259 से भी अधिक बुद्धिजीवी, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता महिलाओं के ग्रुप ने कहा यौन उत्पीड़न केस में इंटर्नल कम्प्लेंट्स कमेटी के गठन में कानून का हुआ है खुलेआम उल्लंघन
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट
जनज्वार। 259 से अधिक महिलाओं, जिनमें वकील, विद्वान, महिला समूहों और नागरिक समाज के सदस्य शामिल हैं, ने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए जस्टिस एस ए बोबडे और जस्टिस एन वी रमाना और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की समिति के गठन पर गम्भीर सवाल उठाया है। कहा है कि जस्टिस बोबडे की अध्यक्षता वाली समिति का गठन कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम), निषेध, और निवारण) अधिनियम 2013 के प्रावधानों का पूर्ण उल्लंघन है।
गौरतलब है कि जब यौन उत्पीड़न की शिकायत किसी संस्थान के मालिक के ख़िलाफ़ हो तो 'सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ़ वुमेन ऐट वर्कप्लेस (प्रिवेन्शन, प्रोहिबिशन एंड रिड्रेसल) ऐक्ट 2013' के मुताबिक़ उसकी सुनवाई संस्थान के अंदर बनी 'इंटर्नल कम्प्लेंट्स कमेटी' की जगह ज़िला स्तर पर बनाई जाने वाली 'लोकल कम्प्लेंट्स कमेटी' को दी जाती है। मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम पद पर हैं, इसीलिए पीड़ित महिला ने ही जांच कमेटी में रिटायर्ड जजों की मांग की थी।
तीन जजों की इस कमेटी में वरिष्ठता की हैसियत से मुख्य न्यायाधीश के ठीक बाद आने वाले जस्टिस बोबड़े और जस्टिस रमना हैं। साथ ही एक महिला जज, जस्टिस इंदिरा बैनर्जी हैं। ये सभी जज मुख्य न्यायाधीश से जूनियर हैं।
क़ानूनी प्रावधान के अनुसार यौन उत्पीड़न की शिकायत की जांच के लिए बनी 'इंटर्नल कम्प्लेंट्स कमेटी' की अध्यक्षता वरिष्ठ पद पर काम कर रहीं एक महिला को करनी चाहिए। उच्चतम न्यायालय की बनाई विशेष कमेटी के अध्यक्ष जस्टिस बोबड़े हैं और उन्हें ये काम मुख्य न्यायाधीश ने ही सौंपा है। क़ानूनी प्रावधान के अनुसार जांच के लिए बनाई गई 'इंटर्नल कम्प्लेंट्स कमेटी' की कुल सदस्यों में कम से कम आधी महिलाएं होनी चाहिए, लेकिन वर्तमान कमेटी के तीन सदस्यों में केवल एक महिला हैं।
क़ानूनी प्रावधान के अनुसार जांच के लिए बनी कमेटी में एक सदस्य औरतों के लिए काम कर रही ग़ैर-सरकारी संस्था से होनी चाहिए। ये प्रावधान कमेटी में एक स्वतंत्र प्रतिनिधि को लाने के लिए रखा गया है। मुख्य न्यायाधीश के ख़िलाफ़ आरोप की जांच के लिए बनाई गई कमेटी में कोई स्वतंत्र प्रतिनिधि नहीं है। उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित तीन सदस्यीय कमेटी कल शुक्रवार 26 अप्रैल से यौन उत्पीड़न की शिकायत की सुनवाई शुरू करेगी।
न्यायाधीशों को भेजे गए पत्र में उन्होंने पीड़ित को सुनवाई का मौका बिना दिए मुख्य न्यायाधीश द्वारा महिला की शिकायत को न्यायपालिका की स्वतंत्रता को धूमिल करने का प्रयास कहने पर भी आपत्ति व्यक्त की है। किसी भी बाहरी सदस्य के बिना जस्टिस बोबडे की अध्यक्षता वाली समिति का गठन कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम), निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 के प्रावधानों का पूर्ण एवं उल्लंघन है।
पत्र में कहा गया है कि आरोपों से इंकार, शिकायतकर्ता को बदनाम करना, पिछले कारनामों का हवाला देते हुए, शिकायतकर्ता पर कुत्सित इरादों का आरोप अक्सर आरोपी पुरुष अपने को पाक साफ दिखने के लिए लगाते हैं। आमतौर पर पीड़िता के विरुद्ध प्रशासनिक उत्पीड़न, मानहानि के मुकदमे किये जाते हैं। न केवल मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय ने अपने व्यवहार से एक गलत उदाहरण पेश किया है, बल्कि वे महिला के यौन उत्पीड़न की शिकायतों को गलत साबित करने में एक कदम आगे निकल गए हैं। उन्होंने घोषणा कर दी है कि आरोप स्वयं न्यायपालिका की स्वतंत्रता को धूमिल करने का एक प्रयास है।
पत्र में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के उस बयान की भी कड़ी आलोचना की गयी है जिसमें यौन उत्पीडन की शिकायत को न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश और इसे राजनीति से प्रेरित करार दिया गया है। पत्र में कहा गया है कि हम इस बात से हैरान हैं कि विधिवत जांच या पूछताछ के अभाव में बीसीआई, कतिपय वकील और न्यायाधीश इतनी जल्दबाजी में कैसे यह निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि शिकायत झूठी, निराधार और जान बूझकर की गयी है।
259 से अधिक महिलाओं, जिनमें वकील, विद्वान, महिला समूहों और नागरिक समाज के सदस्य शामिल हैं, ने भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को एक विशेष जांच समिति के गठन के लिए लिखा पत्र है, जिसमें विश्वसनीय व्यक्तियों के साथ 90 दिनों के भीतर यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच की मांग शामिल है। यह भी मांग की गयी है कि जाँच होने तक मुख्य न्यायाधीश के स्तर पर यह मांग कोई आधिकारिक कर्तव्य नहीं निभाना चाहिए।
इन परिस्थितियों में, शिकायत की भयावहता को ध्यान में रखते हुए माँग की गयी है कि विश्वसनीय व्यक्तियों की एक विशेष जांच समिति गठित की जय जो जल्द से जल्द पूरी जांच करें और पारदर्शिता और विश्वास का माहौल बनाये, ताकि शिकायतकर्ता अपना बयान दे सके।
विशेष जांच समिति को आईसी के मानदंडों का पालन करे और तदनुसार इसकी जांच करे। भारत के मुख्य न्यायाधीश जाँच पूरी होने तक अपने आधिकारिक कामकाज और जिम्मेदारियों से दूर रहें। शिकायतकर्ता को उसकी पसंद के वकील से कानूनी सहायता की अनुमति दी जाय तथा कानून के प्रावधान के अनुसार जांच 90 दिनों के भीतर पूरी की जाय।