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समाज

यहां पहले 10 किलोमीटर कंधे पर लादते हैं मरीज, फिर मिलता है वाहन

Janjwar Team
3 Dec 2017 12:28 PM GMT
यहां पहले 10 किलोमीटर कंधे पर लादते हैं मरीज, फिर मिलता है वाहन
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यह है उत्तराखण्ड के विकास की हकीकत जहां आज भी सड़क मार्ग से दसियों किलोमीटर दूर हैं गांव, सड़क मार्ग तक पहुंचने में ही कई बार दम तोड़ देते हैं मरीज, डॉक्टर तो दूर सड़क तक पहुंचना भी गर्भवती महिलाओं के लिए चुनौतियों का पहाड़

संजय रावत की ग्राउंड रिपोर्ट

नैनीताल, ओखलकांडा। पृथक राज्य बनने के 17 वर्ष बाद भी उत्तराखंड के गांव अब तक मोटर मार्ग से नहीं जुड़ पाए हैं। आती—जाती सरकारें विकास के जितने गीत गुनगुनाती रहें, पर हकीकत यही है कि राज्य की ग्रामीण जनता अब भी वैसी तंगहाल है, जैसी उत्तर प्रदेश के समय थी।

जनपद नैनीताल के ओखलकांडा ब्लॉक में 242 परिवारों वाला महतोली गांव आज भी मोटरमार्ग से न जुड़ पाने के कारण ढेरों सुविधाओं से महरूम है, जिसमें स्वास्थ्य और कृषि मुख्य है। आज भी यहां किसी के बीमार पड़ने या गर्भवती महिला के प्रसव की सूचना पर लोग चिंतित हो जाते हैं कि 10 किलोमीटर दूर मोटरमार्ग तक कैसे ले जाया जाएगा। किसी जतन से ले भी गए तो समय रहते उसे बचा भी पायंगे की नहीं यह चिंता भी बनी रहती है।

ये हाल तो है भीमताल विकास भवन करीबी तहसील धारी का। तो सुदूर गांवों के विकास का अंदाजा लगाना सहज हो जाएगा। खैर, सड़क प्रस्तावित हुई भी तो एक किलोमीटर की, और वो भी तुच्छ स्वार्थों की भेंट चढ़ गई।

गांव के समाजसेवी नरेश चंद्र बताते हैं कि सैकड़ों बार पंचायत के माध्यम से शासन-प्रशासन को गुहार लगा चुके है, पर कोई सुनना समझना ही नहीं चाहता है इस गांव की पीड़ा को। गांव वाले अपने कृषि उत्पादों को मोटरमार्ग तक नहीं ले जा पाते, जिसके चलते उन्हें कोई मुनाफा नहीं मिल पाता। कोई बीमार हो जाये तो पूरा गांव इस चिंता में दहल जाता है कि अब डॉक्टर तो दूर, मोटरमार्ग तक भी कैसे ले जाएंगे। सबसे बड़ी समस्या तब हो जाती है जब किसी महिला को बच्चा होने वाला होता है।

इस बाबत जब हमने जनप्रतिनिधियों से बात की तो सब समस्या से सहमत तो थे, पर बयान जुदा—जुदा थे।

यह गांव विधानसभा क्षेत्र भीमताल में पड़ता है। यहां के विधायक राम सिंह कैड़ा का कहना था कि हम पैसा देने को तैयार हैं। प्रस्ताव शासन को भेजा है, पर वन विभाग की आपत्ति के मारे विचारणीय है।

यहां की ग्राम प्रधान दीपा देवी हैं, लेकिन उनके पति उनके प्रतिनिधि हैं। उन्होंने ही फोन उठाया और समस्या पर उनका कहना था कि समस्या तो है ही। एक सड़क पास भी हो गई है। विधायक जी ने एक लाख रुपया एडवांस दे भी दिया है, पर वन पंचायत से सहमति नहीं बन पा रही है। हमारे प्रस्ताव पर सारा गांव सहमत है, पर वन पंचायत में सहमति जाने क्यों नहीं बन पाती।

यहां के सरपंच हैं दीपक नादगली। सरपंच का कहना था कि कोई सरकारी सर्वे नहीं हुआ है। विधायक निधि से सड़क कितनी बननी है ये भी नही पता। वन पंचायत में लोगों की सहमति इसलिए नहीं बन पाती कि पेड़ों का अंधाधुंध होना होता है। सबसे पहले वो ही नामजद होते हैं जिनकी सहमति होती है। सरकार चाहती तो पीडब्ल्यूडी से सर्वे कराती। सारी सहमतियां सरकारी दस्तावेजों में होतीं, फिर कहाँ काम रुकना था, लेकिन ये सब मंशा की बातें होती है।

अब ऐसी विवादास्पद परिस्थितियों में महतोली के ग्रामीणों वासियों कब तक इतना दूभर और कठिन जीवन जीना पड़ेगा, कहना मुश्किल है।

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