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समाज की नजरों में हम आदर्श दंपति हैं, दो बच्चों के मां—बाप। जिनका दाम्पत्य जीवन सुखपूर्वक व्यतीत हो रहा है...
'हाउस वाइफ' कॉलम में इस बार अपना अनुभव साझा कर रही हैं पंजाब के लुधियाना से रुचि
मैं दिल्ली में पली—बढ़ी हूं। बी कॉम करने के बाद जॉब करने लगी थी, कि दूर के एक रिश्तेदार ने रिश्ता तय करवा दिया। गरीब घर की हूं, और जहां शादी हुई वो खाता—पीता परिवार था। ससुराल में सास, एक विवाहित ननद, उनका बेटा, जेठ—जेठानी और उनके दो बच्चे थे।
जब रिश्ता तय हुआ तो मेरी मर्जी शादी करने की बिल्कुल नहीं थी, घर में सबसे बड़ी बेटी थी तो चाहती थी पिता की कुछ आर्थिक मदद कर उनका हाथ बटाउं, जिससे मेरे 4 छोटे भाई—बहनों की पढ़ाई में दिक्कत न आए। मगर मां की जिद के आगे मेरी और पापा की एक न चली। दस साल पहले जब शादी हुई थी तब 11 हजार सेलरी मिलती थी, जिसे पिता को काफी हद तक घर चलाने में मदद मिल जाती थी।
पिता शायद थोड़ा टूटे थे मेरी शादी के वक्त, क्योंकि मैं बेटा बनकर मदद कर रही थी उनकी। मेरी सेलरी से छोटे भाई—बहनों की पढ़ाई के अलावा घर का किराया आराम से चला जाता था। पिता चूंकि पढ़े—लिखे नहीं थे, इसलिए एक फैक्टरी में मामूली गार्ड की नौकरी करते थे, जिससे परिवार का बसर होना बहुत मुश्किल था। पिता की आंखों में इसीलिए मेरी पढ़ाई के बाद सपने पलने लगे थे। मगर मां ने जब समाज—बिरादरी का हवाला दिया तो पिता की एक न चली।
चूंकि मैं दिखने में खूबसूरत थी, कद—काठी भी अच्छी थी, पढ़ी—लिखी भी थी, तो पहली ही नजर में मुझ पर हां की मोहर लग गई। चाहती थी शादी से पहले होने वाले पति से बात करूं, मगर मां ने समाज और रिश्तेदारी का तकाजा दे और यह कहकर कि लड़का सुंदर है अपना बिजनैस है क्या बात करेगी? कहते हुए मेरी बात भी नहीं होने दी।
खैर, मेरी शादी हो गई। शादी के बाद पता चला कि मेरे पति का बिजनैस जरूर अपना है, मगर वो सिर्फ आठवीं तक स्कूल गए हैं। जबकि मैंने हमेशा चाहा था कि मेरा पति पढ़ा—लिखा हो। जब मैंने शादी के बाद पति से कहा कि तो क्या हुआ आठवीं तक स्कूल गए हैं, अब भी आप प्राइवेट पढ़ाई कर सकते हो? तो पति यह सुनकर सनक गए।
कहा अपनी पढ़ाई का बहुत घमंड हो गया है तुझे। 11 हजार पाती थी न महीने में, इतना तो मैं रोज अपने खर्चों में उड़ा देता हूं। मुझे न सिखाओ कि क्या करना चाहिए। तुम जैसी सो कॉल्ड पढ़ी—लिखी दिल्ली की हजारों लड़कियां मिल जाएंगी मुझे रात गुजारने के लिए। मेरा अहसान मानो कि मैंने अपने लिए तुम्हें चुना और तुम्हारे दिन फिर गए। शायद पढ़ाई की बात से उनके अहं को ठेस पहुंच थी। ये शादी के लगभग 2 महीने बाद की बात है। जब मैंने पति से कहा कि घर में नौकर—चाकर हैं खाना बनाने के बाद मेरे पास ज्यादा काम भी नहीं रहता है। मैं भी थोड़ा काम करना चाहती हूं।
तब भी पति के अहं को ठेस ही पहुंची थी कि मैं नौकरी की बात इसलिए कर रही हूं कि पढ़ी—लिखी हूं और उन्हें नीचा दिखाना चाहती हूं। अब तो वो मुझे मेरी पढ़ाई को लेकर रोज ताने देने लगे। कहते सिर्फ तुम जैसी चरित्रहीन पत्नियां ही घर से बाहर निकलना चाहती हैं, ताकि घर से बाहर नौकरी के नाम पर गुलछर्रे उड़ा सकें। नहीं समझ पाए पति मुझे कभी। मैं नौकरी इसलिए करना चाहती थी कि खुद कमाउंगी तो पिता की कुछ मदद कर पाउंगी।
जब ससुराल में अपने लिए तमाम ऐशो—आराम, तमाम तरह की बर्बादी देखती और अपने मां—बाप, भाई—बहिन को एक—एक सुविधा के लिए तरसते देखती तो तड़प कर रह जाती।
शादी के दो साल के अंदर अब मैं दो बच्चों की मां बन चुकी थी। शादी चूंकि पंजाब में हुई थी, और पति का वहीं पर कपड़ों का बिजनैस था तो इन दो सालों में मैं सिर्फ 2 बार आ पाई थी मायके। पिता के पास मोबाइल भी अभी 3—4 साल पहले आया है, पहले तो पड़ोस की आंटी के घर फोन करके हालचाल लेना पड़ता था।
