मां को घुमाने के लिए छोड़ी नौकरी, स्कूटर से घुमाया अबतक 48 हजार किलोमीटर
मैंने संकल्प किया कि मां को न सिर्फ नजदीकी तीर्थ बल्कि पूरे भारत की यात्रा कराउंगा। आखिर मेरी मां को भी अच्छा समय गुजारने का हक है, जिस तरह का त्यागपूर्ण जीवन उन्होंने व्यतीत किया है, उन्हें भी अधिकार है कि वे कुछ ऐसा करें, जिनकी उन्हें चाहत रही हो...
जनज्वार। 70 साल की बूढ़ी मां ने कहा मुझे हंपी घूमना है तो कॉरपोरेट टीम लीडर के बतौर काम कर रहे बेटे ने अपनी नौकरी का त्याग कर दिया। नौकरी छोड़कर कृष्ण कुमार मां को हंपी घुमाने के लिए निकल पड़े। अपनी बुजुर्ग माँ को वे किसी कार या फरारी से नहीं जाते हैं, बल्कि 20 साल पुराने बजाज चेतक स्कूटर पर दोनों मां—बेटे पूरा देश घूम रहे हैं। अब तक कृष्ण कुमार अपनी मां को लगभग पौने दो साल में 48,100 किलोमीटर की यात्रा करा चुके हैं। 16 जनवरी 2018 से अपनी मां को तमाम तीर्थों की यात्रा कृष्ण कुमार अपने बजाज चेतक स्कूटर से करा रहे हैं।
कृष्ण कुमार कहते हैं, 'बड़े संयुक्त परिवार में रही मेरी मां का समय सबेरे से रसोई पकाने, बर्तन धोने, कपड़े धोने समेत अन्य तमाम कामों में बीत जाता था। वह कभी बाहर नहीं निकली। 4 साल पहले पिता का स्वर्गवास हो गया तो तब मैं एक कॉरपोरेट टीम लीडर के बतौर नौकरी करता था। एक दिन बातों—बातों में मां से पूछा कि आपने कहां—कहां की यात्रा की है, तो मां ने बताया कि मैंने नजदीकी तीर्थ हंपी की यात्रा भी नहीं की है, जिसे सुनकर मैं परेशान हो गया। उस समय मैंने संकल्प किया कि मां को न सिर्फ नजदीकी तीर्थ बल्कि पूरे भारत की यात्रा कराउंगा। आखिर मेरी मां को भी अच्छा समय गुजारने का हक है, जिस तरह का त्यागपूर्ण जीवन उन्होंने व्यतीत किया है, उन्हें भी अधिकार है कि वे कुछ ऐसा करें, जिनकी उन्हें चाहत रही हो।'
वे आगे कहते हैं, 'मातृ सेवा संकल्प यात्रा की शुरुआत मैंने अपने 20 साल पुराने स्कूटर से शुरू की है। ये स्कूटर मेरे पिता ने मुझे दिया था। अब पिता नहीं हैं तो स्कूटर को मैं उनका प्रतिरूप मानकर चलता हूं, लगता है कि मैं, मां और पिता तीनों एक साथ यात्रा कर रहे हैं। इस स्कूटर के रहने से मुझे अहसास होता है कि मेरे पिता भी मेरे साथ हैं।'
आज जब बेटा—बेटी द्वारा संपत्ति—पैसे के लालच में मां—बाप का कत्ल कर दिये जाने, उन्हें घर में बंद करने समेत उन पर तमाम अत्याचार ढाने की खबरें मीडिया में छाई रहती हैं, वैसे में कृष्ण कुमार का मां के प्रति यह लगाव उम्मीद पैदा करता है कि अभी समाज में इंसानियत और प्यार जिंदा है और रिश्ते पूरी तरह मरे नहीं है। हालांकि ऐसी कलयुगी औलादों की देश में बहुतायत है है जो बूढ़े माता—पिता को दर–दर की ठोकरें खाने के लिये सड़कों पर छोड़ देते हैं। सड़क पर चलते—फिरते कई ऐसे बुजुर्ग मिल जाते हैं जो माता पिता होने की सजा भुगत रहे हैं।
