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जनज्वार विशेष

पिता की उम्र का था फेसबुक का मेरा पहला प्रेमी

Janjwar Team
1 Oct 2017 7:21 PM GMT
पिता की उम्र का था फेसबुक का मेरा पहला प्रेमी
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वह मेरा पहला प्रेम था। प्रेम को लेकर मेरे सभी अनुभव और अनुभूतियां बिलकुल नई और ताजी थीं। मैं उससे मिलने की खुशी में बावली हुई जा रही थी...

एपी मिश्र

मैं ऐसी पांच लड़कियों—औरतों से मिला जो फेसबुक पर हुए प्रेम के अनुभवों से गुजर चुकी थीं और उनके पास अपने प्रेमियों की कुछ खट्टी—मिठी यादें थीं। इन सभी ने बड़े बिंदास और सहज तरीके से बताया कि कब, क्या, कैसे हुआ, वह प्यार में कितना जीं और कितनी मरीं।

इनमें से तीन की जानकारियां मुझे पुलिस, परिजनों और घटना के जानकारों से मिलीं, जबकि दो से औपचारिक मुलाकात रही। पर इन सभी घटनाओं में फेसबुक पर प्रेम होने, प्रेम को जीने, फिर उनके शिकवा—शिकायतों में बदलने और आरोप—प्रत्यारोप बनने तक के सफर का विवरण खुलकर सामने आया।

लड़कियों के अनुभव बताएंगे कि आमने—सामने होने वाले प्यार के मुकाबले यह दुनिया कितनी बदली है, झूठ, फरेब और धोखे का प्रतिशत कितना कम हुआ है और कितना प्यार बचा है जिसमें कोई शातिरी नहीं है। या प्रेम की दुनिया उतनी ही अविश्वासी और शक—शुबहा वाली जस—की—तस ठस बनी हुई है, सिर्फ साधन बदल गया है।

सबसे पहले मासूम उम्र की लड़की अनुलता का फेसबुक पर हुआ प्रेम।

यह किस्सा तब पता चला जब उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के एक थाने में पहुंचा। मामला थाने में तब पहुंचा जब एक लड़की अनुलता (काल्पनिक नाम) घर से गायब हो गयी, लड़की गायब तब हुई जब वह पढ़ने गोरखपुर विश्वविद्यालय गयी और विश्वविद्यालय तब गयी जब उसने इंटर पास कर लिया।

इस फेसबुक प्रेम में सारा दोष लड़की के इंटर पास करने का है।

दरअसल, लड़की के पिता ने अपनी जवान होती बेटी से कहा था कि जब तुम इंटर अच्छे नंबरों से पास कर जाओगी तो एफबी प्रोफाइल बना लेना। मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा। अभी पढ़ाई पर ध्यान दो।

लड़की ने पिता के आज्ञा का पालन किया। लड़की पढ़ने में होनहार थी, उसने इंटर अच्छे नंबरों से पास किया। 9 जून को रिजल्ट आया, घर में मिठाइयां बंटीं, मोहल्ला गदगद था और रिश्तेदारों ने फोन पर पंक्तिबद्ध हो बधाइयां दीं। इस खुशी के बीच लड़की ने देर रात अपनी एफबी प्रोफाइल बना डाली और अपनी तस्वीर लगाई।

थाने में पहुंचे लड़की के रिश्तेदार जुलाई में हुई इस घटना का याद करते हुए कहते हैं, 'बहुत प्यारी और समझदार बच्ची है। आपको पता है उसने इस लफड़े से खुद अपने को बचाया। घर वाले तो मरने—मारने पर उतारू थे। पर वह नामसमझी में ऐसा कर बैठी। आप खुद घटना का विवरण सुनेंगे तो लगेगा कि कितनी सॉलिड समझ की लड़की है।'

रिश्तेदार हमें बताते हैं, 'थाने में हम सभी उसका इंतजार कर रहे थे। मां, बाप, चाचा, उनके लड़के समेत दर्जनों लोग थाने पर थे। उसने एसएचओ से साफ कहा कि वह पहले थाने आएगी, फिर सबको समझाएगी, उसके बाद घर जाएगी।'

