मोदी सरकार के पूर्व जस्टिस गौर को पीएमएलए चेयरमैन नियुक्त करने पर विवाद
वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व वित्त मंत्री रहे स्वर्गीय अरुण जेटली ने कहा था कि रिटायरमेंट के फौरन बाद जजों को किसी नए सरकारी पद पर नियुक्त करना न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए ख़तरनाक हो सकता है, मगर अब उन्हीं की पार्टी धड़ाधड़ विवादास्पद नियुक्तियां करने में व्यस्त...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
2012 में राज्यसभा में नेता विपक्ष अरुण जेटली ने कहा था कि रिटायरमेंट के फौरन बाद जजों को किसी नए सरकारी पद पर नियुक्त करना न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए ख़तरनाक हो सकता है। सेवानिवृत्ति से पहले लिए गए फैसले सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले पद की चाहत से प्रभावित होते हैं। मेरी सलाह है कि सेवानिवृत्ति के बाद दो सालों (नियुक्ति से पहले) का अंतराल होना चाहिए अन्यथा सरकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अदालतों को प्रभावित कर सकती है और एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और ईमानदार न्यायपालिका कभी भी वास्तविकता नहीं बन पाएगी।'
मगर 2014 यानी मोदी सरकार-1 से ही केंद्र की भाजपा सरकार जेटली की सलाह नहीं मान रही है और धड़ाधड़ विवादास्पद नियुक्तियां की जा रही हैं। अब नई नियुक्ति पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम की गिरफ्तारी का मार्ग प्रशस्त करने वाले उच्च न्यायालय से रिटायर न्यायाधीश सुनील गौर की गई है और उन्हें प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग एक्ट अपील अधिकरण (एटीपीएमएलए) का अध्यक्ष बना दिया गया है ।
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सुनील गौर इस पद पर 23 सितंबर को पदभार ग्रहण करेंगे। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस सुनील गौर ने अपने रिटायर होने से पहले ही पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की गिरफ्तारी का रास्ता साफ कर दिया था, जिसके बाद उन्हें प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग एक्ट अपील अधिकरण का चेयरमैन नियुक्त किया गया है।
जस्टिस गौर ने अपने अंतिम आदेश में चिदंबरम की आईएनएक्स मीडिया मामले में अंतरिम राहत की याचिका खारिज कर दी थी। पूर्व जस्टिस गौर ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर चल रहे नेशनल हेराल्ड मामले में भी जांच के आदेश दिए थे। गौर को अप्रैल 2008 में हाईकोर्ट का जस्टिस नियुक्त किया गया था। 11 अप्रैल 2012 को उनकी नियुक्ति स्थाई की गई थी। ये दोनों नियुक्तियां कांग्रेस के यूपीए शासनकाल में हुई थी। जानकार कहते हैं कि इनके पिता कांग्रेस शासन में हरियाणा के एडवोकेट जनरल रहे हैं।
पिछले साल 2018 में जस्टिस गौर ने कांग्रेस के मुख्यपत्र नेशनल हेराल्ड के पब्लिशर एसोसिएटिड जर्नल्स लिमिटेग को आईटीओ स्थित दफ्तर खाली करने का आदेश दिया था। जस्टिस गौर के इस फैसले को हाई कोर्ट के डिविशन बेंच ने भी सही ठहराया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अप्रैल में हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। अभी भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। जस्टिस गौर हाई प्रोफाइल मामलों की सुनवाई से जुड़े रहे हैं। विवादित मीट निर्यातक मोइन कुरैशी मामले की सुनवाई भी जस्टिस गौर ही कर रहे थे।
पी चिदंबरम मामले की सुनवाई करने में जस्टिस गौर मुख्य व्यक्ति थे, जिसमें उन्होंने जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट से रिटायर होने के बाद गौर प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग एक्ट अपील अधिकरण के चेयरमैन की भूमिका निभाएंगे।
दिल्ली में अपनी कानूनी सेवा के दौरान जस्टिस गौर ने शिवानी भटनागर मर्डर केस मामले में सुनवाई की थी। जस्टिस गौर ने दिल्ली मेडिएशन सेंटर की अध्यक्षता भी की है और तीस हज़ारी सहित कड़कड़डूमा कोर्ट में भी अपनी सेवाएं दी हैं।
11 अप्रैल 2008 को उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट में पदोन्नत कर दिया गया। पिछले महीने गौर ने रिलायंस इंटस्ट्रीज लिमिटेड के मामले में भी सुनवाई की थी।
इस साल फरवरी में मोदी सरकार ने रिटायर जजों की ट्रिब्यूनल में नियुक्ति करने की कूलिंग ऑफ पीरियड की समयसीमा में बदलाव किया था। सरकार ने संसद में इस बारे में जानकारी भी दी थी।