एसएससी छात्र मोदी सरकार से लगा रहे थे न्याय की गुहार, मंत्रीगण गा रहे थे होली के फाग
पूछ रहे हैं ये हजारों एसएससी स्कैम पीड़ित छात्र, मोदी जी क्या यही है आपका रामराज्य...
सियाराम मीणा गांगडया
देश के मध्यमवर्ग, किसान वर्ग और मजदूर वर्ग के बेरोजगार युवाओं लिए एसएससी क्या मायने रखता है बताने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन शायद बंद एसी कमरों बैठनेवाले मंत्री और नौकरशाह बहरे हो चुके हैं।
पिछले कई दिन से दिल्ली में धरने पर बैठे सैकड़ों परीक्षार्थी होली के दिन भी देश की भारी बहुमत वाली सरकार से गुहार लगाते रहे पर गृहमंत्री होली पर ढोल बजाने में मस्त दिखे और बाकी मंत्री फाग गा रहे थे। शायद इससे बड़ा मजाक छात्रों के साथ लोकतंत्र में कभी हुआ हो।
जनता सड़कों पर अपने भविष्य को बचाने के लिए त्यौहार पर भी प्रदर्शन करे और मंत्री अपने सुरक्षित सरकारी बंगलों में रंग उड़ाएं। एसएससी का पर्चा सोशल मीडिया पर तैर रहा था, दुनिया उसे देख रही थी मगर अफसर बाबू सबूत पूछ रहे हैं।
आजकल किसी भी परीक्षा का देश पर्चा लीक होना जैसे एक मजाक हो गया है। चाय की दुकानों पर हजारों ऐसे लोग मिल जाएंगे जो हर परीक्षा का पर्चा लीक करने का दावा करते हैं और हर साल खूब रकम बनाते हैं। इस धंधे में सालों से अगर बस झूठ ही होता तो अब तक ठप्प हो चुका होता, मगर कुछ तो है कि खुलकर खेल न करने के बावजूद रैकेट्स के वारे न्यारे हैं।
अगर एसएससी वाले सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं तो आदेश करने में एसएससी वालों का क्या जाता है? छात्रों के शोर मचाकर गले फट गए हैं अब कुछ तो रहम कीजिए। कल टीवी पर प्रदर्शनकारियों में से एक लड़का मीडिया से बात करते हुए फफक पड़ा। किसी तरह अपना वाक्य पूरा कर सका कि 'सर हम यहां पर पड़े हैं लेकिन हमारी कोई सुनने वाला नहीं है, बताइए हम क्या करें...'
जब किसी सरकार की निर्दयता निजी त्रासदी की वजह बनती है, तो कोई ऐसे ही फफक कर रोता है पहले यूपीएससी के छात्रों का आंदोलन, फिर नॉन-फैलोशिप आंदोलन में डंडों का बरसना, जेएनयू के छात्र नजीब का लापता हो जाना, एचसीयू में रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या होना, शिक्षण संस्थाओं पर लगातार वैचारिक हमले करना, फिर शिक्षा के क्षेत्र में बजट कम करना और अब एसएससी परीक्षार्थियों को अनसुना करना करना एक तरह सत्ता की तानाशाही का स्पष्ट रूप सामने आ रहा है।
प्राइवेट सेक्टर में नौकरियां नोटबंदी के चलते कम गईं, सरकारी पदों पर भर्तियों की हालत देश को पहले से पता है। इस बार तो यूपीएससी तक की रिक्तियों में भारी कमी से दिल्ली के मुखर्जीनगर से लेकर इलाहाबाद-पटना- आसाम तक खलबली मची है।
भाजपा शासित प्रदेशों में लगातार सरकारी नौकरियों में लगातार स्कैम पर स्कैम सामने आ रहे हैं। एमपी में व्यापमं घोटाला इसका जीता जागता मामला है। राजस्थान में भी लगातार इसी तरह के हालात सामने आ रहे हैं। यूपी की योगी सरकार हो या पहले अखिलेश सरकार हो या उससे पहले की माया सरकार हर किसी के राज में यूपीपीसीएस की बदहाली आम रही है।
चार-चार साल पुराने एग्जाम्स के रिजल्ट फंसे पड़े हैं। गरीब बाप का बेटा शहर में आधा दर्जन दोस्तों के साथ कमरा शेयर करके कच्चा-पक्का भात पेट में डालकर सरकारी नौकरियों की तैयारी किए जा रहा है। बेचारे को खबर ही नहीं कि चार साल पहले जो परीक्षा दी थी उसमें वो कामयाब रहा या नाकामयाब रहा।
उधर बाप पेट काटकर पैसे भेज रहा है कि बेटे को कहीं सरकारी नौकरी मिल जाए तो किसी तरह उसका भविष्य बन जाए। लेकिन यह हौसला इतना टूटने टूटने लगा है कि चपरासी की नौकरी के लिए पीएचडी धारक आ रहे हैं।
पहले हर साल करोड़ों नौकरी देने का सपना बेचना और फिर यह कहना कि यह तो जुमला था, क्या यही लोकतंत्र है। लगातार बैंकों में नौकरियां घटने लगी हैं। लाखों रुपए लगाकर बीटेक, एमटेक, एमबीए करने वाले छात्र निजी कम्पनियों में पांच से आठ हजार की नौकरी कर रहे हैं। हजारों की संख्या में पीएच.डी. करने वाले छात्र बेरोजगार घूम रहे हैं।
हमारे सांसद और विधायक इस बात पर ही बहस कर रहे हैं कि देश में इमारतों का रंग कौनसा होगा?, किस रेलवे स्टेशन का नाम किस के नाम पर रखना। दूसरी तरफ हमारी न्यायपालिका भी आज संकट में आ गई है।
सुप्रीम कोर्ट के जज मीडिया के सामने आकर कह रहे हैं कि देश का लोकतंत्र खतरे में है। वहीं देश के बैंकों को करोड़ों रुपए का चूना लगाकर कुछ लोग सत्ता की शह से फरार हो जाते हैं और प्रधानसेवक और उनके वजीर छात्रों को पकौड़े बेचने की सलाह देते हैं।
इस स्थिति में देश के मजदूर, किसान, बेरोजगार, छात्र क्या करे? उसके सामने तो कोई राह ही नहीं है। क्या यही रामराज्य है? क्या यही अच्छे दिन हैं?
आंदोलनकारियों की मुख्य मांग
1- SSC की पूरी जांच हो जिसका दायरा अब सिर्फ CGL नहीं बल्कि MTS, CHSL, CPO आदि सारी परीक्षाएं हों।
2- जांच CBI के द्वारा Supreme Court के जज की निगरानी में हो।
3- नॉर्मलाइजेशन की प्रक्रिया को सभी परिक्षाओं में लागू किया जाए।
4-२०% ज्यादा उम्मीदवारों को अंतिम परिणाम में शामिल किया जाए जिससे मेरिट वाले छात्र अगर सेवा नहीं लेते तो वह सेवा पीछे वालो को दी जाए ताकि सीट खाली न जाए।
5-पूरी जांच एक समय सीमा में तय की जाए और वह समय सीमा छात्रों को भी बताई जाए।
6- हर परीक्षा के लिए जवाबदेही तय की जाए।
7- परीक्षा की प्रक्रिया को छह महीने में पूराकिया जाए, जैसा कि सरकार की तरफ से नोटिफिकेशन है।.
(सियाराम मीणा गांगडया गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय में पी.एच.डी. स्कॉलर हैं।)