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आंदोलन

मोदी ने देश को मां-बहन की गाली देने वाली संस्कृति दी है : रवीश कुमार

Prema Negi
23 Sep 2018 2:31 AM GMT
मोदी ने देश को मां-बहन की गाली देने वाली संस्कृति दी है : रवीश कुमार
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पत्रकारिता ग्लैमर का नहीं बल्कि जोखिम लेने का काम है युवा पत्रकारों को चाहिए कि छोटे-छोटे प्रयासों के ज़रिए बड़े-बड़े सत्य का उद्घाटन करने का जोखिम लें...

सुशील मानव की रिपोर्ट

कमेटी एगेंस्ट एसॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट (काज) और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वाधान में दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में कल 22 सितंबर को पत्रकारों पर हमले के ख़िलाफ़ दो दिवसीय राषट्रीय कन्वेंशन की शुरुआत हुई। इस दो दिवसीय कार्यक्रम के पहले दिन पूरे समय कार्यक्रम हॉल खचाखच भरा रहा। कार्यक्रम में दूर-दराज के गांवों, कस्बों और छोटे शहरों के पत्रकारों का शामिल होना इस कार्यक्रम की अभूतपूर्व सफलता कहा जा सकता है।

कार्यक्रम का पहला सत्र उद्घाटन सत्र रहा जिसमें अभिनेता प्रकाश राज, देशबंधु अख़बार के चीफ एडिटर ललित सुरजन बतौर वक्ता शामिल हुए। पंकज श्रीवास्तव के संचालन में कार्यक्रम की अध्यक्षता तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने की। ललित सुरजन ने कार्यक्रम में पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई के लिए मीडिया के स्वामित्व का विकेन्द्रीकरण (Evolution of ownership) करने की कोशिश करनी होगी। मीडिया संस्थान चलाने वाले पूंजीपति संपादक के पद पर न बैठने पायें।

मीडिया के विकेंद्रीकरण करने का पहला कदम ये हो सकता है कि हमें इस दिशा में अब सोचना चाहिए कि पत्रकारों द्वारा मिलकर कोई सहकारी मीडिया संस्थान बनाया जा सकता है क्या। दूसरा कदम ये हो सकता है कि हम गुरिल्ला पत्रकारिता करें। हम चाहे जहां काम कर रहे हों उसके अलावा हमें छोटे छोटे अखबार कम संख्या में में भी छपवाकर दूर-दराज के इलाकों में बांटकर उन्हें जागरुक किया जा सके।

दूसरी बात कि हमें एकजुट होकर प्रेस कमीशन बैठाने की मांग करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता ग्लैमर का नहीं बल्कि जोखिम लेने का काम है युवा पत्रकारों को चाहिए कि छोटे-छोटे प्रयासों के ज़रिए बड़े-बड़े सत्य का उद्घाटन करने का जोखिम लें।

कार्यक्रम के दूसरे वक्ता अभिनेता—एक्टिविस्ट प्रकाश राज ने पत्रकार गौरी लंकेश और उनके पिता के बहाने जनपक्षधर पत्रकारिता और ग्लैमरस पत्रकारिता के अंतर को स्पष्ट करते हुए इसे नागरिकों के साथ धोखा बताया। प्रकाश राज ने कहा, मैं यहां किसी अभिनेता के तौर पर नहीं बल्कि एक नागरिक के तौर पर आया हूं। कर्नाटक चुनाव के कार्यक्रम में शामिल होने कहीं गए थे वहां किसी पत्रकार ने उनसे कोई सवाल नहीं किया, सिर्फ एक आदमी था जो सवाल पर सवाल किए जा रहा था। बाद में पता चला कि वो भाजपा विधायक का ड्राईवर था। मैंने कहा मैं यहां वो बोलने नहीं आया हूं, जो आप चाहते हैं मैं यहां वो बोलने आया हूं जो मैं देखता हूं। आप मेरे मुंह में अपनी जबान नहीं डाल सकते। तमिलनाडू चुनाव में नरेंद्र मोदी ने सारे मीडिया हेड की मीटिंग बुलाई थी। तो अगले दिन पेपर में उसके रिकार्डिंग कोई खबर कोई तस्वीर नहीं आई। नागरिक के तौर पर लोगों ने सवाल किया कि ऐसा क्यों किया गया तो मीडिया वालों ने जवाब दिया मीटिंग में सिर्फ ये जानने के लिए बुलाया था कि मेरी गवर्नमेंट कैसा काम कर रही है इसलिए हमनें कोई न्यूज नहीं बनाई।

