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जनज्वार विशेष

पर्यावरण प्रेमी पॉप सिंगर माइली सायरस बोलीं, नहीं करेंगी बच्चे पैदा क्योंकि गुस्साई पृथ्वी अतिरिक्त बोझ सहने में है असमर्थ

Prema Negi
19 July 2019 2:20 PM GMT
पर्यावरण प्रेमी पॉप सिंगर माइली सायरस बोलीं, नहीं करेंगी बच्चे पैदा क्योंकि गुस्साई पृथ्वी अतिरिक्त बोझ सहने में है असमर्थ
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जिस तरीके से समाज महिलाओं से केवल लेना जानता है, उन्हें बच्चे पैदा करने की मशीन समझता है, उसी तरह प्रकृति का समाज लगातार बलात्कार कर रहा है, पर उसके बच्चे पैदा करने की क्षमता ख़त्म हो गयी है। पूरी पृथ्वी कचरा घर बन गयी है...

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

पॉप गायिकाएं तभी समाचार बनाती हैं, जब उनका कोई नया एलबम आता है, या फिर स्टेज पर उनके कपड़ों के साथ कोई समस्या आती है, या निजी जीवन में कुछ विशेष होता है, या फिर फोटोग्राफर उनकी अंतरंग पलों की फोटो खींचने में कामयाब रहते हैं। पर प्रख्यात पॉप गायिका माइली सायरस हाल में पर्यावरण से सम्बंधित बेबाक विचारों के कारण सुर्ख़ियों में हैं।

26 वर्षीय माइली सायरस अमेरिका की मशहूर पॉप गायिका और गीतकार हैं। कुछ दिनों पहले इल्ले (ILLE) नामक पत्रिका में प्रकाशित एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा है कि वे बच्चे नहीं पैदा करेंगी, क्योंकि पृथ्वी गुस्से में है और अतिरिक्त बोझ सहन करने में असमर्थ है।

सायरस कहती हैं, प्रकृति महिला है और जिस तरह से समाज ने महिलाओं को दासी बनाकर रखा है, वैसा ही व्यवहार प्रकृति के साथ भी कर रहे हैं। जब तक समाज का प्रकृति के साथ व्यवहार बेहतर नहीं होता वे बच्चे के बारे में नहीं सोचेंगी। प्रकृति जब गुस्से में हो तो उस पर बोझ डालना ठीक नहीं है, जैसे महिलायें भी जब गुस्से में होती हैं, तब परेशान होना नहीं चाहतीं। पूरी पृथ्वी विनाश की तरफ बढ़ रही है। जब पानी में मछलियाँ होंगीं तब वे अपने बच्चे के बारे में सोचेंगी।

सायरस ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जिस तरीके से समाज महिलाओं से केवल लेना जानता है, उन्हें बच्चे पैदा करने की मशीन समझता है, उसी तरह प्रकृति का समाज लगातार बलात्कार कर रहा है, पर उसके बच्चे पैदा करने की क्षमता ख़त्म हो गयी है। पूरी पृथ्वी कचरा घर बन गयी है, ऐसे में किसी नए मेहमान का स्वागत कैसे कर सकते हैं।

माइली सायरस ने कहा कि इसके बाद भी हम महिलाओं को समाज ने हमारी इच्छा के विरुद्ध जनसंख्या बढ़ाने का काम दे रखा है, यदि हम अपनी इच्छा से बच्चे नहीं पैदा करें को समाज हमें कमजोर मानता है, फब्तियां कसता है, शक करता है और हमें बेचारा समझता है।

र्यावरण से माइली सायरस का गहरा नाता रहा है और समय समय पर उन्होंने इस पर अपने विचार स्पष्ट तौर पर प्रस्तुत किये हैं। कुछ वर्ष पहले उन्होंने पर्यावरण पर कुछ गाने भी गाये थे। इस वर्ष के आरम्भ में उन्होंने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा जलवायु परिवर्तन की उपेक्षा किये जाने के लिए उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। जून में एक म्यूजिक फेस्टिवल में उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए युवाओं का आव्हान किया था, जिसे बहुत सराहना मिली थी।

माइली सायरस की पर्यावरण के प्रति चिंता कोई कपोर कल्पना नहीं है, बल्कि नये वैज्ञानिक शोध इसी तरफ इशारा कर रहे है। एक नया अध्ययन बताता है कि मानव सभ्यता के अंतिम कुछ दशक बचे हैं और हम विलुप्तीकरण की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका कारण जलवायु परिवर्तन के भयानक परिणाम हैं और पूरी दुनिया की इसके प्रति उदासीनता है।

