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राजनीति

सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा कोर्ट से बाहर सुलझाना चाहते हैं अयोध्या भूमि विवाद!

Prema Negi
17 Sep 2019 4:47 AM GMT
सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा कोर्ट से बाहर सुलझाना चाहते हैं अयोध्या भूमि विवाद!
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सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़े ने रिटायर्ड जज एफ. एम. कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाले पैनल को पत्र लिखकर जताई इच्छा कि कोर्ट के बाहर बातचीत से सुलझाना चाहते हैं अयोध्या भूमि विवाद को...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

योध्या भूमि विवाद को हल करने के लिए मध्यस्तता पैनल का जिन्न एक बार फिर बाहर निकल आया है। हालांकि 155 दिन की कवायद के बाद भी विवाद का कोई सर्वमान्य हल नहीं निकल पाया था, क्योंकि विवाद में शामिल कुछ पक्ष अपने नज़रिये से एक इंच भी पीछे जाने को तैयार नहीं हुए। अब एक बार फिर उच्चतम न्यायालय में अयोध्या भूमि विवाद पर सुनवाई के 24वें दिन सोमवार 17 सितंबर को तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के समक्ष बातचीत के जरिए मसला सुलझाने की पेशकश की है।

च्चतम न्यायालय के रिटायर्ड जज एफ. एम. कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाले पैनल ने संविधान पीठ से इस बारे में निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया है। हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रमुख पक्षों, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा ने उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखकर कहा है कि वे कोर्ट के बाहर बातचीत से मुद्दे को सुलझाना चाहते हैं। इसके बाद अब पैनल ने उच्चतम न्यायालय से एक बार फिर अपील की है।

गौरतलब कि अयोध्या के को बातचीत के जरिए सुलझाने को लेकर उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता पैनल बनाया था। पैनल की ओर से 155 दिनों तक मसला सुलझाने की कोशिशें हुईं, लेकिन कोई हल नहीं निकल सका था। इसके बाद उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने मामले की रोजाना सुनवाई शुरू करने का निर्णय लिया और मध्यस्तता पैनल को भंग कर दिया था। अभी तक 24 दिन की सुनवाई पूरी हो चुकी है। अबतक हिंदू पक्ष की दलीलें पूरी हो चुकी हैं और मुस्लिम पक्ष अपनी बातें रख रहा है। इस मध्यस्थता समिति में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पाचू शामिल हैं।

योध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में मध्यस्थता पैनल ने उच्चतम न्यायालय में उन पत्रों का ज्ञापन भेजा है, जिसमें सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा ने मध्यस्थता को शुरू करने का अनुरोध किया है। दोनों पक्षों ने पैनल को लिखे पत्र में कहा है कि अदालत में सुनवाई जारी रहे और मध्यस्थता के लिए एक बार फिर से कोशिश की जानी चाहिए। वहीं अन्य पक्षकारों ने इसका विरोध किया है।

गौरतलब है कि मध्यस्थता पैनल इस कारण विफल रहा था क्योंकि जमीअत उलेमा ए हिंद के मौलाना अरशद मदनी गुट और विश्व हिंदू परिषद समर्थित राम जन्मभूमि न्यास अपने-अपने रुख से पीछे हटने को तैयार नहीं थे। अब सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की तरह ही निर्वाणी अखाड़ा ने भी पत्र लिखकर मध्यस्थता को बहाल करने की वकालत की है।

निर्वाणी अखाड़ा अयोध्या में तीन रामानंदी अखाड़ों में से एक है। हनुमान गढ़ी मंदिर निर्वाणी अखाड़ा के नियंत्रण में ही है। एक और रामानंदी अखाड़ा निर्मोही अखाड़े ने भी तब ज़ोरदार तरीक़े से बातचीत से विवाद के समाधान का समर्थन किया था, जब पहली बार मध्यस्थता पैनल के गठन की बात आई थी।

दरअसल राम मंदिर और बाबरी मसजिद विवाद में मध्यस्थता विफल होने से पहले जब बातचीत अंतिम चरण में थी, तब जमीअत उलेमा ए हिंद के अरशद मदनी गुट और न्यास को छोड़कर, दोनों पक्षों के बाक़ी लोग क़रीब-क़रीब एक आम सहमति पर पहुँच गए थे। उनमें आपसी सहमति बनी थी कि विवादित स्थल पर दावा मुसलमान छोड़ देंगे जिस पर हिंदू राम मंदिर का निर्माण करना चाहते हैं, मुसलमानों को एक वैकल्पिक स्थल और मस्जिद के निर्माण के लिए धन की पेशकश की जाएगी; और पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का कार्यान्वयन होगा, जो धार्मिक स्थल बनाने में क़ानूनी राह आसान करता।

ध्यस्थता और बातचीत के ज़रिए अयोध्या विवाद सुलझाने की कोशिशें पहले भी कई बार हुई हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 3 अगस्त, 2010 को सुनवाई के बाद सभी पक्षों के वकीलों को बुला कर यह प्रस्ताव रखा था कि बातचीत के ज़रिए मामले को सुलझाने की कोशिश की जाए, लेकिन हिन्दू पक्ष ने बातचीत से मामला सुलझाने की पेशकश को खारिज कर दिया था।

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