रिश्तेदार थोड़ा गर्व से थाने पहुंची लड़की की जुबानी वारदात को बताना शुरू करते हुए कहते हैं, बकौल लड़की —'पिता के वादे मुताबिक मैंने 9 जून की रात फेसबुक पर प्रोफाइल बनाई। कम्प्यूटर स्क्रीन पर पहली दफा फोटो देख मैं बहुत खुश हुई। मैंने एक अपना वीडियो बनाकर डाला और खुद को किसी हीरोइन जैसा महसूस किया। उस रात मैं जब सोने जा रही थी तभी एक फ्रेंड रिक्वेस्ट आई और साथ में हेल्लो भी। मैंने प्रोफाइल चेक की। वह एक लड़के का फोटो थी। लड़का दिखने में ठीक था, मैंने उसकी प्रोफाइल चेक की तो वह हमारी तरह ही गोरखपुर यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन कर रहा था। मैंने रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली और तबसे हमारी बातचीत शुरू हो गयी।'

लड़की के रिश्तेदार थोड़ा टेक लेकर कहते हैं कि इस बीच एसएचओ बोला....तो?

लड़की, 'तो...बिल्कुल जो आप पूछना चाहते हैं वही। मैं उसे प्यार करने लगी। उसकी फोटो देख पहली बार में मुझ उससे प्यार हो गया। बिल्कुल सिनेमा जैसा पहली नजर में। हमारी घंटों बातचीत होती थी। वह भी मुझसे प्यार करता था। हम दोनों बहुत सारी बातें साझा करते थे। इंटर पास कर मैंने यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया, तब भी बातें जारी रहीं। पर इसका मतलब आप यह न समझें कि मैं मीरा हो गयी। मैंने इस बीच अपनी पूरी पढ़ाई की, घरवालों से लगातार बात करती रही और सबके टच में रही। और उससे भी जुड़ी रही।'

इतना सुनने के बाद लड़की के पिता बोले, 'हमें तो अभी भी सबकुछ झूठ लग रहा है, क्योंकि हमें कभी लगा ही नहीं कि मेरी बेटी कहीं और भी इनवॉल्व है या हो सकती है।'

पिता को रोकते हुए लड़की बोली, 'पापा, इनवॉल्व नहीं थी, वह मुझे पसंद था। मैं कोई पगला नहीं गयी थी। मैं सीधे घर आ जाती पर मुझे पता था कि ये लोग जिनके साथ आप आए हैं ये लोग मुझे बोलने नहीं देते और आपकी गंजन कर देते, इसलिए मैं थाने आई हूं कि आप मुझे समझ सकें और आपको अपने बेटी पर गुमान बना रहे। आखिर लाइफ में कोई किसी को पसंद तो आता ही है न। मुझे भी पसंद आ गया था। पर अब नहीं। अब आगे सुनो।'

लड़की के एक फूफा बोले, 'देखो कितनी चपलता से बात कर रही है। इसका मन बढ़ा के रखा हुआ है इसके बाप ने। हमारी होती तो दो चमाट देते।'

आंखों देखी सुना रहे रिश्तेदार बीच में बोले, 'इतना सुनते ही लड़की फुफकार उठी। बोली, इसी चमाट का नतीजा था कि आपकी बेटी के साथ कॉलेज में तीन साल तक छेड़छाड़ होती रही और एक जुबान आपको नहीं बता सकी। आपको भी तब पता चला जब पूरी दुनिया को अखबार से पता चल गया। आपको अपना पापा समझ पाती तब तो बताती। बस मुंह न खुलवाइए, वैसे भी मैं जली पड़ी हूं।'

आगे सुनिए! मुझे अपने फेसबुक लवर पर संदेह तब हुआ जब वह मुझसे मिलने से मुकरने लगा। एक तो मैं उसे प्यार करने लगी थी सच्ची वाला, बिल्कुल सच्ची वाला और ऊपर से वह मिल नहीं रहा था। मुझे बहुत बेचैनी होने लगी थी। किसी काम में मन लगता नहीं था। मैं डिस्टर्ब रहने लगी थी। पर मुझे ध्यान था कि प्यार में पागल नहीं होना है। वैसे भी वह प्यार ही कैसा जो आदमी को पागल कर दे। प्यार जिंदगी में चार—चांद लाने के लिए होता है, पतझड़ के लिए कोई प्यार तो करता नहीं।