मानव सभ्यता वर्ष 2050 के आसपास पृथ्वी से मिट जायेगी। ऐसा ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न स्थित ब्रेकथ्रू नेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट रेस्टोरेशन की एक रिपोर्ट में कहा गया है। इस रिपोर्ट को हाल में ही ऑस्ट्रेलिया की सेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल क्रिस बार्री ने जारी किया और इसके लेखक डेविड स्प्राट और इयान डनलप हैं।

डमिरल क्रिस बार्री ने रिपोर्ट को जारी करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट में आज के संकट को उजागर किया गया है, अगले दशक की तस्वीर बताई गयी है और मानव सभ्यता के अंत के कारण बताये गए हैं। जलवायु परिवर्तन अब कोई कल्पना नहीं है और पृथ्वी का हरेक क्षेत्र इसके परिणाम भुगत रहा है, पर दुखद है कि दुनियाभर की सरकारें इन परिणामों की अनदेखी कर रही है और इसे रोकने के लिए कदम नहीं उठा रही हैं।

रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण महासागरों के लहरों में बदलाव के कारण एशिया और पश्चिमी अफ्रीका का मानसून प्रभावित हो रहा है और यूरोप में जीवन को संरक्षित करने वाले सभी प्राकृतिक संसाधन नष्ट होते जा रहे हैं। उत्तरी अमेरिका लगातार तूफ़ान, चक्रवात, गर्मी, जंगलों की आग, बाढ़ और सूखे की मार झेल रहा है। चीन में गर्मियों का मानसून समाप्त हो गया है। हिमालय के एक-तिहाई ग्लेशियर समाप्त हो चुके हैं और इससे अरबों लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। एंडीज पर्वतमाला के लगभग 70 प्रतिशत ग्लेशियर नष्ट हो चुके हैं। मेक्सिको और अमेरिका में मानसून की बारिश में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आ चुकी है।

तापमान बृद्धि और जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय समझौते के अनुसार इस सदी के अंत तक तापमान वृद्धि को किसी भी तरीके से 2 डिग्री सेल्सियस पर रोकना होगा, पर इसके बाद भी अरबों लोग दुनिया में विस्थापित होंगे जिससे अस्थिरता बढ़ेगी। अमेज़न के वर्षावन, जिन्हें पृथ्वी का फेफड़ा कहा जाता है, सूखे की चपेट में होंगे और वर्षा वनों का क्षेत्र कम होता जाएगा।

लेकिन मेलबोर्न स्थित ब्रेकथ्रू नेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट रेस्टोरेशन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन सर्वाधिक होगा और वर्ष 2050 तक ही पृथ्वी का औसत तापमान 3 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ जाएगा। तापमान का बढ़ाना यहीं नहीं रुकेगा बल्कि इसके बाद “हॉटहाउस अर्थ” नामक प्रभाव के कारण तापमान में 1 से 2 डिग्री सेल्सियस की अतिरिक्त बढ़ोत्तरी होगी।

त्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर फ़ैली बर्फ की आवरण जो अब तक सूर्य की किरणों को वापस अंतरिक्ष में भेजती है, तब तक नहीं बचेगी। इसके प्रभाव से पृथ्वी और गर्म होती जायेगी। अनुमान है कि अकेले ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से इस सदी के अंत तक पृथ्वी का औसत तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार यदि तापमान 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा तब हम कितनी भी कोशिश कर लें पर इसके प्रभावों को पलट नहीं पायेंगे।

संयुक्त राष्ट्र की एक नयी रिपोर्ट के अनुसार तापमान वृद्धि से प्राकृतिक आपदा की आवृत्ति बढ़ रही है। इसी आपदा का प्रकोप तो माइली सायरस स्वयं झेल भी चुकी हैं। पिछले वर्ष कैलिफ़ोर्निया के वनों में जब भीषण आग लगी थी, तब उनका घर भी ख़ाक हो गया था।

श्चर्य तो यह होता है कि तापमान वृद्धि के बारे में वैज्ञानिक 1980 के दशक से लगातार चेतावनी दे रहे हैं, प्रख्यात वैज्ञानिक स्टेफेन हाकिन ने भी अपनी मृत्यु से पूर्व कहा था कि आज की परिस्थितियों को देखते हुए मानव समुदाय को एक दशक के भीतर ही अन्य ग्रहों पर रहने का इंतजाम कर लेना चाहिए, नहीं तो हम नहीं बच पायेंगे।

पिछले कुछ दशकों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तापमान वृद्धि पर जितने अधिवेशन होते हैं, उतने अन्य किसी भी विषय पर नहीं होते। इन सबके बाद भी दुनिया भर की सरकारें तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जरा भी सचेत नहीं दिखतीं। ऐसे में माइली सायरस ने जो महिलाओं और पर्यावरण के बारे में कहा, वह एक बार इस समस्या के बारे में सोचने को मजबूर जरूर करता है।

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