एक नागरिक के नाते मैं सवाल करता हूं। अध्यक्षीय वक्तव्य से पहले उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी के नेता शमशेर सिंह विष्ट के निधन पर शोक जताते हुए दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।

वहीं आनंद स्वरूप वर्मा ने पहले सत्र के अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा आज अपराधी सत्ता में हैं। प्रशासन से लेकर राजनेता पुलिस और माफिया और पत्रकारों का गिरोह मिलकर एक नेक्सस बनाए हुए हैं। नौजवान पत्रकारों से अनुरोध करता हूँ कि वो सत्ता के लोगों और राजनेताओं से संबंध बनायें तो सिर्फ अंदर की खबर निकालने के लिए बनाइये दलाल बनने के लिए नहीं। संबंधों के चलते आंखों में जांडिस हो जाएगी तो उनकी खामियां पर नहीं दिखेगी।

उन्होंने कहा कि दुनिया का कोई भी तानाशाह सिर्फ पुलिस और सेना के बल पर नहीं नहीं हो सकता जब तक कि उसे पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के एक हिस्से का सहयोग न हासिल हो। तानाशाह आरडीएक्स और एके-47 से नहीं किताबों, अख़बारों और पत्रिकाओं से डरते हैं। गौतम नवलखा का अपराध क्या है यही न कि उन्होंने सच का आवाज़ दी और उन्हें नज़रबंद कर दिया गया। ऐसा करके वो एक क्लाइमेट अफेयर तैयार करते हैं ताकि कोई उनके खिलाफ अपनी बात न कह सके। पूँजीवाद से लड़ने के लिए पूंजीवादी मीडिया के समानांतर जनमोर्चा निकल था पर वो सफल नहीं हुआ। आज वैकल्पिक मीडिया खड़ा करने के लिए टूल्स बदलना होगा। टीवी अखबार से गर हम उनका मुकाबला करने उनके अखाड़े में जाते हैं तो वो तो सारे दांव पेंच के माहिर हैं। दरअसल हमें पूंजीवाद से लड़ने के लिए जनांदोलन विकसित करना ही होगा। इसके लिए हम वैकल्पिक रणनीति बनाकर वैकल्पिक सूचना व्यवस्था बना सकते हैं।

सच को सामने लाने के लिए बुद्धिजीवियों और पत्रकारों के लिए ब्रेख्त ने पांच वाक्यों का सूत्र दिया था - सच कहने का साहस, सच को पहचानने की क्षमता, हथियार के रूप में सच का इस्तेमाल करने , पहचान करना कि सच किसके हात में अच्छा हथियार हो सकता है और व्यापक जनसमुदाय में सच को फैलाने का हुनर। और आखिर में उन्होंने मुक्तिबोध के हवाले से कहा कि जब हर ओर झूठ और अँधेरा हो तो सच बोलना ही क्रांतिकारी कर्म है। और इसके लिए हमें कृतसंकल्प होना होगा।

दूसरा सत्र पत्रकारों की हत्या. की केस स्टडीज पर था। इस सत्र के सारे वक्ता हत्या कर दिये गये किसी पत्रकार के सहयोगी, संबंधित या दोस्त थे। पत्रकार राजदेव रंजन की जीवनसंगिनी आशा रंजन, पत्रकार देवेंद्र पटना की मां, पत्रकार संदीप शर्मा के परिवार से उनकी बीवी व दोस्त हामी भरने के बाद भी नहीं आये तो पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने उनके परिवार की व्यथा कथा सुनाई, जबकि पत्रकार नवीन गुप्ता के भाई नितिन गुप्ता व उनकी मां ने मंच से अपनी बात रखी।

