Begin typing your search above and press return to search.
सिक्योरिटी

सरकारी कंपनी HAL के सहारे मोदी ने राफेल सौदे में शामिल किया था अंबानी को

Prema Negi
7 Nov 2018 8:54 AM IST
सरकारी कंपनी HAL के सहारे मोदी ने राफेल सौदे में शामिल किया था अंबानी को
x

राफेल जैसा बड़ा रिस्क अंबानी की एकदम नई कंपनी पर क्यों, जिसे कि लड़ाकू हवाई जहाज बनाने का कोई अनुभव ही नहीं....

कर्नल प्रमोद शर्मा

राफेल घोटाले पर मोदी सरकार लगातार घिरती जा रही है। जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी केंद्र की मोदी सरकार को घेरते हए राफेल की कीमतों पर लगातार सवाल उठा रहे हैं कि हमारी सेना फंड की कमी से जूझ रही है, दूसरी तरफ मोदी सरकार ने राफेल डील में 36,000 करोड़ का घपला किया है।

फिलहाल राफेल विमान सौदे में नया विवाद आॅफसेट को लेकर उठा है। राफेल के लिए ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट के मसले पर जारी राजनीतिक गहमागहमी के बीच HAL के नए चीफ नेआर माधवन ने मीडिया में बयान दिया है कि कंपनी का काम एयरक्राफ्ट बनाना है, कंपनी ऑफसेट बिजनैस में नहीं है। टेक्नॉलॉजी ट्रांसफर और प्रॉडक्शन, ऑफसेट से बिल्कुल अलग काम है। माधवन ने HAL के कर्मचारियों से राजनीति से दूर रखने की अपील की।

ऑफसेट का सीधा सा मतलब है कि राफेल भारत की कम्पनी को एक तय हिस्से का काम देगा। ये क्लॉज़ UPA सरकार ने सरकारी कंपनी HAL के लिए लगवाया था और इसी क्लॉज़ के सहारे मोदी जी की सरकार ने अम्बानी की कंपनी को राफेल सौदे में डाल दिया।

राफेल लड़ाकू हवाई जहाज पर हुए करार की खामियों के बारे में पिछले दिनों इन पंक्तियों के लेखक ने पूर्व सैनिकों के प्रतिनिधि मंडल के साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ बैठक की थी।

प्रतिनिधि मंडल में देश के अन्य प्रांतों से पूर्व सैन्य अधिकारी भी मौजूद थे। सभी पूर्व सैनिकों का एक मत था कि 126 लड़ाकू विमानों की जगह सिर्फ 36 विमान लेना हमारी सीमाओं के सुरक्षा के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। साथ ही देश में लड़ाकू विमान के पुर्जे बनाने का ठेका एचएल को न देकर एक अपरिपक्व कंपनी को दिया गया है, यह भी गंभीर विषय है।

लड़ाकू विमान की कीमत पर उपजे विवाद से सैन्य सेवाओं के मनोबल को बनाये रखने में निश्चित तौर पर कठिनाइयां आती हैं। राफेल में 50 फीसदी ऑफसेट की शर्त थी यानी डील का 50 प्रतिशत निवेश भारत में होगा। ये इन्वेस्टमेंट है, मैन्युफैक्चरिंग नहीं, इसलिए Make In India की बात आधी—अधूरी सी है। ये 50 फीसदी हिस्सा राफेल बनाने तक सीमित नहीं है। कोई भी रक्षा का सामान इसमें शामिल किया जा सकता है।

50 प्रतिशत का 74 प्रतिशत भारत से निर्यात होना चाहिए। ये बहुत कड़ी शर्त UPA सरकार ने लगाई थी। इससे भारत को बहुत बड़ी विदेशी मुद्रा भी मिल सकती थी। यानी ऑफसेट के मुताबिक टोटल डील का लगभग 37 प्रतिशत भारत में ही बनना तय था।

निर्यात का मतलब उसकी गुणवत्ता और मूल्य विश्व के मानक के हिसाब से होने चाहिए। उसके बिना निर्यात होना सम्भव नहीं, यानी HAL (हिन्दुस्तान एरोनॉटिकल लिमिटेड) विश्वमान्य शस्त्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा था।

ये काबिलियत भारत में HAL, L&T, टाटा और महिंद्रा ग्रुप की कंपनियों में ही है, पर यूपीए ने HAL को ही चुना था, क्योंकि इसमें विदेशी टेक्नोलॉजी का भारत में ट्रांसफर का प्रावधान भी था, जिससे भविष्य में अपने मुल्क को रक्षा उत्पादन में स्वावलंबी बनने में मदद मिलती। नए करार के मुताबिक इस शर्त को कमजोर कर दिया गया है।

अगर किसी साल में उस साल के ऑफसेट का काम नहीं हो पाता है तो राफेल कंपनी को उस मूल्य का 5 प्रतिशत जुर्माना भरना पड़ेगा। सोचिये राफेल जैसा बड़ा रिस्क अम्बानी की एकदम नई कंपनी पर क्यों, जिसे कि लड़ाकू हवाई जहाज बनाने का कोई अनुभव नहीं है।

इसके अलावा ऑफसेट के अनुसार 6 फीसदी टेक्नोलॉजी शेयरिंग का हिस्सा भी भारत का होना चाहिए, तो 59000 करोड़ का और 6 फीसदी यानी 3540 करोड़ रुपए का बोनस HAL को। आज के ऑफसेट के बारे में मौजूदा सरकार कुछ बोलने तैयार नहीं है।

(कर्नल प्रमोद शर्मा को आर्मी ऑर्डनेंस फैक्ट्री और DRDO का लंबा अनुभव है। वे IIT मद्रास के छात्र रहे हैं।)

Next Story

विविध