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- भारत—चीन तनाव पर पढ़िए...
भारतीय मीडिया में आप पहली बार दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव पर चीन के लोगों और मीडिया की राय पढ़ रहे हैं। हमारे लिए जानना ज्यादा जरूरी है कि क्या वहां वाले भी हमारे जैसा सोच रहे हैं या उनकी सोच हमसे कुछ अलग और भड़काऊ है...
बीजिंग से अनिल आज़ाद पांडेय की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
भारत और चीन के बीच भूटान सीमा पर जारी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। भारतीय मीडिया और जनमानस में चीन के खिलाफ जबरस्त गुस्सा है। कुछ लोग तो चीन से युद्ध करने की बात भी कर रहे हैं। रक्षा मंत्री का कार्यभार संभाल रहे अरुण जेटली ने चीन को धमकी देते हुए कह डाला कि भारत अब 1962 वाला नहीं है।
इस बयान पर चीन ने भारत को करारा जवाब देते हुए कह दिया कि चीन भी अब 1962 वाला नहीं है। यानी चीन पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली हो चुका है। बयानबाजी और विवाद के बीच यह जानना जरूरी हो जाता है कि चीन में आखिर हो क्या रहा है।
भारतीय मीडिया की तरह इन दिनों चीनी अखबार भी मैदान में कूद पड़े हैं। वहीं चैनलों पर भी सीमा विवाद की चर्चा हो रही है। एक ओर दंगल फिल्म की सफलता पर बात तो दूसरी तरफ राजनीतिक रूप से संवेदनशील मसले पर बहस।
सीधे तौर पर सीमा विवाद के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। ग्लोबल टाइम्स, पीपुल्स डेली और चायना डेली जैसे समाचार पत्र भारत के साथ विवाद पर लेख लिख रहे हैं। पीपुल्स डेली और ग्लोबल टाइम्स, जो सरकार के मुखपत्र माने जाते हैं, विवाद पर बेहद तीखे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
ग्लोबल टाइम्स लिखता है, 'भारतीय पक्ष ने कई बार अपने बयान बदले हैं। पहले कहा कि चीनी सेना ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की है। उसके बाद बयान दिया कि हमारे इलाके में चीनी सैनिक नहीं घुसे। अब नया बहाना बनाया जा रहा कि भारत भूटान को उसके भू-भाग को बचाने में मदद दे रहा है। भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने बेशर्मी से पेश आ रहा है।'
वहीं अन्य अखबारों की टिप्पणी है कि भारत का मुख्य मकसद, चीन के डोक ला( चीन इसे तोंगलांग कहता है) क्षेत्र को विवादित क्षेत्र बनाना है, और वहां चीन के सड़क निर्माण कार्य में बाधा पहुंचाना है।
इतना ही नहीं अखबारों में यह भी कहा जा रहा है कि शीत युद्ध से आसक्त भारत को संदेह है कि चीन सिलीगुड़़ी क्षेत्र को अलग-थलग करने के लिए वहां सड़क बना रहा है।
चीनी अखबारों में भारतीय मीडिया के हवाले से कहा गया है कि भारत भूटान को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता है। आरोप भी लगाया कि भारत सीधे तौर पर 21वीं सदी की सभ्यता का अपमान कर रहा है।
कहा जा रहा है कि भारत भूटान का उत्पीड़न करते हुए नियंत्रण करने में लगा है। यही कारण है कि भूटान अपने पड़ोसी चीन और संयुक्त राष्ट्र के किसी अन्य स्थायी सदस्य के साथ राजनयिक संबंध स्थापित नहीं कर पाया है, जबकि भारत ने भूटान के राष्ट्रीय रक्षा हितों को नुकसान पहुंचाया है।
जैसा कि हम जानते हैं कि चीन में मीडिया पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में है, ऐसे में समाचार पत्रों या टीवी चैनलों में जो भी आ रहा है, वह सीधे तौर पर सरकार का अधिकृत रुख है।
पिछले सात वर्षों से रहते हुए मैंने भारत के खिलाफ़ चीन में कभी इतनी तीखी प्रतिक्रिया नहीं देखी। चीनी मीडिया में काम करने वाले एक व्यक्ति से जब मैंने इस बारे में जानना चाहा तो उसने कहा कि इस बार चीन सरकार का रवैया सख्त है। भारत ने कुछ गलती की है, उसका इशारा भारत के उग्र तेवरों की ओर था। शायद चीन के आक्रामक रवैये की वजह भारत का अमेरिका के और करीब आना और वन बेल्ट वन रोड जैसी चीन की महत्वाकांक्षी योजना का विरोध करना भी हो सकती है।
इस मुद्दे पर लेखक ने चीनी लोगों से बात करने की कोशिश की, कुछ लोगों ने कहा कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सीमा पर क्या हो रहा है। लेकिन अन्य लोग ऐसे भी हैं, जो मीडिया में चल रही ख़बरों पर ध्यान दे रहे हैं। एक युवक ने बताया कि चीन और भारत के बीच सीमा मुद्दा कोई नया नहीं है। ऐसा अक्सर होता रहता है, लेकिन इस बार भूटान बीच में आ गया है।
वैसे आम तौर पर चीनी लोग जापान और अमेरिका को अपना दुश्मन मानते हैं। उनकी नजर में भारत एक पड़ोसी देश है, साथ ही कहते हैं कि भारत इतना विकसित और ताकतवर भी नहीं है कि वह चीन के लिए कोई खतरा बने।
चीनी लोग समझते हैं कि चीन 1962 से बहुत आगे निकल चुका है। कहने का मतलब यह है कि 1962 में भारत को हार का सामना करना पड़ा था, वर्तमान में चीन पहले से बहुत अधिक ताकतवर हो चुका है। जो हर क्षेत्र में भारत से आगे है।
अरुण जेटली के बयान पर चीन में कड़ी प्रतिक्रिया देखी जा रही है। चीनी लोगों को लगता है कि चीन जिस तेज गति से बढ़ रहा है, वह अपने किसी भी दुश्मन को हराने की क्षमता रखता है। ऐसे में भारत को बेवजह विवाद में नहीं पड़ना चाहिए।
दोनों देशों की मीडिया और लोगों द्वारा जो भी प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही हो, पर वर्तमान स्थिति में युद्ध संभव नहीं लगता। हां विवाद का नुकसान व्यापार और लोगों की आवाजाही आदि पर पड़ने की आशंका है।
(अनिल आजाद पांडेय रेडियो चाइना में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार हैं।)