श्रमिकों के लिए नई आवास नीति लाई जाए। निजीकरण, निगमीकरणयह नीति वापस ली जाए। कोरोना महामारी से निपटने में समाजिक संगठनों, श्रमिक संगठनों, जन संगठनों की मदद ली जाए। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के विस्तार के लिए लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए।
साथ ही यह भी मांग की गयी कि इस महामारी में छोटे किसानों को तबाह कर दिया है। फल, सब्जी, दूध आदि के उत्पादकों का बहुत बुरा हाल है। इन उत्पादों की सरकारी खरीद करके उसे गरीब श्रमिक आबादी तक पहुंचाया जाए एवं किसानों के घाटे की प्रतिपूर्ति की जाए।
ऑनलाइन बैठक में ओ पी सिन्हा, नरेश कुमार, वीरेंद्र त्रिपाठी, होमेन्द्र मिश्रा, रामप्रताप, के के शुक्ला, मोहम्मद मसूद,अजय शेखर सिंह, शिवाजी राय, अरविंद घोष, प्रकाश राउत,राहुल गौरखेड़े महेश देवा, सुजय कुमार, सीना, हितेश कुमार रंजीत सिंह, प्रत्यूष चंद्र, धर्मेंद्र सिंह आदि शामिल हुए।