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जनज्वार विशेष

गुजरात के सीएम ने किया था जिस क्रॉमिनी स्टील का शिलान्यास, पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करने पर एनजीटी ने किया बंद

Nirmal kant
26 Nov 2019 5:15 PM GMT
गुजरात के सीएम ने किया था जिस क्रॉमिनी स्टील का शिलान्यास, पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करने पर एनजीटी ने किया बंद
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न केवल क्रॉमिनी स्टील, बल्कि इस तरह की पूरे कच्छ जनपद में कई कंपनियां हैं, जिन्होंने पर्यावरण की मंजूरी नहीं ली है, इनमें शामिल है अडानी पोर्ट और दीनदयाल पोर्ट भी खुलेआम उड़ा रहीं पर्यावरण मानकों की धज्जियां...

गुजरात के कच्छ जिले से दत्तेश भावसार की खास खबर

जनज्वार। गुजरात का कच्छ सदियों से व्यापारिक और औद्योगिक गतिविधियों का केंद्र माना जाता रहा है, मगर पिछले कई सालों में अडाणी पोर्ट, दीनदयाल पोर्ट और क्रॉमनी स्टील कंपनियों ने जिस तरह से अपने उद्योग लगाकर पर्यावरण से जुड़े नियमों का उल्लघंन किया है, उसके कारण यहां प्राकृतिक रूप से कच्छ और अन्य इलाकों को काफी नुकसान हुआ है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 21 नवंबर को चीनी क्रोमिनी स्टील को कच्छ जिले में गुजरात के मुंद्रा ब्लॉक में अपने इस्पात संयंत्र में सभी गतिविधियों को रोकने का आदेश दिया है। गौरतलब है कि पर्यावरण स्वीकृति के बिना 6,000 करोड़ रुपये की परियोजना का निर्माण किया जा रहा था। पर्यावरण कार्यकर्ता गजेन्द्र सिंह जडेजा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने यह आदेश पारित किया है।

गौरतलब है कि 23 जनवरी, 2018 को गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने क्रॉमिनी स्टील नाम की कंपनी का शिलान्यास किया था, लेकिन इस कंपनी ने पर्यावरण मंत्रालय से बिना कोई पर्यावरण संबंधित मंजूरी लिए फैक्ट्री में प्रोडक्शन करना शुरू कर दिया, साथ ही बाजार और विदेशों में समान को बेचना भी शुरू कर दिया था।

स मामले पर नविनाड गांव के रहने वाले आरटीआई कार्यकर्ता गजेंद्र सिंह जाडेजा ने आरटीआई लगायी थी। जनज्वार से बातचीत में उन्होंने कहा कि गुजरात प्रदूषण बोर्ड और अन्य जिम्मेदार कचहरियों में शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। क्रॉमिनी स्टील कंपनी 213 एकड़ में फैली हुई है और वायब्रेंट गुजरात के तहत इस चीनी कंपनी को 6,000 करोड़ रुपए का निवेश करना था।

जेंद्र कहते हैं कि 'क्रॉमिनी स्टील कंपनी के शिलान्यास के दौरान राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, भाजपा की गुजरात इकाई के प्रमुख जीतूभाई वघानी तथा कई अन्य मंत्रियों और पूंजीपतियों को आमंत्रित किया गया था, जिस कारण सरकारी अधिकारी क्रॉमिनी स्टील कंपनी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रहे थे। जब किसी भी जगह कोई सुनवाई नहीं हुई तो मैंने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका दर्ज कराई और कंपनी से तुरंत काम को बंद कराने की अपील की।'

कौल गजेंद्र 'इस केस की सुनवाई में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने माना है कि कंपनी औद्योगिक अधिनियम के तहत बी कैटगरी में आती है, जबकि ईआईए नोटिफिकेशन 2006 के मुताबिक सेकेंडरी मेटल इंडस्ट्री शेड्यूल 3 (ए) के अनुसार बी कैटेगरी वाले प्रोजेक्ट को सरकार से पर्यावरण मंजूरी लेना जरूरी होता है। इस यूनिट में फर्नेस का उपयोग होता है और इनकी क्षमता 30,000 टन से भी ज्यादा होती है। इन मापदंडों के कारण इस कंपनी ने सरकार से किसी प्रकार की पर्यावरण मंजूरी लेना आवश्यक नहीं समझा।'

न्होंने कहा, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में 21 नवंबर को हुई सुनवाई में पर्यावरण मंत्रालय से स्पष्टीकरण मांगा गया था, लेकिन उनके द्वारा कोई स्पष्टीकरण ना आने की वजह से उनको 14 जनवरी तक का समय दिया गया है। जब तक मंत्रालय की तरफ से कोई स्पष्टीकरण नहीं आता तबतक कंपनी की सारी गतिविधियों को बंद करने का आदेश दिया गया।

केवल क्रॉमिनी स्टील, बल्कि इस तरह की पूरे कच्छ जनपद में कई कंपनियां हैं, जिन्होंने पर्यावरण की मंजूरी नहीं ली है। अब मांग उठने लगी है कि गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उन सभी कंपनियों पर कार्रवाई करे, जिन्होंने पर्यावरण मंजूरी नहीं ली है।

नियमों के अनुसार एनवायरमेंट क्लीयरिंग लेनी जरूरी होती है, मगर यहां पर यही बात फिट बैठती है कि "जब सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का"। हालांकि कच्छ जिले में क्रॉमिनी स्टील के अलावा कई कंपनियां नियमों का पालन नहीं करतीं। अदानी पोर्ट और डीटीपी पोर्ट भी नियमों को ताक पर रखे हुए हैं। यह हाल तब है जबकि सुनीता नारायण की कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार कच्छ का यह क्षेत्र अब पर्यावरण से ज्यादा छेड़खानी नहीं सह सकता और इसका पूर्ण मूल्यांकन जरूरी है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के संदर्भ में स्थानीय आरटीआई कार्यकर्ता संजय बापड़ कहते हैं कि अगर किसी कंपनी के कारण प्रदूषण होता है तो यह बहुत ही गंभीर समस्या है और किसी भी कीमत पर कंपनियों को प्रदूषण फैलाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। मगर दूसरी तरफ संजय यह भी कहते हैं कि उनकी जानकारी में है कि इस कंपनी में 370 के करीब लोग काम करते हैं, तो उनकी रोजी—रोटी की भी समस्या खड़ी हो सकती है। इसलिए कंपनी पर जुर्माना लगाकर मानकों के अनुसार एनवायरमेंट क्लीयरिंग दे देनी चाहिए। किसी भी कीमत पर प्रकृति को नुकसान नहीं होना चाहिए, मगर लोग भी बेरोजगार न हों।

स संबंध में गुजरात पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की कचहरी से संपर्क करने पर नाम न छापने की शर्त पर एक जिम्मेदार अधिकारी कहते हैं, यह लीगल मैटर है और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की तरफ से उनकी राज्य स्थित कचहरी में आदेश जाएगा और उनके ऊपर कचहरी के आदेश के अनुसार कार्यवाही की जायेगी। एनवायरमेंट क्लीयरिंग पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत आता है, इसलिए सीधे तौर पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को कोई कार्यवाही नहीं कर सकता। इन्वायरमेंट क्लीयरिंग भी वह नहीं देता। हालांकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के अनुसार गुजरात पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने उस कंपनी को सारे उत्पादन बंद करने की सूचना दे दी है। आगे की कार्यवाही ऊपर की कचहरी के आदेश के अनुसार की जाएगी।

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