जब तक उससे मिलने का मन नहीं हुआ था तब तक सब ठीक था पर मिलने की बात आने पर उसका रवैया मुझे खलने लगा। उसके लिए 15 अगस्त, अरे यही वाला, पर मैं घर नहीं गयी। सोचा मिल ही लेती हूं। रोज सच्चे—झूठे किस्से फेसबुक के धोखाधड़ी के छपते रहते हैं। पर मुझे खुद पर भरोसा था और उस फेसबुक लवर पर भी।

छुट्टियों में घर आने के बारे में पापा पूछते रहे, मैंने टाल दिया, सोचा इस बार मिल लेती हूं। तीन—चार दिन की छुट्टियां थीं और मेरे पास 5 हजार रुपए भी थे। तय कर लिया था, जहां कहेगा, बुलाएगा वहां मिल लूंगी। पर इतनी बात भी ध्यान थी कि अकेले नहीं मिलूंगी, पहली मुलाकात सार्वजनिक जगह पर ही करूंगी।

कभी वह कहता मुंबई हूं, कभी दिल्ली, कभी कहीं—कभी कहीं। मैंने अब तक सुना था लड़कियां टाइम नहीं देती हैं, पर मेरे मामले में लड़का ही भगेड़ू निकला। कई बार दिमाग में आता कि मेरे से सिर्फ एक साल सीनियर है और यह किस काम से मुंबई—दिल्ली जाता रहता है।

पर वह दिन आ ही गया जब हमारी और उसकी मुलाकात की तारीख तय हुई। वह मेरा पहला प्रेम था। प्रेम को लेकर मेरे सभी अनुभव और अनुभूतियां बिलकुल नई और ताजी थीं। मैं उससे मिलने की खुशी में बावली हुई जा रही थी। 15 अगस्त की छुट्टियों में तो वह नहीं मिला, लेकिन सितंबर में उससे मिलना तय हुआ।

उसने बताया कि वह लखनऊ में हजरतगंज पर कैफे कॉफी डे में वह दिन में 2 बजे मिलेगा। मैं एक बार केवल लखनऊ गई थी, पर मैंने उससे पता मांग लिया था। मैंने सुबह गोरखपुर इंटरसिटी पकड़ी और 11 बजे लखनऊ पहुंच गयी। पहले कुछ खाया, उसके बाद एसी वेटिंग रूम में कपड़े बदलकर तैयार हुई। हालांकि ट्वायलेट से बहुत बदबू आ रही थी, पर कोई और विकल्प नहीं था। होटल में रुकना लफड़े का काम लगा वह भी दो—तीन घंटों के लिए।

पर मैंने उस दिन सूट पहना। उसके रंगों के पसंद के कपड़े पहने, सजी—धजी जितना उस बदबूदार जगह में सज सकती थी और निकल पड़ी पहले पहले प्रेमी से मिलने। मैंने रिक्शा पकड़ा। हजरतगंज गई। मैं सजने के बाद खुद को बहुत देख नहीं पाई। मोबाइल के फ्रंट कैमरे से एक—दो खुद को निहारने की कोशिश की। सोच रही थी कहीं देख कर मुझे रिजेक्ट तो नहीं कर देगा, क्योंकि वह तस्वीरों में बहुत सुंदर दिखता था और प्यारा भी...

