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जनज्वार विशेष

गुजरात के कच्छ में मैंग्रोव का जंगल नष्ट करने के मामले में NGT का कड़ा रुख, वन विभाग को मैंग्रोव फिर से लगाने का दिया कड़ा आदेश

Prema Negi
12 Dec 2019 12:02 PM IST
गुजरात के कच्छ में मैंग्रोव का जंगल नष्ट करने के मामले में NGT का कड़ा रुख, वन विभाग को मैंग्रोव फिर से लगाने का दिया कड़ा आदेश
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दीनदयाल पोर्ट (कांडला पोर्ट) और सरकारी जमीन पर नष्ट हुए मैंग्रोव मामले में NGT ने दी चेतावनी, जरूरत पड़ी तो आरोपियों के खिलाफ दर्ज की जाये एफआईआर, ऊंटों के चरने वाली जमीन पर से मैंग्रोव नष्ट किए जाने से कच्छ खराई ऊंट की प्रजाति को है खतरा

गुजरात के कच्छ से दत्तेश भावसार की रिपोर्ट

जनज्वार। कच्छ के खराई ऊंट दुनिया में विलुप्त होती प्रजाति के तौर पर गिने जाते हैं। यह ऊंट सिर्फ कच्छ में ही पाए जाते हैं। इस ऊंट के भोजन का मुख्य स्त्रोत मैंग्रोव के पौधे होते हैं, लेकिन कच्छ के जंगी गांव और छाडावा बेट के विस्तार में मंगरू नष्ट होने के कारण इस प्रजाति का अस्तित्व खतरे में आ चुका है।

ऊंटों की विलुप्त होती प्रजाति के कारण कच्छ ऊंट उछेर संगठन ने एनजीटी में केस दायर किया था कि मैग्रोव का नष्ट होना इस प्रजाति के लिए बहुत खतरनाक है। इसमें कच्छ ऊंट उछेर संगठन ने भारत सरकार, गुजरात सरकार, गुजरात स्टेट कोस्टल जन,गुजरात वन विभाग, कलेक्टर कच्छ, दीनदयाल पोर्ट ट्रस्ट गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ज्योति सॉल्ट इंड्रस्टी और श्रीराम सॉल्ट को पक्षकार बनाया गया था। यह केस 111/2018 ओरिजिनल नंबर से दर्ज किया गया था जिसका दिल्ली बेंच में 20/2019 नंबर था।

स केस की सुनवाई करते हुए 11 सितंबर को एनजीटी ने एक आदेश पारित किया था। इस आदेश के 1 माह के भीतर डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को इस पूरे मामले की तहकीकात करके जो भी जिम्मेदार हो उसके खिलाफ कार्यवाही करने का आदेश दिया था, लेकिन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट कक्ष ने इस संदर्भ में कोई भी कार्यवाही नहीं की। इसके बाद एनजीटी ने जांच टीम गठित कर अतिशीघ्र इस मामले में कार्यवाही करने का आदेश दिया, जिसके कारण 26 नवंबर को एनजीटी के आदेश अनुसार निरीक्षण होना था। मगर किसी कारणवश वह निरीक्षण 10 और 11 दिसंबर को हुआ, जिसमें जांच की टीम ने पाया कि बहुत ही बड़े पैमाने पर मैंगोव को नुकसान पहुंचाया गया है, अंदाजन 15 किलोमीटर लंबे विस्तार में मैंग्रोव को काट दिया गया है।

गौरतलब है कि नमक बनाने वाली कंपनियां नमक बनाने के लिए मैंग्रोव की ओर जाने वाला पानी भी बड़े बांध बनाकर रोक देती हैं, जिसके कारण मैंग्रोव खत्म हो जाता है। वहीं बड़ी-बड़ी मशीनें लगाकर अंदाजन 2 से 3 हजार हेक्टेयर जमीन से मैंग्रोव को नष्ट किए जाने का अंदेशा स्थानीय लोग जता रहे हैं। लेकिन 2 दिन चलने वाली जांच के बाद ही मैंग्रोव को कितने एरिया में नुकसान हुआ है वह पक्के तौर पर पता चल सकता है, जबकि जांच की टीम ने मैंग्रोव फिर से लगाने का आदेश गुजरात के वन विभाग को दे दिया है।

इस तरह नष्ट कर दिया गया है मैंग्रोव का जंगल

मैंग्रोव को 15 किलोमीटर क्षेत्रफल तक नष्ट करने के पीछे उपयोगिता नमक उत्पादन करने के लिए होती है, इसलिए नमक की खेती करने के लिए सारे मैंग्रोव नष्ट कर दिया गया। इसके लिए दसियों किलोमीटर एरिया को उजाड़ दिया गया है। मैंग्रोव को नष्ट करने से प्रकृति को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है और इस विस्तार में पलने वाले खराई ऊंट का अस्तित्व भी खतरे में आ गया है।

मालधारी संगठन के अनुसार 10 दिसंबर को जब एनजीटी की टीम निरीक्षण के लिए आई, तब उस निरीक्षण से संगठन को दूर रखा गया। इसका कारण दीनदयाल पोर्ट के अधिकारियों का यह इंटेंशन सामने आता है कि सिर्फ सरकारी जमीन पर नष्ट हुए मैंग्रोव दिखाकर जांच टीम की आंखों में धूल झोंकी जा सके। हालांकि उसके बाद मालधारी संगठनों ने हकीकत एनजीटी जांच टीम के सामने रखी और दूसरे दिन पूरी जांच शुरू की गई।

