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आंदोलन

पुलिस का हाथ ठाकुरों के साथ है सहारनपुर के बवाल में

Janjwar Team
7 Nov 2017 11:04 AM GMT
पुलिस का हाथ ठाकुरों के साथ है सहारनपुर के बवाल में
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पुलिस ने दलितों के विरुद्ध ठाकुरों की तरफ से 5 मुक़दमे दर्ज किये, जिनमें 9 दलितों को नामज़द किया गया, परन्तु दलितों की तरफ से ठाकुरों के विरूद्ध केवल एक मुकदमा दर्ज किया गया, जिसमे 9 ठाकुर नामज़द तथा काफी अन्य को आरोपी बनाया गया था...

एसआर दारापुरी, पूर्व आईपीएस

सभी भलीभांति अवगत हैं कि 5 मई, 2017 को सहारनपुर के शब्बीरपुर गाँव के दलितों के घरों पर उस क्षेत्र के ठाकुरों ने हमला किया था। इसमें लगभग दो दर्जन दलित बुरी तरह से घायल हुए थे और 50 से अधिक घर बुरी तरह से जला दिए गये थे।

इस हमले में रविदास मंदिर की मूर्ति तोड़ी गयी थी और मंदिर को बुरी तरह से जलाया तथा क्षतिग्रस्त किया गया था। उस हमले में एक ठाकुर लड़का जिसने रविदास मंदिर में घुस कर कोई ज्वलनशील पदार्थ छिड़ककर रविदास मंदिर को जलाया था तथा मूर्ति तोड़ी थी, दम घुटने के कारण मंदिर से बाहर निकलते ही बेहोश हो गया था और बाद में मर गया था।

इस पर हजारों की संख्या में ठाकुरों ने दलित बस्ती पर हमला किया था। हमले में दो दर्जन के करीब दलित बुरी तरह से घायल हुए थे, एक औरत की छाती काटने की कोशिश की गयी थी। दलित औरतों की इज्ज़त लूटने की कोशिश की गयी। ज्वलनशील पदार्थ छिड़ककर घरों को जलाया गया और गाय—भैसों तक को घायल किया गया।

जिस समय ठाकुर लोगों ने दलित बस्ती पर हमला किया, उस समय पुलिस मौके पर मौजूद थ। परन्तु उसने भी रोकने की बजाय हमलावरों को तांडव करने का खुला मौका दिया। जांच के दौरान औरतों ने हमें बताया था कि पुलिस वाले दंगाईयों को कह रहे थे कि आपको दो-तीन घंटे का समय दिया जाता है, जो कुछ करना है कर लो। इस प्रकार पुलिस ने बचाने की बजाये दलितों के घरों को जलाने, उन्हें घायल करने तथा लूटने में पूरा सहयोग दिया। पुलिस की यह भूमिका दलितों के प्रति दुर्भावनापूरण रवैये का प्रतीक है।

इतना ही नहीं पुलिस ने दलितों के विरुद्ध ठाकुरों की तरफ से 5 मुक़दमे दर्ज किये, जिनमें 9 दलितों को नामज़द किया गया, परन्तु दलितों की तरफ से ठाकुरों के विरूद्ध केवल एक मुकदमा दर्ज किया गया, जिसमे 9 ठाकुर नामज़द तथा काफी अन्य को आरोपी बनाया गया था।

इस पर पुलिस ने 8 दलितों को तो उसी दिन गिरफ्तार कर लिया और केवल 9 ठाकुरों को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद में एक अन्य दलित को भी गिरफ्तार किया गया, परन्तु ठाकुरों की तरफ से कोई भी अन्य गिरफ्तारी नहीं की गयी। जबकि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने जांच टीम को बताया था कि उन्होंने लगभग 40 ठाकुर हमलवरों को चिन्हित कर लिया है और उनकी गिरतारी जल्दी ही की जाएगी

इस मसले पर आज तक कोई भी गिरफ्तारी नहीं की गयी। इसके लगभग तीन हफ्ते बाद जब मायावती शब्बीरपुर गयीं, तो उस दिन जिला प्रशासन की लापरवाही के कारण शब्बीरपुर से लौट रहे एक दलित लड़के की हत्या कर दी गयी जिसमे केवल दो ठाकुर लड़कों की गिरफ्तारी की गयी।

पुलिस के पक्षपाती रवैये का इससे बड़ा क्या सुबूत हो सकता है कि पुलिस ने पिटने वाले दलित और पीटने वाले ठाकुरों के साथ एक जैसा बर्ताव किया है। बराबर की गिरफ्तारियां की गयीं। दो दलितों तथा दो ठाकुरों पर एनएसए लगा दिया गया है और सभी लोग जेल में हैं।