...पर हजरतगंज पहुंचने से पहले तक जितने लोगों ने मुझे रिक्शे से जाते हुए घूरा उससे मैंने भरोसा कर लिया कि मैं अच्छी दिख रही हूं।'

फेसबुक पर हुए प्रेम की कहानी सुना रहे लड़की के रिश्तेदार कहते हैं, 'कहानी के इस मोड़ तक आने तक पूरे थाने में सन्नाटा पसर गया था। सिर्फ वायरलेस की आवाजें थीं। उसे भी एसएचओ ने बंद करा दिया। एसएसपी का वायरलेस और 100 का वायरलेस लेकर दो होमगॉर्ड हम लोग जहां बैठे थे, उससे दूर चले गए थे बाकी पूरा थाना मुंह बाए लड़की को सुन रहा था।'

लड़की ने बोलना जारी रखा, 'मैं कैफे कॉफी डे में पहुंच गयी। वहां बैठे एक लड़के पर मेरी निगाह पड़ी, पर वह मेरी मोबाइल में पड़ी उसकी फोटो से मैच नहीं खाता था। मैं उससे अब सीधे मिलना चाहती थी इसलिए फोन नहीं किया। सोचा आएगा तो मिलूंगी। इस बीच मैंने एक कॉफी और केक मंगाया। साढ़े तीन बज गए वह नहीं आया। उसके बाद मैं उसको बार—बार फोन करने लगी पर उसका नंबर ही न मिले। मैं परेशान। मेरी सारी सजावट गायब होने लगी। एसी में बैठे आदमी को पसीना कैसे आता है उस दिन मैंने महसूस किया।'

मैंने उसे फेसबुक, वाट्सअप सब किया पर कोई जवाब नहीं। मैं बार—बार मोबाइल चेक करती। इस बीच साढ़े चार बजे उसका मैसेज आया कि उसके घर में उसकी दादी की डेथ हो गयी है, इसलिए वह नहीं आ पाया है। मैं इतने गुस्से में थी कि उसको मैसेज डाला कि अपने घर का पता दो मैं वहां आती हूं। वहीं मिल लूंगी। वह हक्का—बक्का रह गया। अब उसका फोन आया। वह लगभग गिड़गिड़ाने लगा। मैं उस पर चढ़ बैठी। मैंने कहा, तुम जहां हो मैं मिलना चाहती हूं।

उसने थककर कहा कि वह खलीलाबाद का रहने वाला है, वह घर पर नहीं बुला सकता, पर स्टेशन पर मिल सकता है। उससे पहले तक वह खुद को यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाला और गोरखपुर में रहने वाला बताता रहा था। शुरू के कुछ महीने तो मैंने भी नहीं कहा मिलने के लिए, लेकिन मैंने उससे जुलाई के आखिर में मिलने की इच्छा जाहिर की, पर वह मुझसे कभी गोरखपुर में भी नहीं मिल सका।

कोई ट्रेन लेट थी जो मुझे लखनऊ से शाम 5 बजे खलीलाबाद के लिए मिल गयी। रात 11 बजे मैं खलीलाबाद स्टेशन पर उतर गयी। फिर उसका नंबर न मिले। छोटा सा स्टेशन। स्टेशन पर बहुत कम लोग। किसी तरह नंबर रात 12 बजे मिल गया। वह बोला स्टेशन पर हूं। मैंने कहा, मैं भी हूं। मैंने उसे गेट के पास या वेटिंग रूम में आने को बोला तो वह मुकर गया। बोला कि वह यहीं का है और उसे स्टेशन पर बहुत से लोग पहचानते हैं।

उसने मुझे स्टेशन से बाहर अंधेरे में बुलाया। मैंने तय किया था कि ऐसे जगहों पर नहीं मिलूंगी। इसलिए मैं बाहर नहीं गयी पर वह जहां प्लेटफॉर्म पर मुझसे मिला, वहां बिल्कुल अंधेरा था। पर उसका इस तरह मुझे बुलाना मेरे अंदर का प्यार कम और डर ज्यादा जगा चुका था। मुझे उससे वहां मिलने में डर लगा पर मैं उससे एक बार मिल लेना चाहती थी, सो चली गयी।

हम अब आमने सामने थे। अंधेरे में ही उसका चेहरा देख मुझे लगा यह वह आदमी तो नहीं जिससे मैं महीनों से बात करती रही हूं, प्यार करती हूं और उसके साथ जीती हूं। अंधेरे में दिख रहे आदमी को घूरते हुए ही मैंने अपना टॉर्च आॅन किया। वह कोई अधबूढ़ा सा 50—55 साल का आदमी था। वह प्लेटफॉर्म की बनी हुई सीटों पर बैठा हुआ था और मैं उसे बार—बार टॉर्च से देख रही थी।

