सप्ताह की कविता' में आज पंजाबी कवि लाल सिंह 'दिल' की कविताएं
अंतिम आदमी की ताकत को भारतीय कविता में केदारनाथ अग्रवाल और विजेंद्र के यहां अभिव्यक्त होते देखा जा सकता है। पर उसके जैसे गहरे और बहुआयामी रंग पंजाबी कवि लाल सिंह दिल की कविताओं में दिखते हैं उसकी मिसाल और नहीं मिलती। अंतिम आदमी के साथ अंतिम औरत की पीडा और ताकत भी लाल के यहां जगह पाती दिखती है, 'तवे की ओट में छिप कर चूल्हे की आग की तरह ...रोती' और 'थिगलियों से हुस्न निखारती' अंतिम औरत। द्रविड और आदिवासी समाज के पक्ष को सामने रखती लाल की कविता सहज ही आर्यों, मुगलों, अंग्रेजों और मैकाले की भारतीय संतानों की सनातनी सत्ताकामी क्रूरता को उजागर करती है। अंतिम आदमी की आजादी की चाहत को लाल से बेहतर कोई अभिव्यक्त नहीं कर पाता। इसलिए भी कि लाल खुद उसी अंतिम दलित जमात से हैं।
एक साथ आदिम युग से लेकर आज के वैज्ञानिक युग और तथाकथित लोकतंत्र तक के तमाम छोरों को एक साथ जोडती है लाल की कविता। इसीलिए वे अगर आर्यों का मुकाबला करने वाले 'द्रविड भीलों'को 'सूरज से भी उजला' बताते हैं वहीं अंधेरों में दम ना तोडने वाले 'रेडियम का गीत' भी गाते हैं। उर्जा के पारंपरिक प्रतीकों के मुकाबले लाल नये वैज्ञानिक प्रतीकों को खडा करते चलते हैं। इसीलिए उनकी कविता में सूर्य के मुकाबले अंधेरों में घिरकर भी लडता, चमकता रेडियम तरजीह पाता है और 'अंधेरा राकेट की चाल चलता है'। अंग्रेजी तौर-तरीकों पर चले आ रहे कानूनों को लाल ऐसी चिता के समान पाते हैं जिनमें सरमायेदार तो एक भी नहीं जलता पर जटटों, सैणियों और झीवरों के लिए यह चिता कभी ठंडी भी नहीं पडती। परंपरा और संस्कृति को लेकर झूठा दंभ रखने वालों पर लाल जैसी चोटें करते हैं -'खजानों के सांप/तेरे गीत गाते हैं/ सोने की चिडिया कहते हैं'।
उसकी दूसरी मिसाल पंजाबी के ही दूसरे कवि पाश के यहां मिलती है, जो जनता के हितों की दलाली करने वालों के भारत से अपना नाम काट देने की बात करते हैं। देखें तो दलित विमर्श और स्त्री विमर्श अपने सर्वाधिक सशक्त रूप में लाल की कविता में आकार पाता है। लाल के यहां एक कविता है 'मां आयशा' शीर्षक से। जिसमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तुलना पैगम्बर मुहम्मद से की गयी है और बताया गया है कि जहां स्त्री को जलील करने वाले आरोपों के चलते राम ने सीता को घर से और जीवन से निकाल दिया था, वहीं ऐसे ही आरोपों के बावजूद पैगम्बर ने किसी की एक न सुनी और अंत तक आयशा का साथ दिया। यहां तक कि आयशा की गोद में ही दम तोडा। देखा जाए तो ऐसी मार्मिक चुनौतीपूर्ण तुलना करने वाला 'दिल' लाल सिंह के पास ही है और यही उनकी पहचान है। आइए पढ़ते हैं लाल सिंह दिल की कविताएं - कुमार मुकुल
मातृभूमि
प्यार का भी कोई कारण होता है?
महक की कोई जड़ होती है?
सच का हो न हो मकसद कोई
झूठ कभी बेमकसद नहीं होता!
तुम्हारे नीले पहाड़ों के लिए नहीं
न नीले पानियों के लिए
यदि ये बूढ़ी माँ के बालों की तरह
सफेद-रंग भी होते
तब भी मैं तुझे प्यार करता
न होते तब भी
मैं तुझे प्यार करता
ये दौलतों के खजाने मेरे लिए तो नहीं
चाहे नहीं
प्यार का कोई कारण नहीं होता
झूठ कभी बेमकसद नहीं होता
खजानों के साँप
तेरे गीत गाते हैं
सोने की चिड़िया कहते हैं।
2. समाजवाद
समाजवाद ने
क्या खड़ा किया?
गर व्यक्तिवाद
गिराया ही नहीं?
मछली पक भी जाए
औ’ जिन्दा भी रहे?
हमारे लिए
हमारे लिए
पेड़ों पर फल नहीं लगते
हमारे लिए
फूल नहीं खिलते
हमारे लिए
बहारें नहीं आतीं
हमारे लिए
इंकलाब नहीं आते
जात
मुझे प्यार करने वाली
पराई जात कुड़िये
हमारे सगे मुर्दे भी
एक जगह नहीं जलाते.
(पंजाबी से अनुवाद - सत्यपाल सहगल)