परिस्थितियों से पूरी तरह स्पष्ट है कि दलितों ने अपने बचाव में जो भी पथराव किया वह आत्मरक्षा में ही किया था। परन्तु दलितों द्वारा आत्मरक्षा में की गयी कार्रवाई को भी हमलावर ठाकुरों पर हमले के रूप में लिया गया और उनकी गिरफ्तारियां की गयीं, जबकि आईपीसी की धारा 100 में प्रत्येक नागरिक को आत्मरक्षा में कार्रवाई करने का अधिकार है। इस तरह एक तो दलितों पर ठाकुरों द्वारा अत्याचार किया गया और दूसरे पुलिस ने उन्हें आत्मरक्षा के अधिकार का लाभ न देकर गिरफ्तार किया गया। दलित दोहरे अत्याचार का शिकार हुए।

टीम को जांच के दौरान औरतों ने बताया था कि हमलावरों के पास गुब्बारे थे जिनको फेंककर आग लगाई गयी थी। इससे स्पष्ट है कि दलितों पर हमला पूर्व नियोजित था। औरतों का कहना था कि हमलावरों की मोटर साईकिलों की डिग्गियों में किसी ज्वलनशील पदार्थ से भरे हुए गुब्बारे थे और सीरिंज आदि भी थी जिस से वे कुछ छिड़क कर आग लगा रहे थे।

जांच टीम ने इस बात का उल्लेख जांच रिपोर्ट में भी किया, मगर पुलिस ने इस तथ्य को पूरी तरह से नज़रंदाज़ कर दिया। प्रशासन द्वारा दलितों के घरों तथा सामान के नुकसान का आकलन कराया गया था, परन्तु अब तक जो मुआवजा दिया गया है वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही है। जो दलित ठाकरों द्वारा लिखाये गये मुकदमों में नामज़द हैं और जेल में हैं उन्हें न तो सरकार की तरफ से नुकसान की भरपाई के लिए कोई मुआवजा मिला है और न ही एससी एसटी एक्ट के अंतर्गत मिलने वाली अनुग्रह राशि ही मिली है। इसके अलावा गिरफ्तार हुए दलितों को निजी वकील रखने पर भी खर्चा करना पड़ रहा है।

यह भी उल्लेखनीय है कि दलितों को घटना से एक दिन पहले ही आभास हो गया था कि 5 मई को महाराणा प्रताप जयंती पर दलितों पर हमला हो सकता है। इसीलिए ग्राम प्रधान ने उसकी सूचना पुलिस अधिकारियों तथा एसडीएम को दे दी थी, बावजूद इसके उस दिन दलितों की सुरक्षा के लिए पुलिस का कोई उचित प्रबंध नहीं किया गया।

इसके साथ ही जब 9 मई को भीम आर्मी ने प्रशासन द्वारा शब्बीरपुर में हुए हमले के सम्बन्ध में वांछित कारवाही न करने पर विरोध जिताने की कोशिश की तो पुलिस द्वारा बलप्रयोग किया गया। इस पर भीम आर्मी के सदस्यों तथा पुलिस के बीच मुठभेड़ होने पर भीम आर्मी के संयोजक चन्द्रशेखर तथा उसके साथियों के विरुद्ध 21 मुक़दमे दर्ज कर लिए गए।

इसके बाद चन्द्र शेखर सहित 40 लोगों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया, जिनमें से दो लोग अभी तक जेल में हैं। चन्द्रशेखर और वालिया को छोड़कर भीम आर्मी के अन्य गिरफ्तार सदस्यों की जमानत हो चुकी है। इन दोनों की जमानत जिला स्तर से रद्द हो चुकी है और अब यह इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है। जेल में चन्द्रशेखर की सेहत बराबर गिर रही है और 28 अक्तूबर को उसे जिला अस्पताल में आईसीयू में भर्ती करवाना पड़ा था।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि सहारनपुर में शब्बीरपुर के दलित आत्मरक्षा में कार्रवाही करने पर भी गिरफ्तार किये गये और उनकी गिरफ्तारियां हमला करने वाले ठाकुरों के समतुल्य ही की गयीं। एनएसए के मामले में भी उन्हें हमलावरों के समतुल्य रखा गया है। पीड़ित दलितों को बहुत कम मुआवजा दिया गया है और जो दलित मुकदमों में नामज़द हैं उन्हें कोई भी मुआवजा नहीं मिला है।

इसी तरह शब्बीरपुर के दलित एक तरफ जहाँ ठाकुरों के हमले का शिकार हुए हैं, वहीं दूसरी ओर वे प्रशासन के पक्षपाती रवैये का भी शिकार हो हुए हैं। इसके इलावा भीम आर्मी के दो सदस्य अभी भी जेल में हैं और तीन दर्जन से अधिक नवयुवक पुलिस से मजामत के मुकदमे झेल रहे हैं। इसके विपरीत ठाकुर लोग दलितों को निरंतर डरा धमका रहे हैं और स्कूलों में दलित बच्चों को प्रताड़ित किया जा रहा है।

(सेवानिवृत आईपीएस एसआर दारापुरी स्वराज अभियान समिति, उत्तर प्रदेश के सदस्य हैं।)

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