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घरों के अन्दर भी हम प्रदूषण की चपेट में ही रहते हैं, बल्कि कई बार तो घरों के अन्दर का प्रदूषण बाहर से अधिक खतरनाक होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि जितना अधिक आराम और सुविधा हम खोजते हैं, उतना अधिक प्रदूषण से घिरते जाते हैं....
महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक
जनज्वार। कुछ सप्ताह पहले अमेरिका के वाशिंगटन में अमेरिकन एसोसिएशन फॉर एडवांसमेंट इन साइंसेज की वार्षिक बैठक में घरों के अंदर के प्रदूषण पर चर्चा की गयी और इसे एक गंभीर समस्या माना गया। यह समस्या तो गंभीर है, पर इसकी हमेशा से उपेक्षा की जाती रही है।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलोराडो बोल्डर के वैज्ञानिकों के अनुसार सामान्य घर के कामकाज जैसे खाना पकाना, साफ़-सफाई और दूसरे कामों से घरों के अन्दर पार्टिकुलेट मैटर और वोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउंड्स (वीओसी) उत्पन्न होते हैं। पार्टिकुलेट मैटर के बारे में तो हम लगातार सुनते रहते हैं, पर वीओसी ऐसे रसायनों का समूह है जो केवल घातक ही नहीं है बल्कि कैंसरजनक भी है।
वीओसी का स्त्रोत घरों के अन्दर शैम्पू, परफ्यूम, रसोई और सफाई वाले घोल हैं, जबकि पार्टिकुलेट मैटर खाना बनाने और सफाई के दौरान उत्पन्न होते हैं। विश्व स्तर पर वाहनों से गैसों और पार्टिकुलेट मैटर के उत्सर्जन पर बहुत चर्चा की जाती है, पर घरों के अन्दर के इनके स्त्रोतों पर हम चुप्पी साध लेते हैं।
इस अध्ययन की अगुवाई मारिया वन्स ने की थी और इस दल ने वर्ष 2018 में कुछ घरों के भीतर प्रदूषण के स्तर का वास्तविक अध्ययन किया था। घरों के अन्दर प्रदूषण का स्तर इन लोगों के अनुमान से अधिक था और प्रदूषण का स्तर पता करने वाले सेंसर्स को कुछ दिनों में ही फिर से कैलिबरेट करना पड़ता था।
मारिया वन्स के अनुसार संभव है कि वीओसी का दुनिया में सबसे बड़ा स्त्रोत घरों के अन्दर की गतिविधियाँ और घरों के अन्दर इस्तेमाल किये जाने वाले रसायन हों। घरों के अन्दर रसायनों का उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है और इस कारण घरों के अन्दर फॉर्मलडीहाइड, बेंजीन, अल्कोहल और कीटोन जैसे रसायनों की सांद्रता बढ़ती जा रही है. ये सभी रसायन ज्ञात कैंसरजनक हैं।
इससे वार्षिक बैठक में डयूक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत शोधपत्र में बताया गया कि घरों के अन्दर का प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। सोफा सेट, विनाइल फ्लोरिंग और फ्लेम रीटारडेट से खतरनाक रसायनों का उत्सर्जन होता रहता है। यह घर के अन्दर के वातावरण, जिसे वैज्ञानिक एसोस्फेयर कहते हैं, को प्रभावित और प्रदूषित करता है। इन रसायनों के प्रदूषण के कारण श्वसन, चर्म और प्रजनन से सम्बंधित विकार उत्पन्न होते हैं। विनाइल फ्लोरिंग वाले घरों में रहने वाले बच्चों के मूत्र में बेंजाइल ब्यूटाइल थैलेट की सांद्रता सामान्य घरों के बच्चों की तुलना में 15 गुना अधिक पाया गया।
घरों के अन्दर इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, फ्लोरिंग और निर्माण सामग्री से लगातार सेमी-वोलाटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स का उत्सर्जन होता रहता है और यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अध्ययन दल की प्रमुख हीथर स्तैप्लेटन के अनुसार इन सभी के अत्यधिक उपयोग करने वाले घरों के बच्चों के रक्त और मूत्र के नमूनों में सेमी-वोलाटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स की सांद्रता कई गुना अधिक होती है।
फोम में पोलीब्रोमिनेटेड डाईफिनाइल ईथर का उपयोग किया जाता है, इस कारण इनका अधिक उपयोग करने वाले घरों के बच्चों के रक्त में इसकी सांद्रता 6-गुना अधिक हो जाती है। इसके प्रभाव से मोटापा, मस्तिष्क के विकास और एंडोक्राइन तथा थाइरोइड कैंसर हो सकता है।
इतना तो स्पष्ट है कि घरों के अन्दर भी हम प्रदूषण की चपेट में ही रहते हैं, बल्कि कई बार तो घरों के अन्दर का प्रदूषण बाहर से अधिक खतरनाक होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि जितना अधिक आराम और सुविधा हम खोजते हैं, उतना अधिक प्रदूषण से घिरते जाते हैं।