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मोदी राज में 'विकास की हाइट' छूते देश में इस साल घटेंगी 16 लाख नौकरियां : SBI रिपोर्ट

Prema Negi
15 Jan 2020 8:54 AM GMT
मोदी राज में विकास की हाइट छूते देश में इस साल घटेंगी 16 लाख नौकरियां : SBI रिपोर्ट
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एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट की मानें तो उद्योग जगत में छाई सुस्ती की वजह से नए श्रमिकों की मांग लगातार घट रही है, कई कंपनियां दिवालिया होने की कगार पर हैं, जिस कारण ठेका श्रमिकों की भर्ती में आई है बड़ी गिरावट और पड़ रही है पेट पर लात...

जनज्वार। देश की अर्धव्यवस्था में लगातार आ रही गिरावट का असर बड़े पैमाने पर रोजगार पर पड़ा है। भारत में साल 2020 में पिछले साल के मुकाबले 16 लाख लोगों का रोजगार कम होने का अनुमान है। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट इकोरैप कहती है कि महंगाई की मार के बीच रोजगार के क्षेत्र में मार और बढ़ेगी। यानी 2020 के बेरोजगारी और महंगाई का साल होने की पूरी उम्मीद है।

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एक रिसर्च के मुताबिक 2020 में नए पे-रोल के आधार पर 2018 की तुलना में 16 लाख नौकरियां कम हो सकती हैं। रिपोर्ट में की गई गणना के अनुसार अप्रैल-अक्तूबर के दौरान शुद्ध रूप से ईपीएफओ के साथ 43.1 लाख नए अंशधारक जुड़े थे। सालाना आधार पर यह आंकड़ा 73.9 लाख बैठेगा।

सबीआई रिसर्च की रिपोर्ट इकोरैप की मानें तो असम, बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों से मजदूरी के लिए बाहर गए लोगों ने इस बीच अपने घर पहले की तुलना में बहुत कम पैसा भेजा। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि ठेका श्रमिकों की संख्या पहले की तुलना में कम हुई है। गौरतलब है अपेक्षाकृत गरीब माने जाने वाले इन राज्यों से गरीब आबादी मजदूरी के लिए पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जाती है और वहां से अपने बीवी—बच्चों के लिए पैसा भेजती है।

पिछले वित्त वर्ष के कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के आंकड़ों के मुताबिक 2018-19 में रोजगार के टोटल 89.7 लाख अवसर सृजित हुए थे और साल 2020 में 15.8 लाख नौकरियों की कमी आने का संभावना है।

र्मचारी भविष्य निधि संगठन के आंकड़ों में मुख्य रूप से कम वेतन वाली नौकरियां शामिल होती हैं, जिनमें वेतन की अधिकतम सीमा प्रतिमाह 15,000 रुपये होती है।

गौरतलब है कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ने अपनी इस रिपोर्ट में केंद्र और राज्य सरकार की नौकरियों और निजी काम-धंधे में लगे लोगों को शामिल नहीं किया है। हालांकि राज्य और केंद्र सरकार में भी मौजूदा रुझानों के मुताबिक 2018-19 की तुलना में चालू वित्त वर्ष में रोजगार के 39,000 कम अवसर सृजित होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

निजी कंपनियों की ओर से श्रमिकों के वेतन में बढ़ोतरी न किया जाना भी चिंता का विषय है। इस कदम से अधिक कर्ज लेने की दर बढ़ने का खतरा बढ़ रहा है, जो अर्थव्यवस्था और वित्तीय तंत्र के लिए जोखिम पैदा करेगा।

पिछले वर्ष मई, 2019 में केंद्र सरकार ने माना था कि भारत में बेरोजगारी दर 45 साल में सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है। जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच बेरोजगारी 6.1 प्रतिशत थी और 7.8 प्रतिशत शहरी युवाओं के पास कोई भी रोजगार नहीं था, ग्रामीण भारत में यह आंकड़ा और ज्यादा भयावह था।

कोरैप की रिपोर्ट की मानें तो उद्योग जगत में छाई सुस्ती की वजह से नए श्रमिकों की मांग लगातार घट रही है। कई कंपनियां दिवालिया होने की कगार पर हैं, जिस कारण ठेका श्रमिकों की भर्ती में बड़ी गिरावट आई है और उनके पेट पर लात पड़ रही है।

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