उन लोगों ने अपने निजी दुख के आधार पर बताया कि किसी पत्रकार के मारे जाने की कीमत पूरे परिवार को किस तरह चुकानी पड़ती है। संदीप शर्मा के नाता पिता का भिंड में अपना घर होने के बावजूद इंदौर विस्थापित होकर किराये के मकान में रहने को विवश होना पड़ा है।

लंच के बाद जारी दूसरा सत्र भी पत्रकारों पर हमले के केस स्टडीज पर ही,​ जिसमें बतौर वक्ता पत्रकारों ने हिस्सा लिया। सबसे पहले शिलांग टाइम्स की पत्रकार पैट्रीसिया ने बताया कि किस तरह माइनिंग माफिया पत्रकारों की जान के सबसे बड़े दुश्मन बने हुए हैं। वहीं गल्फ न्यूज और आकाशवाणी कश्मीर के पत्रकार ज़लील ने बताया कि आज पत्रकारिता आसान नहीं है। हिजबुल मुजाहिदीन के हेड का इंटरव्यू करने के बाद किस तरह से उन्हें आतंकवादी घोषित करके प्रताड़ित किया गया, उसका उन्होंने बयान किया। जलील ने बताया कि कश्मीर में पत्रकार होना किसी दूसरे प्रदेश का पत्रकार होने से ज्यादा मुश्किल है। सरकार और आतंकवादियों के बीच पत्रकार बनकर रहना हर पाल जान जोखिम में डालकर रखने जैसा है।

वहीं वरिष्ठ पत्रकार संतोष गुप्ता ने अमर उजाला और दैनिक जागरण जैसे मीडिया संस्थाओं की आलोचना करते हुए बताया कि इन संस्थानों के लिए रिपोर्टिंग करनेवाले पत्रकारों की हत्या के बाद मीडिया संस्थान उनके परिवारों की कोई खबर तक नहीं लेता उलटे पत्रकारों की हत्या करने करवाने वाले को ही अपने पेपर में बड़ा स्पेस देकर उन्हें समाजसेवी और धार्मिक बताकर छापता है।

मशहूर टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने मंच को संबोधित करते हुए कहा कि लोग पूछते हैं कि मोदी ने देश को क्या दिया, तो मोदी ने देश को मां बहन की गाली देने वाली संस्कृति दी है। बेरोजगार युवाओं को लिंचिंग करने वाला हत्यारा बना दिया।

वहीं फ्रीलांसर नेहा दीक्षित ने बताया कि संघ पर बेबी उठाओ ऑपरेशन करने के बाद उन्हें किसी किस तरह की मुसीबत और सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग से गुजरना पड़ा। आउटलुक में वो रिपोर्ट छपी थी पर कोर्ट से नोटिस आने के बाद पत्रिका ने मेरा फोन उठाना बंद कर दिया। मैं घर उनसे ये पूछने के लिए फोन करूं कि तारीख कभी लगी है है मेरे नाम पर कोई सम्मन आया है क्या तो भी वो फोन नहीं उठाते। दस हजार शब्द की रिपोर्ट छापने के बावजूद पत्रिका ने कोई पेमेंट नहीं दिया।

आखिरी वक्ता के तौर पर निखिल वागले ने बताया कि कैसे ट्रोलिंग की संस्कृति को पिछले दस साल में डेवलप किया गया है। मीडिया ने मोदी के खिलाफ प्रधानमंत्री बनने के बाद से नहीं, बल्कि भाजपा का प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित होने के बाद से ही उनके खिलाफ लिखना बंद कर दिया था। इसके लिए कार्पोरेट का भी आदेश था। मेरे द्वारा मोदी के खिलाफ सोशल मीडिया पर लिखने पर मेरे मीडिया प्रबंधन ने मुझसे कहा कि मोदी के खिलाफ इतना न लिखूं।

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