मैं उसे देखकर अवाक थी और मुझे घिन सी महसूस हुई। मुझे लगा मैं गिर जाऊंगी। पर मैं अंदर से इतना डरी हुई थी कि मैंने खुद को सचेत किया और संभाला। मैंने तसल्ली के लिए फोन मिलाया, तो वहीं उसी के हाथ में रिंग हुई। मैंने मैसेज किया, वाट्सअप से तो उसी की लाइट जली। मैंने उसका फोन छीनकर सारे मैसेज देखे। वह हम दोनों की बातचीत के थे।

लगभग घिनाते हुए उसकी गोद में मैंने उसकी मोबाइल फेंक दी। वह खड़ा हुआ और मेरे बगल में खड़े होते हुए बोला, मैं इसीलिए तो मिलना नहीं चाहता था। मुझे क्या पता था कि तुम यहां तक आ जाओगी। हम तो फोन पर ही मजा लेते रहते हैं।

और फिर वह बेंच पर बैठ गया...मेरी जुबान खुल ही नहीं रही थी। मेरे मन में उस समय क्या—क्या हो रहा था, मैं बता नहीं सकती। पर मेरा मन बार—बार कर रहा था इसके सिर पर बड़ा पत्थर मार दूं या इसे ट्रेन के आगे बिलकुल बाहुबली के अंदाज में मरने के लिए फेंक दूं।

मैं उसके सामने अंधेरे में अवाक कुछ देर खड़ी रही। वह बैठे—बैठे बोला, 'मैंने यहीं होटल में कमरा लिया है, वहीं हम दोनों रात में रुक जाते हैं। बस तुम्हें यह बताना होगा कि तुम मेरी बेटी हो। बाकी कोई दिक्कत नहीं है।'

थाने में पूरी घटना को ब्यौरेवार बता रहे रिश्तेदार कहते हैं, 'अब पूरे मामले का एंड सुनिए कि लड़की ने कैसे किया?

लड़की के मुताबिक, 'जैसे ही मेरे प्रेमी ने कहा कि होटल में बेटी बोल देना, मेरे गुस्से और घृणा की सभी कोशिकाएं एक साथ जाग उठीं। मैं उसकी तरफ मुड़ी और उसके चेहरे पर जोर की तीन लात, पेट पर एक और उसके अंडकोष पर आखिरी मारी। और वहां से दौड़ते हुए निकल आई स्टेशन पर। रातभर वहीं स्टेशन पर रही, लेकिन तब तक तो आप लोगों ने हंगामा ही काट दिया।'

लड़की के पिता, 'लेकिन तुमने फोन उठाकर बता तो दिया होता कि कहां और किस हालत में हो। अगर तुमने फोन पिक कर लिया होता तो हम लोगों को इतना बखेड़ा क्यों करना होता।'

लड़की, 'फोन उठाते ही आप लोग लफड़ा इतना फैला देते कि उसे समेटने और उसकी मानसिक पीड़ा से निकलने में महीनों लग जाता। अभी तो बस इतना है कि एक आदमी ने मुझे प्रेम में ठग दिया। अब सब शांति से निपट जाएगा और ये आपके ये आगलगाऊ रिश्तेदार आपको ज्यादा कुछ नहीं कह पाएंगे।

फेसबुक पर अपनी रिश्तेदार लड़की के प्रेम की कहानी सुना रहे सज्जन ने कहा कि लड़की की बेबाकी और समझदारी से इतना प्रभावित हुआ कि उसने अगले रोज उसे अपने घर बुलाया। एसएचओ ने लड़की के पिता से निवेदन करते हुए कहा कि इसे कल मेरे घर लेकर आइए, मुझे लगता है मेरी भी बेटी ऐसे ही किसी प्रेम में पड़ी है, उसकी मां को शक है। शायद आपकी बेटी बताए तो मेरी बेटी की भी आंख खुल जाए, क्योंकि आपकी बेटी ने जो किया है, उसी से अपराध रुकेगा, न कि हम लोगों के डंडों से।' (फोटो प्रतीकात्मक)

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