आंकड़ों के मुताबिक हमारे देश में तकरीबन 8 करोड़ 10 लाख यानी 81 मिलियन बुजुर्ग हैं, जिसमें से 11 लाख सिर्फ दिल्ली में है। हमारे देश में बुजुर्गों की स्थिति बहुत खराब है, मात्र 40 प्रतिशत बुजुर्ग अपने बच्चों के साथ रहते हैं और इनके साथ भी बहुत बुरा बर्ताव होता है, मगर मीडिया में मात्र 6 में से 1 मामला सामने आ पाता है।
ऐसे में कृष्ण कुमार जैसे बेटे उम्मीद जगाते हैं। दक्षिणमूर्ति कृष्ण कुमार कर्नाटक के मैसूर के रहने वाले हैं। कृष्ण कुमार की मां चूड़ारत्ना ने संयुक्त परिवार के घर में चूल्हा—चौका, बर्तन समेत तमाम अन्य कामों में अपना 70 वर्ष का जीवन निकाल दिया। अब जब 4 साल पहले कृष्ण कुमार के पिता की मौत हुई तो उसके बाद उन्होंने बातों—बातों में मां से पूछा कि तुम कहां—कहां घूमी हो, मां के यह कहने पर कि मैंने तो नजदीक में स्थित बेल्लारी का हंपी मंदिर भी नहीं देखा है, वह व्यथित हो गये और उन्होंने ठाना कि अपनी मां को पूरा देश घुमाना है।
डी कृष्ण कुमार ने 16 जनवरी, 2018 में मातृ सेवा संकल्प यात्रा की शुरुआत की। अब तक वे अपनी मां को कन्याकुमारी, कश्मीर, महाराष्ट्र, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, बिहार समेत दर्जनों राज्यों और पड़ोसी देशों, नेपाल भूटान, म्यांमार की भी यात्रा स्कूटर पर करा चुके हैं।
मां—बेटे की यह प्यार और बुजुर्गों के सम्मान की इस कहानी को सबसे पहले नंदी फाउंडेशन के सीईओ मनोज कुमार ने अपने ट्विटर हैंडल पर साझा किया था, जिसके बाद सोशल मीडिया पर यह कहानी चर्चा का विषय बनी हुई है। लोग डी कृष्ण कुमार की तारीफों के पुल बांध रहे हैं।
अपनी यात्राओं के दौरान कृष्ण कुमार अपनी मां के साथ ठहरने के लिए किसी होटल या रैन बसेरों का सहारा नहीं लेते हैं, बल्कि मठ—मंदिरों में ठहरते हैं और यात्रा को आसान बनाने के लिए जरूरत भर का ही सामान साथ लेकर चलते हैं।
ये कहानी सोशल मीडिया पर उस वक्त वायरल हुई जब मशहूर उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने अपने ट्विटर हैंडल पर इसे यह लिखते हुए साझा किया कि 'ये एक मां की प्रेम की कहानी नहीं है, बल्कि देशप्रेम की कहानी है। शुक्रिया मनोज इसे साझा करने के लिए, अगर आप इनसे संपर्क साध सकें तो उनसे कहना कि मैं कृष्ण कुमार को केयूवी 100 कार देना चाहता हूं, ताकि उनकी अगली यात्रा कार में हो।'
समाज विज्ञानी कहते हैं कि एकल परिवार का बढ़ता चलन तथा परिवारों की बदलती जीवनशैली से बुजुर्गों के प्रति समान बहुत घटा है। अब न तो पहले जैसी उनकी देखभाल हो पाती है और न ही उन्हें वो सम्मान और देखभाल मिल पाती है जिसके वे हकदार हैं। आजादी के वक्त 1947 में जहां देश में लोगों की औसत उम्र महज 32 साल थी, अब 67-68 साल हो गयी है। लंबी उम्र के दौरान बुजुर्गों की परेशानी तब शुरू होती है, जब परिवार के लोग उन्हें बोझ मानने लगते हैं। द मेंटेनेंस एंड वेलफेयर आफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस एक्ट-2007 के प्रावधानों का पालन तथा इसका प्रचार-प्रसार किया जाये तो शायद बुजुर्गों की हालत में सुधार आये।