Begin typing your search above and press return to search.
सिक्योरिटी

नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा क्यों नहीं चाहता प्रदूषणकारी उद्योगों को बंद करना

Prema Negi
26 May 2019 4:22 PM IST
नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा क्यों नहीं चाहता प्रदूषणकारी उद्योगों को बंद करना
x

सभी प्रदूषणकारी उद्योग नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की करते हैं जेबें गरम, इसलिए ये दोनों संस्थान नहीं चाहते इन्हें बंद करना, मगर एनजीटी बनी रहती है अनभिज्ञ इन बातों से...

महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक

राष्ट्रीय हरित न्यायालय (एनजीटी) ने नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा को गंगा मामले में नोडल संस्था घोषित किया है। इसका काम एनजीटी के हरेक आदेश का विभिन्न संस्थाओं के साथ मिलकर पालन करवाना और फिर कार्यान्वयन की सूचना एनजीटी को देना है। एनजीटी ने 13.7.2017 के आदेश में हरद्वार से कानपुर तक के गंगा के खंड के लिए आदेश दिया था कि गंगा में मिलने वाले संही नाले बंद कर दिए जाएँ और गंगा के किनारे जो उद्योग लगे हैं, यदि वे निर्धारित मानक से अधिक प्रदूषण करते हैं तब उन्हें बंद कर दिया जाए।

एनजीटी के समक्ष 30.4.2019 को प्रस्तुत रिपोर्ट में नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा ने सूचित किया कि इस खंड में गंगा में मिलाने वाले अनेक नाले अभी तक गंगा में मिल रहे हैं, कानपुर से नालों में ओवरफ्लो हो रहा है, जाजमऊ, बंथर और उन्नाव के टेनरीज (चर्म शोधन उद्योग) से अभी तक क्रोमियम और दूसरी हानिकारक प्रदूषणकारी पदार्थ गंगा में मिल रहे हैं।

इन उद्योगों के गंदे पानी के उपचारण के लिए जो कॉमन एफ्फ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) स्थापित किये गए हैं, वे ठीक काम नहीं कर रहे हैं। यह हालत तब है जबकि एनजीटी का आदेश है कि यदि सीईटीपी निर्धारित मानक पर काम करते नहीं पाए जाते हैं। ऐसी हालत में इसके सभी सदस्य उद्योगों को तुरंत बंद करने का आदेश दिया जाए और वे तभी फिर चालू किये जा सकेंगे, जब सीईटीपी निर्धारित मानक के अनुरूप काम करना शुरू करे। पर नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा की दरियादिली देखिये, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग चलते रहे।

इस मुद्दे को एनजीटी ने भी गंभीरता से लिया है। 1.5.2019 को प्रस्तुत रिपोर्ट में बताया गया है कि सीपीसीबी इस पक्ष में था कि प्रदूषणकारी उद्योगों को तुरंत बंद कर दिया जाए, पर नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस फैसले के विरुद्ध थे। एनजीटी ने अपने 14 मई के आर्डर में कहा है कि इन दोनों संस्थानों का रवैया हैरान करने वाला है, क्योंकि यह एनजीटी के आदेश की अवहेलना के साथ-साथ वाटर एक्ट की भी अवहेलना है।

यदि आप जरा सा भी सरकारी महकमों के जानकार हैं, तब जरूर समझ जायेंगे कि नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड क्यों प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को बंद करने के पक्ष में नहीं हैं। इसके दो ही कारण हो सकते हैं। पहला कारण तो यह है कि वहां इतने निकम्मे लोगों का जमावड़ा है कि उन्हें प्रदूषण के बारे में पता ही नहीं है। उन्हें ये लगता है कि इतने से प्रदूषण से इतनी बड़ी नदी का क्या बिगड़ेगा। पर यह कारण तो हो नहीं सकता क्योंकि आजकल तो बच्चों को भी प्रदूषण की जानकारी है।

दूसरा कारण है कि ये सभी प्रदूषणकारी उद्योग नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की खूब सेवा करते हैं और जेबें भरते हैं, इसलिए ये दोनों संस्थान इन्हें बंद नहीं करना चाहते। पता नहीं एनजीटी को यह बात क्यों नहीं समझ में आता।

सभी राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का अवैध पैसा वसूलना ही मुख्य काम है, तभी देश के किसी भी कोने में कैसा भी प्रदूषण हो, कभी कम नहीं होता, बस बढ़ता जाता है। आश्चर्य तो यह है कि नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा भी उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की राह पर चल पड़ा है।

तथ्य यही है कि न्यायालयों के तमाम आदेश के बाद भी इन संस्थानों के काम करने का तरीका नहीं बदलता। न्यायालय भी पता नहीं क्यों ऐसे संस्थानों पर क्यों सख्त रवैया नहीं अपनाती। जाहिर है, सरकारें आयेंगी-जायेंगी, न्यायालय बदलेंगे, न्यायाधीश बदलेंगे पर गंगा साफ़ नहीं होगी।

Next Story

विविध