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राजनीति

मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश व नमाज पर सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

Prema Negi
17 April 2019 8:45 AM GMT
मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश व नमाज पर सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार
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याचिकाकर्ता मुस्लिम दंपती ने कहा ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि पवित्र कुरान और पैगंबर मुहम्मद ने महिलाओं को मस्जिदों में प्रवेश करने और नमाज अदा करने का विरोध किया हो। पुरुषों की तरह, महिलाओं को भी अपने विश्वास एवं आस्था के अनुसार पूजा की पेशकश करने का है संवैधानिक अधिकार...

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट

जनज्वार। मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश और नमाज पढ़ने की अनुमति के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय विचार करेगा। उच्चतम न्यायालय ने पुणे के एक मुस्लिम दंपती की याचिका पर केंद्र सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग, ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड और सेंट्रल वक्फ काउंसिल को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने दंपती यास्मीन जुबेर अहमद पीरजादा और जुबेर अहमद नजीर अहमद पीरजादा की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी करते हुए याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वे इस मामले में सिर्फ सबरीमाला मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले की वजह से विचार करेंगे। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से कई सवाल किए और संतोषजनक उत्तर नहीं मिलने पर उन्होंने उपरोक्त टिप्पणी करते हुए मामले पर विचार के लिए नोटिस जारी किए।

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने पिछले वर्ष 28 सितंबर को 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को असंवैधानिक ठहराया था। न्यायालय ने उस फैसले में पाबंदी को लिंग आधारित भेदभाव बताया था। मुस्लिम दंपती ने मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश और नमाज पढ़ने के अधिकार की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय के इसी फैसले को आधार बनाया है और मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया है। साथ ही कहा है कि कुरान और हदीस में लिंग आधारित भेदभाव नहीं किया गया है।

पीठ ने किये तीखे सवाल

मंगलवार 16 अप्रैल को सुनवाई के दौरान जब याचिकाकर्ता के वकील ने मौलिक अधिकार के हनन की दलील दी तो पीठ ने उनसे सवाल किया कि क्या मौलिक अधिकार के हनन का दावा किसी गैरसरकारी संस्था से किया जा सकता है। क्या मस्जिद, चर्च या मंदिर को स्टेट यानी राज्य माना जा सकता है। क्या एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के खिलाफ बराबरी के मौलिक अधिकार का दावा कर सकता है।

जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या आपके मुवक्किल को प्रवेश से रोका गया। वकील ने कहा, ‘हां’। बल्कि उसने पुलिस से शिकायत की लेकिन पुलिस ने भी मदद नहीं की। इस पर पीठ ने कहा कि यह अपराध तो है नहीं तो पुलिस क्यों मदद करती। इस पर वकील ने कहा कि मस्जिद का प्रबंधन करने वाला बोर्ड राज्य की तरह काम करता है उसे राज्य से अनुदान मिलता है। हालांकि कोर्ट वकील के जवाबों से बहुत संतुष्ट नहीं हुआ।

क्या मक्का में महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश की इजाजत है?

जस्टिस बोबडे ने पूछा कि दुनिया में अन्य जगह क्या महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश की इजाजत है। क्या मक्का में वे जा सकती हैं। वकील ने कहा हां। इस पर पीठ के दूसरे न्यायाधीश जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि मक्का में महिला पुरुष एक साथ एकत्र होते हैं। वकील ने कहा कि कनाडा में भी महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश की अनुमति है, लेकिन सऊदी अरब में इस पर फतवा है।

संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 और 29 का उल्लंघन

याचिका में भारत में मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश को प्रतिबंधित करने की प्रथाओं को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 और 29 के उल्लंघन के लिए अवैध और असंवैधानिक घोषित किए जाने का अनुरोध किया गया है। याचिकाकर्ताओं ने यह आरोप लगाया कि उन्होंने महिलाओं के लिए पुणे की मोहम्मदी जामा मस्जिद में नमाज की पेशकश करने की अनुमति के संबंध में एक पत्र लिखा था, लेकिन मस्जिद प्रशासन ने याचिकाकर्ता के अनुरोध का जवाब देते हुए कहा था कि पुणे और अन्य क्षेत्रों में मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश की कोई भी प्रथा की अनुमति नहीं है।

फिर भी उन्होंने दाउद कजा और दारुलूम देववंद को पत्र लिखा है और वो याचिकाकर्ता के अनुरोध का जवाब देंगे। उक्त पत्र के जवाब में जामा मस्जिद, पुणे के इमाम ने लिखा था कि चूंकि ऐसी कोई अनुमति नहीं दी जा सकती और उन्हें मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश के बारे में निश्चित ज्ञान नहीं है, इसलिए उन्होंने याचिकाकर्ता के अनुरोध पर विचार करने के लिए उच्च अधिकारियों को लिखा है। उपरोक्त प्रतिक्रिया से दुखी होकर याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

याचिकाकर्ता की ओर से दी गयी दलीलें याचिकाकर्ताओं के अनुसार महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का कृत्य शून्य और असंवैधानिक है, क्योंकि इस तरह की प्रथाएं न केवल एक व्यक्ति के रूप में एक महिला की बुनियादी गरिमा के लिए बल्कि संविधान के तहत मूलभूत गारंटी की गारंटी का उल्लंघन करने वाली भी हैं। याचिका में कहा गया है कि कुरान पुरुष और महिला के बीच ऐसा कोई अंतर नहीं करता।

याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि पवित्र कुरान और पैगंबर मुहम्मद ने महिलाओं को मस्जिदों में प्रवेश करने और नमाज अदा करने का विरोध किया हो। याचिका में कहा गया है कि पुरुषों की तरह, महिलाओं को भी अपने विश्वास एवं आस्था के अनुसार पूजा की पेशकश करने का संवैधानिक अधिकार है। वर्तमान में महिलाओं को जमात-ए-इस्लामी और मुजाहिद संप्रदायों के तहत मस्जिदों में नमाज अदा करने की अनुमति है, जबकि उन्हें प्रमुख सुन्नी गुट के तहत मस्जिद से रोक दिया जाता है।

याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि मुसलमानों के लिए दुनिया की सबसे पवित्र मस्जिद महिलाओं और पुरुषों दोनों को गले लगाती है। इसके अलावा, मक्का में मस्जिद-अल-हरम पर मुस्लिम समुदाय पूरी तरह से एकमत है। ये दुनिया में सभी मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र मस्जिद है और प्रत्येक सक्षम मुस्लिम को अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार इसे देखने की आवश्यकता होती है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि मस्जिद-मक्का में हर-हरम ने हमेशा दुनिया के हर हिस्से से मुस्लिम महिलाओं को इसमें प्रार्थना करने के लिए आमंत्रित किया है। यह पुरुषों और महिलाओं के बीच ऐसा कोई भेदभाव नहीं करता है क्योंकि किसी भी तरह का भेदभाव कुरान का उल्लंघन करेगा।

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