त्योहारों पर जब जेठानी के घर से तमाम उपहार आते, तब मुझे ताने जरूर दिए जाते कि कंगाल क्या भेजेंगे। मैंने मां—पिता से साफ कह दिया था कि मेरे लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है। जब पति से इसका विरोध किया एक बार कि आप लोग जानते थे मेरे मायके कि हैसियत तो अब यह ताने क्यों? तो वो और चिढ़ गए। कहने लगे पिता तो खुद को बेचकर भी बेटी का पूरा करता है। घिन आ गई थी उस दिन कि कैसे आदमी के साथ रहती हूं।
पति से जब भी मायके जाने की बात करती तो वो नाक—भौं सिकोड़ने लगते कि कौन जाएगा उतने कंजेस्ट्रेट इलाके में, तुम्हारे घर में रात को रूकने तक की तो जगह नहीं है, कोई प्राइवेसी नहीं है, कंगाल के घर पैदा हुई हो, क्या जाना वहां। बच्चे होने के बाद तो उन्हें और भी बहाना मिल गया मुझे वहां न भेजने का, कहते मेरे बच्चे वहां जाकर कहां रहेंगे बीमार पड़ जाएंगे, चुपचाप यहीं पड़ी रहो।
पति की हरकतों को देख गुस्से के साथ ताज्जुब तब हुआ जब मेरा शादी से पहले दिया हुआ सरकारी नौकरी के लिए एक आवेदन में लिखित परीक्षा का परिणाम आया था। मैंने लिखित परीक्षा पास कर ली थी, मुझे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था। मुझे रोकने के लिए पहले तो पति ने तरह—तरह के बहाने किए, बाद में जब मैं जिद करने लगी तो यह कहते हुए धमकाया कि पहले तलाक के पेपरों पर साइन करो फिर घर से बाहर कदम रखना। बी कॉम के बाद जब नौकरी करनी शुरू की तो सरकारी नौकरी के ख्वाब लिए तमाम सरकारी नौकरियों के आवेदन भरने लगी थी मैं। इस ख्वाब को भी पति ने पूरा नहीं होने दिया।
आज मेरा बेटा 9 साल का हो गया है और बेटी 8 साल की। उन्हें भी जब पढ़ाने बैठती हूं तो पति के ताने शुरू हो जाते हैं। वो नहीं चाहते कि मैं बच्चों तक को पढ़ाउं, क्योंकि मेरा पढ़ाना भी उन्हें लगता है कि मैं उन्हें नीचा दिखा रही हूं। बच्चों को घर पर पढ़ाने के लिए होम ट्यूटर रख दिए गए। अब मेरी हालत यह है कि मुझे किताबों को देख डर लगने लगा है। मैं डिप्रेस्ड हो रही हूं, और पति को मुझे इस हालत में देख एक अजीब सुकून मिलता है। मेरे सपने, मेरे ख्वाब, पिता की मदद करने की जिद सब दफन हो गए हैं।
अब तो कांफिडेंस लेवल भी डगमगाने लगा है, जबकि स्कूल टाइम में मैं हमेशा हेड गर्ल हुआ करती थी क्लास की, हमेशा अव्वल रहती थी गेम से लेकर पढ़ाई तक में। मगर अब ये बीती बातें हो चुकी हैं। अब तो मुझे लगता भी नहीं कि मैं कभी कॉलेज भी गई होउंगी या फिर कभी मैंने नौकरी भी की होगी।
समझ में नहीं आता कि आखिर मुझसे गलती हुई कहां, कौन सा अहं आड़े आता है पति का मेरी पढ़ाई से। क्या पत्नी का ज्यादा पढ़ा लिखा होना सहन नहीं कर पाता मर्द।
घर में तमाम ऐशो—आराम है, लेकिन मुझे सुकून नहीं है। नहीं जी पाती मैं ये जिंदगी, लगता है जैसे पिता की उम्मीद भरी निगाहें मुझे ही ताक रही होंगी मरते हुए, कि मेरी बेटी घर के सपने पूरे करेगी। हां, मेरे पिता की दो साल पहले एक रोड एक्सीडेंट में उस वक्त मौत हो गई, जब वो नाइट ड्यूटी करके घर को लौट रहे थे। एक कार से हुई टक्कर में मौके पर ही उनकी मौत हो गई।
पिता की मौत पर भी पतिदेव मात्र 1 घंटे के लिए जाने को तैयार हुए थे। किलसती हूं आज मैं अपनी इस जिंदगी को देखकर। सोचती हूं काश जिंदगी में कोई ऐसा हमसफर मिला होता जो मुझे समझता, समझता कि पैसा ही सबकुछ नहीं होता जिंदगी में। गरीब का दर्द भी महसूसता। फिर चाहे नमक—रोटी में ही गुजारा क्यों न करना पड़ता। यह शानो—शौकत वाली जीवन, उबकाई आती है इस पर।
और हां, समाज की नजरों में हम आदर्श दंपति हैं, दो बच्चों के मां—बाप। जिनका दाम्पत्य जीवन सुखपूर्वक व्यतीत हो रहा है। (फोटो प्रतीकात्मक)