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सिक्योरिटी

सेना पर हमले की आड़ में कहीं चैनल वाले आपको सनकी तो नहीं बना रहे

Prema Negi
18 Feb 2019 10:38 AM GMT
सेना पर हमले की आड़ में कहीं चैनल वाले आपको सनकी तो नहीं बना रहे
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ताज्जुब यह कि जो लोग आज राष्ट्रवाद के सबसे बड़े ठेकेदार और सैनिकों के हिमायती बनकर संवेदना के नाम पर उन्माद फैला रहे हैं, उन्होंने कभी भी सैनिकों की पीड़ा को महसूस करने की कोशिश तक नहीं की...

अभिषेक आजाद

पुलवामा आतंकी हमले में भारत माता ने अपने 46 जवान बेटे खोए हैं। पूरा देश इस घटना से आहत हुआ है। पूरे देश की संवेदनाएं शहीदों के परिजनों के साथ हैं। इस बात में किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए, मगर इसी के साथ दुर्भाग्यवश संवेदनाएं प्रदर्शित करने का एक संवेदनहीन प्रतियोगी दौर शुरू हो गया है।

इस दौड़ में सोशल मीडिया, राजनीतिक संगठन और आमजन सभी शामिल हो गए। लोग अपनी तस्वीरें बदल रहे हैं और सोशल मीडिया संवेदना के संदेशों से भरा पड़ा है। संवेदना अपने पूरे उफान पर है और उन्माद की तरफ बढ़ रही है, जो किसी भी वक्त त्रासदी का रूप ले सकती है।

सबसे आगे वो न्यूज़ चैनल हैं, जिन्होंने पिछले 72 घंटों में किसी भी दूसरी न्यूज़ को अपनी रिपोर्ट में स्थान नहीं दिया है। ये दिन-रात चौबीसों घंटे बिना रुके एक-एक पल की लाइव रिपोर्टिंग कर रहे हैं। ये न्यूज़ चैनल सरकार से सर्जिकल स्ट्राइक, आर-पार की लड़ाई और पाकिस्तान का नामोनिशान मिटा देने की मांग कर रहे हैं।

भावुक तस्वीरें और देशभक्ति के गीतों से उन्माद पैदा किया जा रहा है। उन्माद पैदा करने वाले स्वयं को सैनिकों के सबसे बड़े हमदर्द के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं। ताज्जुब यह कि जो लोग आज राष्ट्रवाद के सबसे बड़े ठेकेदार और सैनिकों के हिमायती बनकर संवेदना के नाम पर उन्माद फैला रहे हैं, उन्होंने कभी भी सैनिकों की पीड़ा को महसूस करने की कोशिश नहीं की है।

जब एक सैनिक को अच्छा खाना नहीं मिलता, बड़े अफसर बदसलूकी करते हैं और इसकी शिकायत करने पर एक सैनिक को सेना से निकाल दिया जाता है उस वक्त ये लोग खामोश रहते हैं। जब सैनिक 'वन रेंक वन पेंशन' की मांग को लेकर प्रदर्शन करते हैं, उस वक्त ये लोग कहीं दिखाई नहीं पड़ते। जब 14 अगस्त 2015 को स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे सैनिकों पर लाठियां बरसाई गयीं, उस वक्त ये लोग खामोश रहे और मीडिया ने भी इस घटना को ब्लैकआउट किया।

सीआरपीएफ के जवान जो दिन—रात अपनी जान हथेली पर लेकर आंतरिक सुरक्षा में जुटे हुए हैं, उन्हें सेना का दर्जा भी प्राप्त नहीं है। उनकी शहादत को राजकीय सम्मान तो मिल गया, लेकिन उन्हें पेंशन नहीं मिलती! जिन्हें मीडिया और पूरा देश शहीद कह रहा है, सीआरपीएफ के वे जवान आधिकारिक रूप से शहीद भी नहीं हैं। ये अर्द्धसैनिक पहले भी अपने पेंशन के अधिकार और सेना के बराबर सहूलियतें पाने के लिए संघर्ष करते रहे हैं। वास्तविकता यही है कि सैनिको की हमदर्दी का मुखौटा पहनकर ये लोग सरकार का बचाव कर रहे हैं।

इस आतंकी हमले को रोकने में सरकार पूरी तरह से असफल रही है। भावनात्मक अपील और युद्धोन्माद की आड़ में सरकार और सुरक्षा जांच एजेंसियों की असफलता को छिपाया जा रहा है, किन्तु भविष्य में ऐसी घटनाये न हो यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार और सुरक्षा जाँच एजेंसियों की जवाबदेही तय होनी चाहिए। इस घटना से जुड़े सभी अहम सवालों का जवाब सरकार को देना चाहिए।

जब 7 फरवरी को ख़ुफ़िया एजेंसी ने IED से आतंकी हमले का अंदेशा जताया तो इस हमले को टालने के लिए क्या कदम उठाये गए? जब IED से आतंकी हमले का अंदेशा था तो 350 किलो IED एक गाड़ी में कैसे इकट्ठा हुआ? कड़ी जाँच और नाकेबंदी के बावजूद 350 किलो विस्फोटक से भरी गाड़ी सैनिकों के काफिले के करीब कैसे पहुंच गयी? सैनिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार कौन से ठोस कदम उठा रही है? नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक से आतंकियों की कमर तोड़ने के दावों का क्या हुआ?

जब तक हम ज़िम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय नहीं करेंगे, दोषियों की निशानदेही नहीं करेंगे और सैनिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार को बाध्य नहीं करेंगे तब तक हमारे शहीद अपनी जान गवांते रहेंगे, चाहे हम जितनी संवेदनाएं व्यक्त करें। चाहे जितनी मोमबत्तियां जलाएं और चाहे जितने कैंडल मार्च निकालें।

कॉरपोरेट मीडिया की भूमिका सबसे ज्यादा निराशाजनक रही। वह सरकार से सवाल पूछने की बजाय खुद को सबसे ज्यादा देशभक्त न्यूज़ चैनल साबित करने में लग गया। मीडिया यह पूछना भूल गया कि CRPF के अर्धसैनिक बलों को सेना का दर्जा कब मिलेगा? CRPF के जवानों को पेंशन का अधिकार और सेना के बराबर सहूलियतें कब मिलेंगी? सोशल मीडिया ने भी इसी ट्रेंड को फॉलो किया। यह महज़ इत्तेफाक नहीं है कि भारतीय मीडिया की विश्व में रैंकिंग गिरकर 138 पहुँच गयी है।

(अभिषेक आज़ाद दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग में शोधछात्र और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं।)

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