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जंगी गांव और उसके आसपास के विस्तार में जांच करने पर जांच की टीम ने पाया कि यहां बहुत बड़े पैमाने पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया गया है और इस विस्तार में बहुत बड़े पैमाने पर मैंग्रोव काटे गए हैं, जिसको फिर से लगाना पड़ेगा।

स पूरे मामले को लेकर दीनदयाल पोर्ट के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर ओमप्रकाश दादलानी से जब जनज्वार ने बात की तो उन्होंने फिलहाल जांच चालू है, कहकर कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने यह माना कि उनके पोर्ट के अधिकारी भी जांच की टीम के साथ हैं और वह सहयोग कर रहे हैं, जबकि जंगी गांव और छावाडा बेट के ऊपर बहुत ही बड़ा नुकसान हुआ है। लेकिन जांच की टीम को छावड़ा बेट से दूर रखा गया और उनके लिए नाव की व्यवस्था भी नहीं की गई। इसके कारण छावाडा बेट का निरीक्षण नहीं किया जा सका।

नजीटी टीम के साथ एसीएफ वन विभाग के शशिकांत ठक्कर, गुजरात पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के कनुभाई चौधरी, दीनदयाल पोर्ट के त्रिवेदी, इसरानी और चौहान साथ में थे, जबकि गुजरात स्टेट कोस्टल जन के निश्चय जोशी, डिप्टी कलेक्टर भचाऊ, तहसीलदार भचाऊ, डिस्ट्रिक इंस्पेक्टर लेंड रिकॉर्ड इत्यादि शामिल थे। इस पूरी प्रक्रिया में कच्छ ऊंट उछेर संगठन के भीखाभाई वागाभाई रबरी भी शामिल रहे और उनको हुए नुकसान की पूरी जानकारी जांच में आई टीम को दी गई।

स पूरे मामले को लेकर गुजरात वन विभाग के कच्छ जिले के एसीएफ विहाल से जनज्वार की टीम ने बात की और कच्छ के विस्तार ने मैंग्रोव की उपयोगिता के बारे में पूछा। एसीएफ विहाल के अनुसार मैंग्रोव तटीय विस्तार के लिए बहुत ही उपयोगी वनस्पति है, दरियाई तट को संरक्षित रखने के लिए और एनवायरमेंट में से कार्बन को कम करने के लिए बहुत ही उपयोगी वनस्पति मानी जाती है।

सीएफ विहाल के अनुसार उन्हें मैंग्रोव लगाने के लिए आदेश प्राप्त हो चुके हैं और निकट भविष्य में जिस विस्तार में मैंग्रोव नष्ट हुए हैं उसका मालिकाना हक जिसके पास होगा उसी से पैसे का सहयोग लेकर मैंग्रोव का प्लांटेशन होगा। गुजरात सरकार की जमीन होगी तो गुजरात सरकार से धन लेकर प्लांटेशन किया जाएगा, अगर वह जमीन दीनदयाल पोर्ट की है तो उनसे आर्थिक सहयोग लेकर उस जगह पर फिर से मैंग्रोव का प्लांटेशन किया जाएगा, क्योंकि यह विस्तार का मालिकाना हक अभी सुनिश्चित नहीं हुआ, इसलिए डिस्ट्रिक इंस्पेक्टर लैंड रिकॉर्ड को उस जगह का मालिकाना हक सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है। कुछ ही दिनों में डिस्ट्रिक इंस्पेक्टर लैंड रिकॉर्ड यह सुनिश्चित करेगा और जिसकी भी जमीन होगी उनसे आर्थिक सहयोग लेकर फिर से मैंग्रोव का प्लांटेशन किया जाएगा।

स पूरी कवायद में गुजरात पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के कनुभाई चौधरी भी शामिल रहे, लेकिन उनसे काफी कोशिश के बावजूद बात नहीं हो पायी।

गौरतलब है कि कच्छ के इस विस्तार में सुंदरबन के बाद भारत का सबसे बड़ा मैंग्रोव का जंगल है। यहां पर कुछ साल पहले अडानी समूह पर भी मैंग्रोव नष्ट करने के कारण 200 करोड़ रुपए का फाइन लगाया गया था, मगर एनजीटी के आदेश के बावजूद अडानी समूह से 200 करोड़ रुपया जुर्माना नहीं वसूला गया।

मैंग्रोव का जंगल नष्ट करने के बाद पूंजीपतियों के लिए सपाट की गयी जमीन

सामाजिक संगठन कहते हैं, अगर अडानी से 200 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूल​ लिया गया होता तो शायद आज दूसरे पूंजीपतियों की इतनी हिम्मत नहीं बढ़ती कि पर्यावरण को इतना बड़ा नुकसान पहुंचाते। 15 किलोमीटर विस्तार में फैले मैंग्रोव को नष्ट करते। शासन-प्रशासन की रहमदिली और ढील के कारण भी ऐसे गैरकानूनी रास्ते पूंजीपतियों द्वारा अख्तियार किये जा रहे हैं।

मैंग्रोव का जंगल नष्ट कर विस्तार में नमक की खेती बहुत ज्यादा होने के कारण दीनदयाल पोर्ट ने अपनी जमीन नमक बनाने के लिए कई कंपनियों को दी है। उन्हीं कंपनियों ने गैरकानूनी तरीके से अपनी जमीनों का विस्तार बढ़ाने के लिए मैंग्रोव को नष्ट किया है। इस विस्तार में जागृत मालधारी लोगों के होने के कारण यह मामला संज्ञान में आया है, किंतु दीनदयाल पोर्ट के हजारों किलोमीटर एरिया में मैंग्रोव को नष्ट किया गया है, वह अभी तक किसी के संज्ञान में नहीं आया है।

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