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झारखंड

5 महीने के पोते को लेकर कबाड़ बेचने बिहार से झारखंड पहुंचा मुसहर परिवार, पर नहीं मिला खरीदार

Nirmal kant
22 April 2020 3:30 AM GMT
5 महीने के पोते को लेकर कबाड़ बेचने बिहार से झारखंड पहुंचा मुसहर परिवार, पर नहीं मिला खरीदार
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मोहन मांझी जब परिवार के साथ कबाड़ बेचने आए तो उनके साथ उनका पूरा परिवार था, जिसमें 5 महीने का मासूम पोता भी था। मोहन मांझी ने बच्चे को क्यों लेकर आए पूछने पर कहा कि हमलोगों की दुनिया इस गाड़ी पर ही है...

जनज्वार, देवघर। कोरोना महामारी को लेकर जारी लाॅकडाउन से छोटे-छोटे उपाय कर जीवन चलाने वालों की आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई है। जब मध्यम वर्ग की हालत खराब है तो दिहाड़ी में कमाई कर घर चलाने वालों पर तो आफत ही आ गयी है। बिहार के सुल्तानगंज से झारखंड के देवघर तक बाबा बैद्यनाथ के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए बने कांवरियां पथ पर हजारों लोगों को छोटे-मोटे रोजगार मिलते हैं, जिनसे उनकी जिंदगी चलती है।

कांवरिया पथ पर सावन-भादो के महीने में जहां लाख लोग चलते हैं, वहीं आम दिनों में भी बाबा बैद्यनाथ को जल चढाने हजारों लोग पैदल चला करते हैं। हालांकि कोरोना लाॅकडाउन की वजह से कांवर यात्रा अभी बंद है और दोनों राज्यों की सीमा को सील कर वहां पुलिस व मेडिकल की टीमें तैनात कर दी गयी हैं।

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स कांवरियां पथ पर हमारी मुलाकात एक ऐसे परिवार से हुई जो श्रद्धालुओं के द्वारा उपयोग कर फेंके गए बोतल-डब्बे के चुन कर उसे कबाड़ी वाले को बेचकर अपना गुजारा करता है। मोहन मांझी व उनकी पत्नी रेखा देवी के इस परिवार के पास पैसों की दिक्कत है, सो उन्होंने जो कबाड़ चुन रखा था उसे बेचने के लिए अपनी मोटर लगे ठेला से बिहार के बांका जिले के चानन से झारखंड के देवघर चला आया ताकि उसे बेचकर कुछ पैसे हो जाएं जिससे उनकी नकदी की दिक्कत दूर हो जाए।

देवघर में उनका कबाड़ी का सामान बिका नहीं और फिर उन्हें वापस जाना पड़ा। उनकी गाड़ी पर कई बोरियों में कबाड़ लदा हुआ था, जिस पर उनके परिवार के लोग बैठे थे। मोहन ने बताया कि कबाड़ का थोक में काम करने वालों का माल बाहर नहीं निकल रहा है, इसलिए वे हमशे हमारा कबाड़ लेने को राजी नहीं हुए।

मोहन मांझी जब परिवार के साथ कबाड़ बेचने आए तो उनके साथ उनका पूरा परिवार था, जिसमें पांच महीने का मासूम पोता भी था। मोहन मांझी ने बच्चे को क्यों लेकर आए पूछने पर कहा कि हमलोगों की दुनिया इस गाड़ी पर ही है। हम कबाड़ी भी चुनने में इसका उपयोग करते हैं और उसे बेचने भी इसी से जाया करते हैं।

मोहन के अनुसार, वे उनकी पत्नी रेखा देवी और बहू फुदकी कबाड़ी चुनने का काम करता है, जबकि बड़ा बेटा अजय बच्चों की गाड़ी पर देखभाल करता है। अजय व फुदकी के छोटे-छोटे तीन बच्चे हैं। वहीं, अजय खुद तीन भाई है। उससे छोटा भाई अनिल गाड़ी चलाता है जबकि एक भाई की उम्र पांच-छह साल के करीब होगी। यानी यह परिवार चार छोटे बच्चों को लेकर लाॅकडाउन में आजीविका चलाने के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य को जाने को मजबूर है।

बिहार-झारखंड के मुख्यमार्ग व कांवरिया पथ पर सीमाएं सील हैं, सो यह परिवार गांव से होते ऐसे रास्ते से गुजरता है, जहां पुलिस वाले नहीं मिलें।

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रेखा देवी पूछने पर कहती हैं कि उनके पांच महीने के पोते को भी दूध नहीं मिलता है और वह मां की दूध पर ही निर्भर है, लेकिन अच्छा खाना नहीं मिलने से मां को भी दूध नहीं बनता है, जिससे बच्चे को दिक्कत आती है। बहू से सवाल करने पर वह कोई जवाब नहीं देती। सास ही सारी बात बताती हैं।

जाति से आने वाला यह परिवार इस लाॅकडाउन में नमक भात व माड़-भात खाकर गुजारा करने को मजबूर है। परिवार को इस बात से थोड़ी राहत है कि बिहार सरकार ने कुछ अनाज बंटवाये हैं, जिनसे उनके सामने भूखे रहने की नौबत अभी नहीं आयी है। हालांकि वे आने वाले दिनों को लेकर आशंकित हैं कि यह बंदी कितने दिनों तक चलेगी। क्योंकि कबाड़ बेचना तो एक चुनौती है ही, कांवरियां पथ पर श्रद्धालुओं का आवागमन नहीं होने से नया कबाड़ भी तैयार नहीं हो रहा है, जिसे वे चुनें।

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